कविता

कविता / मैं कौन हूँ ………..?

हर बार मेरे मन में बस यही प्रश्न गूंजता है,

कि आखिर मैं कौन हूँ …………..?

मैं जिस संसार की मानव प्रकृति में रहा

उसी मानव प्रकृति के बीच से निकलकर बस यही सोचता ,

कि आखिर मैं कौन हूँ ……………..?

कौन हूँ का प्रश्न मेरे मन को नोच डालता,

और समुन्द्री की तरह हिलोरे लेने लगता

मन के किसी कोने में छूपा यही प्रश्न मुझसे फिर पूछता

की आखिर मैं कौन हूँ ……………..?

जिस माँ- बाप के हाथों से मेरा,

पालन पोषण बड़े ही चाव से हुआ, फिर भी मैं उनसे पूछता

कि आखिर मैं कौन हूँ ……………..?

– ललित