भ्रष्ट व्यवस्था के नाम पर राजनीतिक आंसू

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हिमकर श्याम

ऐसा मुद्दा है जिस पर सर्वाधिक चर्चा होती रही है। भ्रष्टाचार पर अनर्गल प्रलाप, लंबे-चौड़े बयान और सतही कार्यवाहियां ही देखने को मिलती रही हैं। आजादी के बाद से ही प्रायः हर नेता और सारी पार्टियां इसपर राजनीतिक आंसू बहाती रही हैं। जवाहरलाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक हर प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार को देश के प्रगति में सबसे बड़ा बाधक बता चुका है। ताज़ा बयान राहुल गांधी का है। भ्रष्टाचार पर अक्सर मौन रहनेवाले कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने आखिरकार यह स्वीकार कर लिया है कि सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार राजनीतिक व्यवस्था में है, जिससे लड़ने के लिये नये युवाओं को इस क्षेत्र में आगे लाना होगा। राहुल का बयान ऐसे समय में आया है जब उनकी पार्टी की अगुवाई में चल रही संप्रग सरकार के घोटाले-दर-घोटाले सामने आ रहे हैं और वह मजबूत लोकपाल के प्रति ईमानदार नहीं नजर आ रही है।

यूपीए सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में लगातार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई है और अब तक इनमें से एक का भी संतोषप्रद निराकरण उसने नहीं किया है। भ्रष्टाचार का सबसे दुखद पहलू तो यह है कि वर्षों से इसके समाधान के उपाय ढूंढे जा रहे हैं, लेकिन मर्ज घटने की वजाय बढ़ता ही जा रहा है। सरकार कहती तो है कि वह सुधार के पक्ष में है मगर हर बार वह निष्क्रिय नजर आती है। अन्ना ने लोकपाल को लेकर जो मांगें सरकार के सामने रखी थी, उसमें से ज्यादातर ख़ारिज कर दी गयी है। इसमे प्रधानमंत्री, ग्रुप सी और ग्रुप डी के सरकारी कर्मचारियों के साथ न्यायपालिका का मुद्दा भी शामिल है। ग्रुप सी में देश के करीब 57 लाख सरकारी कर्मचारी शामिल हैं जिनका सीधा सरोकार सरकारी फाइलों से है। सरकार उच्च स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार की तो अनदेखी कर ही रही है, साथ ही निचले स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने से भी बच रही है। हकीकत तो यह है कि सरकार की ओर से भ्रष्टाचार के निवारण का कोई गंभीर और सार्थक प्रयास नहीं किया जा रहा है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ गुबार बार-बार उठता है और फिर शांत हो जाता है। भ्रष्टाचारी ताकतों के आगे सरकार और व्यवस्था लाचार है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में भ्रष्टाचार और बढ़ गया है। भारत एक बार फिर सबसे भ्रष्ट देशों की सूची में है। भ्रष्टाचार विरोधी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक इस बार इस सूची में भारत का 95 वां स्थान मिला है। पिछले तीन वर्षों से इस सूची में भारत का स्थान लगातार नीचे की ओर जा रहा है। इसके पूर्व भारत का 87 वां स्थान था। इस अध्ययन में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल 183 देशों को शामिल करती है।

अन्ना का संघर्ष करोड़ों भारतीयों की उम्मीदों और अपेक्षाओ का प्रतिबिंब था जो भ्रष्ट व्यवस्था से त्रस्त थे। देश को भविष्य से एक नई उम्मीद और अपेक्षा थी। ऐसा लग रहा था कि भारत एक नये युग की ओर बढ़ रहा है। तब संसद में भ्रष्टाचार दूर करने की कोशिश परिलक्षित होती दिखाई दे रही थी। संसद के दोनों सदनों ने यह भरोसा दिलाया था कि लोकपाल के जरिये आम जनता को निचले स्तर की नौकरशाही के भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाई जाएगी। व्यवहारिक स्तर पर परिणाम शून्य रहा और भ्रष्टाचार अपनी जगह कायम रहा। भ्रष्टाचार के विरूद्ध समय-समय पर होनेवाले राजनीतिक और सामाजिक आक्रोशों के निराशाजनक हश्र के कारणों को पहचानने की कोशिश की जानी चाहिए। भ्रष्टाचार के विभिन्न पहलुओं को छुए वगैर भ्रष्टाचार विरोधी अभियान बेमानी है।

