बच्चों का पन्ना सार्थक पहल

तख्ती पे तख्ती, तख्ती पे दाना………..

॔॔तख्ती पे तख्ती, तख्ती पे दाना कल की छुटटी परसो को आना’’ पकर आज न जाने कितने लोग अपने बचपन में खो गये होगे। अब से लगभग तीन दशक पहले ज्यादातर बच्चे प्रारम्भिक शिक्षा सरकारी बेसिक प्राईमरी स्कूल में ही ग्रहण करते थे। मैने भी प्राईमरी शिक्षा सरकारी बेसिक प्राईमरी स्कूल में ही ग्रहण की तब तख्ती का चलन था। स्कूल जाते वक्त घर में सिला पुरानी पेंट का थैला कंधे पर डाल, हाथ में लकडी की तख्ती लहराते किसी राजकुमार की तरह अपने सहपाठियो संग स्कूल पहुॅचते थे। कभी कभी आपसी लडाई में तख्ती बहुत काम आती थी तख्ती से लडाई लडने का एक अपना अलग ही मजा था। स्कूल हाफ टाईम में तख्ती का इस्तेमाल बल्ले के रूप में कि्रकेट खेलने के लिये भी किया जाता था। आज हमारे बच्चे तख्ती क्या होती है नही जानते। स्कूल से आकर सब से पहले तख्ती को धोना और फिर उसे सुखाना हम नही भूलते थे। मुल्तानी मिट्टी डिब्बे में भीगो कर रखी जाती थी मुल्तानी मिट्टी से तख्ती पोतकर उसके चारो ओर अंगुली से हाशिया बनाने में बडा मजा आता था वही अगर खेल कूद में तख्ती पोतना भूल जाते थे तो रात भर नींद नही आती थी। और रात भर मास्टर साहब की मार याद आती रहती थी। बरसात के दिनो में शाम को तख्ती चूल्हे के पास रखकर सुखाते थे कभी तख्ती ज्यादा गरम होकर या चूल्हे में गिरकर जल भी जाती थी। तब मास्टर साहब की पिटाई से पहले मॉ की पिटाई खानी पडती थी। कभी कभी तख्ती जल्दी सुखाने के लिये हाथ में लेकर जोर जोर से गीत गाकर हम लोग तख्ती सुखाते थे। दो पैसे में रोशनाई की एक पुडिया मिलती थी जिसे हम लोग घन्टो धूप में बैठकर तरह तरह के गीत ॔॔पतली पतली सूख जा गाी गाी रह जा’’ गुनगुनाकर गाी करते थे। मास्टर साहब द्वारा पेंसिल से बनाये गये नक्शो पर कच्ची रोशनाई का प्रयोग कर लकडी के कलम से लिखते थे तख्ती लिखते वक्त रोश्नाई से बडी प्यारी खुशबू निकलती थी जिस में मस्त होनो के बाद हमे अपने कपडो का भी ध्यान नही रहता था की कितनी जगह रोशनाई के धब्बे लग चुके है।
दरअसल पुराने दौर में शुद्व लेखन और सुंदर लेखन पर बहुत ज्यादा जोर दिया जाता था। सौ तक गिनती और बीस तक पहाडे सुर के साथ पाये और याद कराये जाते थे। एक इकाई, दो इकाई, तीन इकाई सिखाने के लिये लकडी का बहुत बडा इकाई बोर्ड होता था जिस में गोल गोल लट्टू लोहे की सीखो में पडे होते थे मास्टर साहब के आदेश पर कोई एक लडका एक लट्टू पकड कर एक इकाई जोर से बोलता था उस के साथ कक्षा के सब बच्चे जोर से एक इकाई दोहराते थे। पव्वा, पौन, अद्वा, सवैया, डयौडा, जबानी याद कराये जाते थे। पर अब ये सब गुजरे जमाने की बात हो गई है। आज इंग्लिश मीडियम के बच्चे पिच्छतर और डे रूपये को नही जानते पव्वा, पौन, अद्वा, सवैया, को क्या जानेगे। इसी लिये आज सुलेख की विद्या भी बीते दिनो की बात हो चुकी है। आज बुनियादी और प्राईमरी शिक्षा का स्तर बने के बजाये घट रहा है पर लोगो की सोच शिक्षा के प्रति जरूर बी है। आज मजदूरी का पेशा करने वाला व्यक्ति भी अपने बच्चो को अच्छे से अच्छे स्कूल में पाना चाहता है। उस के लिये चाहे उसे अलग से श्रम क्यो न करना पडे। आज सरकारी बेसिक स्कूलो में लोग अपने बच्चो को पाना नही चाहते वजह सरकारी स्कुलो में इस समय बुनियादी शिक्षा काफी कमजोर है हाल यें है की स्कूल भवन जर्जर और टूटे फूटे, बच्चे के बैठने के लिये टाट पिट्टया नदारद, स्कूल परिसरो में गंदगी के अम्बार, बरसात में टपकती छते, आज अधिकतर सरकारी स्कूलो में बुनियादी सुविधाये आधी अधूरी या कही कही लगभग खत्म है। अध्यापक ना की बराबर आज भी उत्तर प्रदेश में 17000 गॉव ऐसे है जहॉ एक किलोमीटर के दायरे में कोई स्कूल नही है उत्तर प्रदेश में एक शिक्षक पर औसतन 51 बच्चे है जब की यही आकड़ा राष्ट्रीय स्तर पर एक शिक्षक पर 31 छात्र का है।
