कविता/ माँ…तेरी ऊँगली पकड़ के चला…

माँ…तेरी ऊँगली पकड़ कर चला…

ममता के आँचल में पला…

 

हँसने से रोने तक तेरे ही पीछे चला

 

बचपन में माँ जब भी मुझे डाटती…

 

में सिसक–सिसक कर घर के किसी कोने में जाकर रोने लगता

फिर बड़े ही प्रेम से मुझे बुलाती…

कहती, बेटा में तेरे ही फायदे के लिए तुझे डांटती

फिर मैं थोडा सहम जाता और सोचता…

माँ, मेरे ही फायदे के लिए मुझे डाटती

जब भी मैं कोई काम उनके अनुरूप करता…

तो मुझे फिर से डांट देती…

आज भी माँ की डांट खाने का बड़ा ही मन करता…

माँ की डाट, मुझे हर बार नई सीख देती…


-ललित कुमार कुचालिया

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