कविता साहित्‍य

भारत के पूर्व राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को समर्पित श्रद्धासुमन

राम-रहीम में भेद न माना , सब धर्मों को दिया था मान ।
पढ़ते थे क़ुरान , और मन में , रहता था गीता का ज्ञान ।।
पले अभावों में थे लेकिन, सन्तोषी वे रहे सदा ।
विघ्नों से वे जूझजूझ कर, आगे बढ़ते रहे सदा ।।
जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन, किया उन्होंने ज्ञानी बन ।
थे निष्काम कर्मयोगी वे , लोभ नहीं था उनके मन ।।
बड़ी विलक्षण बुद्धि मिली थी , अद्भुत थी प्रतिभा उनकी ।
आस्था और विश्वास से जीती , मनोकामना भी सबकी ।।
लगन लगी थी उनके मन में, दृढ़-संकल्प लिया जीवन में ।
पीछे मुड़ कर कभी न देखा, बने मार्गदर्शक जन-जन में ।।
कर्मठ रहकर करी साधना, विज्ञान को उच्च शिखर पहुँचाया ।
अन्तरिक्ष में यान भेज कर, भारत को गौरव दिलवाया ।।
त्याग-तपस्यामय जीवन था, निश्छल से थे उच्च विचार ।
बने राष्ट्रपति भारत के पर, जन-जन से था उनको प्यार ।।
मन में था अभिमान नहीं , वे वर्चस्वी थे और मनस्वी ।
“भारतरत्न” से हुए अलंकृत, रहे जगत में परम यशस्वी ।।
आज अचानक चले गए वे , छोड़ हमें बीच मँझधार ।
उनका सा अब कहाँ मिलेगा ? सब मानें उनका आभार ।।
ब्रह्मलीन हो गए आज वे , फिर से उनको पड़ेगा आना ।
युग-युग याद रहेगा उनका ,भारत को सन्मार्ग दिखाना ।।
है सलाम तुमको “कलाम “, तुम तो भारत के गौरव थे ।
चिर-शान्ति मिले तव आत्मा को , तुम ही तो सच्चे मानव थे ।।
शकुन्तला बहादुर