आज कम्प्यूटर युग में शिक्षा में तेजी से आये बदलाव के चलते अब न शिक्षको के पास इतना समय है कि वे तख्ती पर पेंसिल से नक्श्ो बनाकर उन पर बच्चो से लिखवाये, बच्चो का लेख सुन्दर बनाने के लिये उनसे सुलेख पुस्तिका पर अभ्यास कराएं। आज के टीचर को शिक्षा और छात्र से कोई मतलब नही उसे तो बस अपने टुयूश्न से मतलब है। फिक्र है बडे बडे बैच बनाने की एक एक पारी में पचास पचास बच्चो को टुयूशन देने की। चाहे बच्चे पे या न पे उसे हर महीने अपने घर से टयूशन फीस लाकर दे दे। शिक्षा ने आज व्यापार का रूप ले लिया है। एक वो समय था जब गुरू को पिता से भी बकर सम्मान दिया जाता था। और गुरू भी शिष्य को अपनी सन्तान से अधिक मानता था एक एक बच्चे पर मेहनत की जाती थी। दूसरी कक्षा में सुन्दर लेखन के लिये सुलेख अभ्यास कराया जाता था। आज कल स्कूलो में शुरू से ही बच्चो को बाल पेन द्वारा कापियो पर लिखवाया जाता है जिस कारण न तो उनका राइटिंग बयि होता है और न ही इमला शुद्व हो पाता है। आज के बच्चे लकडी की तख्ती और कलम दवात से केवल त तख्ती और द दवात तक ही परिचित है।
पिछले दिनो उत्तर प्रदेश के औचक निरीक्षण के दौरान मुख्यसचिव और मुख्यमंत्री मायावती जी ने बेसिक प्राईमरी स्कूलो का निरीक्षण किया। प्राईमरी स्कूल प्रबंधन ने मुख्यसचिव और मुख्यमंत्री के इन दौरो के मद्देनजर कली चुना कराकर बच्चो के बाल कटाकर, कही कही दूसरे अच्छे स्कूलो से बच्चो को बुला कर निरीक्षण के लिये चयनित स्कूलो में सब कुछ ठीक ठाक कर लिया। निरीक्षण के दौरान बच्चो से पहाडे सुने गये तो कही उन से ब्लैकबोर्ड पर लिखवाकर देखा गया। इतना गडबडझाला होने के बावजूद मुख्यसचिव ये देख कर चौक गये की कक्षा पॉच और छः के बच्चे अपनी पुस्तक का नाम प और अपना नाम भी ठीक से नही लिख पा रहे थे। इन बच्चो की टीचरो से जब ब्लैकबोर्ड पर कुछ लिखवाया गया तो मैडम की राईटिग ऐसी के माने किसी बच्चे ने लिखा हो। आज हमे ये तो मानना ही पडेगा की शिक्षा के क्षेत्र में सरकार की तमाम योजनाओ के बावजूद प्राईवेट पब्लिक स्कूल और गा्रमीण प्राईमरी स्कूलो के बच्चे में एक बहुत बडी और बहुत ही गहरी खाई पैदा हो गई है।
बच्चो की बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में पिछड रहे भारत देश के छः से चौदह साल के सभी बच्चो को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दिये जाने का मौलिक अधिकार बनाया जाना वास्तव में शिक्षा के क्षेत्र में एक नया सवेरा है किन्तु शिक्षा के मौलिक अधिकार कानून से पहले राज्य और केन्द्र सरकार को इस ओर भी ध्यान देना चाहिये की आज शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र में और अधिक भ्रष्टाचार न फैले वही अब तक फैल चुके इस भ्रष्टाचार पर किस तरह अंकुश लगे इस पर भी गम्भीरता से हमारी सरकार को सोचना चाहिये। प्राथमिक शिक्षा में ही अमीर गरीब व जात पात की एक ऐसी खाई जो आगे चलकर देश को नुकसान पहुॅचा सकती है उसे जल्द से जल्द पाटना चाहिये। यदि जीवन की नींव के स्तर पर ही बच्चो की शिक्षा में इस प्रकार का भेदभाव बरता जायेगा तो आज भारत के ये कर्णधार कल भारत को किस और ले जायेगे ये सोचा जा सकता है। सारे संसाधन होने के बावजूद पहले के मुकाबले आज की बुनियादी शिक्षा काफी कमजोर होने के साथ ही बहुत कमजोर है। अब स्कूलो में निरीक्षण की कोई व्यवस्था नही है। हमारे वक्त में हर स्कूल में डिप्टी साहब का दौरा होता था। अब ऐसा कुछ नही होता कोई कहने सुनने वाला है नही बेचारा अभिभावक जाये तो जाये कहा। ये ही बजह है की गली गली मौहल्लो मौहल्लो कुकरमुत्तो की तरह प्राईवेट पब्लिक स्कूल खुलते चले जा रहे है। शिक्षा का धंधा कर ये प्राईवेट पब्लिक स्कूल टीचर के नाम पर आठवी दसवी पास 300 से 500रू प्रतिमाह के हिसाब से अन्टेन्ड टीचर रखकर बच्चे की बुनियादी शिक्षा और भविष्य से भी खिडवाड़ कर रहे है।