मोदी के यू-टर्न के सियासी मायने

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“जो किया किसानों के लिए किया… और जो कर रहा हूँ वो देश के लिए कर रहा हूँ”
ये वो लाइनें थीं, जिन्हें सुना बहुत लोगों ने पर समझ में कुछेक के आयेंगी।

यूं अचानक मोदी सरकार ने कृषि कानूनों पर यू-टर्न लिया, ये कोई अचानक लिया गया निर्णय नहीं लगता। लगता है कि इसकी तैयारी बहुत सोच समझ कर की गयी। दरअसल कानून वापस लेना अपने आप में एक बड़ा कदम है, जिसे लेने से पहले हजार बार सोचना जरूरी था। ये ठीक वैसे ही है जैसे शतरंज की चाल चलते समय आपको ध्यान में रखना होता है कि किसी मोहरे को आगे बढ़ाने के बाद प्रतिक्रिया क्या होगी, सिर्फ अगली चाल में ही नहीं बल्कि आने वाली कई सारी चालों में प्रतिद्वन्दी क्या प्रतिक्रिया देगा, ये जिसको नहीं पता वो शतरंज में ही नहीं बल्कि राजनीति की बिसात में भी हार जाता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने एक ही झटके में कई वार किये और तमाम लोगों से जमे-जमाये मुद्दों को छीन लिया। हालांकि विपक्ष मान बैठा था कि मोदी सरकार की हठधर्मिता के कारण उनके मुद्दे को हवा-पानी मिलता रहेगा। पहले, ‘दिनों’ से शुरू हुआ ये आन्दोलन कब ‘महीनों’ में पहुंचा और अब तो ‘साल’ भी क्रॉस करके लगातार रिकॉर्ड पे रिकॉर्ड बनाता चला जा रहा था। किसान आन्दोलन के नाम पर पूरे देश और विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब राकेश टिकैत की राजनीति को यहीं से धार मिली और विपक्ष को संजीवनी। एक समय मुद्दों की मुफलिसी झेल रहा विपक्ष का वृक्ष, किसान आन्दोलन के बढ़ते परवान से राजनीतिक रूप से सदाबहार हो चला था। किसान आन्दोलन का गुब्बारा लगातार बड़ा होकर आसमान की बुलंदियों को चुनौती देता नजर आ रहा था, पर अचानक प्रधानमंत्री मोदी ने सुबह-सुबह आकर उस गुब्बारे की हवा निकाल दी। हर कोई हक्का बक्का था कि अचानक क्या हो गया। आम भाजपाईयों को अपने प्रधानमंत्री से ये उम्मीद नहीं थी कि वो विपक्ष के आगे इस तरह से घुटने टेक देंगे। पर जानकारों की माने तो ये मोदी के तरकश का पुराना तीर है।

इस आन्दोलन को करीब से देखने और उसका विश्लेषण करने वाले बताते हैं कि यह किसान आन्दोलन सिर्फ सरकार के विरोध के लिए खड़ा किया गया था, जिसके लिए फंडिंग विदेशों से आने के आरोप भी लगाये गये थे। इस पूरे आन्दोलन के दौरान कई बार देश में अस्थिरता लाने के कई प्रयास भी हुए, कुछ में आन्दोलनकारी सफल हुए तो कुछ में विफल। चाहे वो इस साल की शुरूआत में लाल किले में खालिस्तानी झंडा फहराने में कामयाब हुए तथाकथित किसानों का मामला हो, या फिर देश में टूलकिट के माध्यम से एक विशेष जंग छेड़ने की तैयारी। कई उतार-चढ़ाव आये पर किसान आन्दोलन पनपता रहा। और इसी की आड़ में सुलगती रही विपक्षी दलों की राजनीति की आग।

प्रधानमंत्री मोदी ने भले ही पूरे देश से माफी मांग ली हो पर किसान नेता राकेश टिकैत अब भी माफ करने को तैयार नहीं दिख रहे। अचानक हुई इस अप्रत्याशित घटना से हैरान टिकैत परेशान से नजर आते हैं, पिछले एक साल से अधिक समय से मीडिया ने उन्हें जिस तरह से हाईलाइट किया है, उतना तो वो पूरी जिन्दगी में नहीं हुए। कहीं न कहीं प्रधानमंत्री मोदी के इस फैसले से उन्हें अपनी राजनीतिक जमीन खिसकती नजर आ रही है, तभी वो आन्दोलन को खत्म करने की बात नहीं कह रहे। उल्टा वो अब उस दिन का इंतजार करने की बात कर रहे हैं, जिस दिन तीनों कृषि कानून संसद में भी रद्द नहीं हो जाते। इसके अलावा भी वो एमएसपी पर भी सरकार से बातचीत करना चाह रहे हैं। कुल मिलाकर इतनी मेहनत से तैयार की गयी जमीन को यूं खिसकता देख राकेश टिकैत में खिसियाहट साफ देखी जा सकती है।

प्रधानमंत्री मोदी के इस ऐलान के पीछे किसान नेता और विपक्षी दल आने वाले 5 राज्यों के चुनावों का असर बता रहे हैं, और अब फिर से सरकार को इसी यूटर्न पर घेरने की तैयारी कर रहे हैं पर राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं, एक समय खराब स्थिति में पहुंच चुकी भाजपा, मुद्दा विहीन और कमजोर विपक्ष के कारण ही वर्तमान स्थिति में काफी हद तक मजबूत हो चुकी है।
उधर कांग्रेस, आन्दोलन के सहारे चुनावी नैया पार लगाने के चक्कर में थी। और यही हाल समाजवादी पार्टी का भी था। जानकार आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि ऊंची छलांग लगाने के लिए चार कदम पीछे हटना पड़ता है, और मोदी सरकार ने भी यही किया हो। क्योंकि जो सरकार तमाम आन्दोलनों से नहीं डरी, लगातार हो रहे हमलों के बावजूद मोदी सरकार ने धैर्य नहीं खोया और इस पूरे किसान आन्दोलन के दौरान किसानों पर सरकार की ओर से कोई भी दमनकारी कदम बढ़ता नहीं दिखाई दिया, पर वो अचानक इस तरह से पीछे हट जायेगी, ये बात कम हजम होती है।

उस पर भी प्रधानमंत्री मोदी का ये कथन, “जो किया किसानों के लिए किया… और जो कर रहा हूँ वो देश के लिए कर रहा हूँ”
इस पर आपको भी मंथन करना चाहिये, इस बात के क्या सियासी मायने निकलेंगे, ये आपके लिए छोड़ रहा हूं।

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