कविता

कविता/ “मगंल पाण्डेय”

जो मरा नहीं अमर है,

किताबों में उसका घर है,

उसके लिये हमारी आखें नम हैं।

जो करा काम कल,

शुक्रिया भी कहना कम हैं।

क्या हमारे अन्दर इतना दम हैं,

दम नहीं तो क्या हम- हम हैं,

जो दूसरों के लिये क्या वही कर्म हैं।

कोई है जो कहे मगंल पाण्डेय हम हैं,

बस इसी बात का तो गम है,

आज अन्धकार तो सवेरा कल है।

जिधर नजर… वहां अलग एक दल है,

आज इसी बात का तो डर हैं,

देश सबका ही तो घर है,

फ़िर क्यों सब तरफ़ दल-दल हैं।

उसकी बदौलत हम मुक्त हैं,

जो मरा नहीं अमर है,

किताबों में उसका घर है..

किताबों में उसका घर है।

-अनिल कुमार