कविता

चूहे की सजा

-प्रभुदयाल श्रीवास्तव-
cat and mouse

हाथीजी के न्यायालय में,
एक मुकदमा आया।
डाल हथकड़ी इक चूहे को,
कोतवाल ले आया।

बोला साहब इस चूहे ने,
दस का नोट चुराया।
किंतु रखा है कहां छुपाकर‌,
अब तक नहीं बताया।

सुबह शाम डंडे से मारा,
पंखे से लटकाया।
दिए बहुत झटके बिजली के,
मुंह ना खुलवा पाया।

चूहा बोला दया करें,
हे न्यायधीश महराजा।
कोतवाल इस‌ भालू का तो,
बजा अकल का बाजा|

नोट चुराया सच में मैंने,
हे अधिकारी आला।
किंतु समझकर कागज‌ मैंने,
कुतर-कुतर खा डाला।

न्यायधीश हाथी ने तब भी,
सजा कठोर सुनाई।
‘कर दो किसी मूढ़ बिल्ली से,
इसकी अभी सगाई।’

तब से चूहा भाग रहा है,
अपनी जान बचाने।
बिल्ली पीछे दौड़ रही है,
उससे ब्याह रचाने।