कविता:जांच आयोग-प्रभुदयाल श्रीवास्तव

बंद कमरे में वक्त

भूख की आग में

जलती अतड़ियों से

जुर्म करवाता है

अपराधी को थाने

 

कठघरे वकील

गवाह जज दलील

सत्य उगलवाती गीता

रोती हुई पत्नी सीता

मुंशियों और बाबुओं के रास्ते

फाँसी के फंदे तक पहुंचाता है

धरती का इंसान

आकाश में लटक जाता है

सफेड पोश भगवान

दिन दहाड़े लूटता है

अपनी आंखों की धूल

दूसरे की आंखों में झोंकता है

फिर दिग्विजयी सम्राट की तरह

विश्व भ्रमण करता है

वक्त गुनाह से पूछकर

जांच आयोग बिठाता है

जांच के मुद्दे तय होते हैं

जांच का दायरा

बढ़ता जाता है

और गुनाह अपने आप को

दायरे से बाहर‌ खड़ा पाता है|

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लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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