कविता

कविता/ नक्‍सलवाद

भाई को भाई के खिलाफ खड़ा कर दिया

और सलवा-जुडूम हो गया।

कल रात जरा सी बात पर शहर में हुजूम हो गया॥

सरकारी मुनसिब किसी इंकलाबी गोली से हलाल हो गया।

सरकार का मुंह लाल हो गया।

तुरंत सारा इंतजाम हो गया।

मुआवजे, घोषणाएं सरकारी सम्मान हो गया।

वहॉ ग्रीन हंट, बुलडोजर और बख्तरबन्द से

जाने कितनों का काम तमाम हो गया।

उनका झूठ भी सच है, और हमारा सच भी झूठ हो गया।

इस व्यवस्था में यही खास व्यवस्था है

जो भी जुल्म जयाजती के खिलाफ बोला वो नक्सल हो गया।

जो सिर्फ झूठ-झूठ और सिर्फ झूठ था वो असल हो गया।

व्यवस्थाओं का षड्यंत्र देखिए

मेहनतकश मजदूर-किसान का खेत

तहसील तक आते-आते नकल हो गया

देश का इंकलाबी जवान इनकी नजर में नक्सल हो गया

विनायक सेन देशद्रोही हो गया।

जो हक-अधिकारों के संघर्ष को नक्सलवाद कहते हैं।

वे ही इस गुलाम मुल्क को आजाद कहते है ।

– राकेश राणा