कविता / अब तो पूरा देश है अन्ना!

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क्या सोच के तुमने

बंद किया था उसे

जेल की सीखचों में

क्या सोच के रचा था

तुमने यह छल प्रपंच

 

तुम्हारा सारा तंत्र भी

डिगा नहीं पाया

उसके इरादों को

मात खा गये तुम

फकीराना अंदाज से

मात खा गये तुम

उस बूढ़ी काया से

जो बिका नहीं

कभी मोलभावों से

 

पढ़ नहीं पाये तुम

उसकी चेहरे में छिपी

अथाह गहराईयों को

पढ़ नहीं पाये तुम

हवाओं के रूख को

पहचान नहीं पाये तुम

उसकी सीमाओं को

वह जीता रहा है

देश की एक अदद

सपने की खातिर

 

अन्ना,

नहीं रहा सिर्फ एक नाम

वह बन गया है सर्वनाम

बन गया है वह

व्यक्ति से विचार

सैकड़ों गूंगों-बहरों को

जिसने दी है जुबान

कितने गुमनाम चेहरों को

एक नयी पहचान

कितने जिन्दा मुर्दों को

कराया है जिसने

जिन्दा होने का अहसास

जिसके आगे झुक गयी

तुम्हारी सारी सरकार

 

आदतन और इरादतन

दबाना चाहते हो तुम

हर उस आवाज को

जो उठती है तुम्हारे खिलाफ

कितनों पर लगाओगे-प्रतिबंध

किस-किसको बनाओगे-बंदी

उठ खड़े होंगे एक साथ

हजारों हजारे, क्योंकि

अब तो पूरा देश है अन्ना

क्योंकि हर चेहरे पे

लिखा है-मैं हूं अन्ना ।

 

-हिमकर श्याम

५, टैगोर हिल रोड

मोराबादी, रांचीः ८ 

परिचय : वाणिज्य एवं पत्रकारिता में स्नातक। प्रभात खबर और दैनिक जागरण में उपसंपादक के रूप में काम। विभिन्न विधाओं में लेख वगैरह प्रकाशित। कुछ वर्षों से कैंसर से जंग। फिलहाल इलाज के साथ-साथ स्वतंत्र रूप से रचना कर्म। मैथिली का पहला ई पेपर समाद से संबद्ध भी।

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