देश का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो भ्रष्टाचार से नाखुश नहीं है क्योंकि यह वर्ग भ्रष्टाचार से लाभान्वित होता है। इस वर्ग में राजनीतिज्ञ, प्रशासनिक अधिकारी, सैन्य अधिकारी, न्यायिक अधिकारी, व्यवसायी, पत्रकार, मीडिया घरानों के मालिक आदि समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल हैं। यदि हम सचमुच भ्रष्टाचार दूर करना चाहते हैं तो हमें समग्रता में सोचना होगा और सभी मोर्चों पर एक साथ काम करना होगा। भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधीकरण ने देश को एक खतरनाक मोड़ पर खड़ा कर दिया है। यह अर्थव्यवस्था के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों को भी प्रभावित कर रहा है। भ्रष्टाचार का खामियाजा सबसे अधिक गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को भुगतना पड़ता है। भ्रष्टाचार का बेकारी, शिक्षा, खराब स्वास्थ्य सेवाओं आदि जैसी समस्याओं पर सीधा असर पड़ता है। नयी आर्थिक नीति और अत्यधिक केंद्रीकृत व्यवस्था और उपभोगतावाद व्यवस्थित भ्रष्टाचार के श्रोत हैं। उदारीकरण के कारण लालसा, उपभोग और भौतिकवादी संस्कृति को बढ़ावा मिला है जिससे भ्रष्टाचार का फैलाव हुआ है। नयी अर्थव्यवस्था में पैसा ही सबकुछ है। ऐसे में शुचिता और ईमानदारी के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। चर्चा में रहे सारे घोटाले सत्ता की असीम शक्तियों के ही परिणाम हैं। वही व्यवस्था कमोवेश भ्रष्टाचार से मुक्त रह सकती है जिसमें सत्ता का विकेंद्रीकरण हो और आर्थिक विषमता कम से कम हो।

लोकपाल के सरकारी मसौदे को लेकर 14 और 15 दिसंबर को टीम अन्ना के कोर कमेटी की बैठक होनेवाली है। इस बैठक में आगे की रणनीति तय की जाएगी। इस बीच अन्ना हजारे ने राहुल पर सीधे हमला करते हुए कहा है कि स्थायी समिति ने कांग्रेस महासचिव के इशारे पर ग्रुप-सी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने का निर्णय लिया है। राहुल गांधी द्वारा लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने की मांग पर अन्ना ने कहा कि वह खुद भी लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने के विरोध में नहीं है, लेकिन इसमें सरकारी हस्तक्षेप नहीं चाहते। हालात पहले जैसे नहीं हैं। टीम अन्ना में आपसी मतभेद है, वहीँ संसद एफडीआई में उलझी हुई है। आगे की लड़ाई मुश्किल है।

आजादी को छह दशक हो गये। पहले तीन दशक में देश की सत्ता में कांग्रेस पार्टी का एकाधिकार कायम रहा। ज्यादतर प्रदेशों में कांग्रेस की सरकार रही। घोटालों की फेहरिस्त में इस पार्टी का नाम सबसे ऊपर है। यह अलग बात है की अन्य पार्टियां भी खुद को इससे अलग नहीं रख सकीं। इंदिरा गांधी के सत्ता में आते ही राजनीति और शासन की एक नयी संस्कृति की शुरूआत हुई जो आदर्श संस्कृति से बिल्कुल विपरीत थी। इंदिरा गांधी राजनैतिक मूल्यों के पतन का प्रतीक बन गयीं। भ्रष्टाचार और राजनीतिक अपराधीकरण उन्हीं के समय शुरू हुआ।

सवाल यह उठता है कि राहुल का बयान राजनीति से प्रेरित है या वाकई वह भ्रष्ट व्यवस्था के प्रति गंभीर हैं। अगर राहुल और उनकी पार्टी भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर सचमुच चिंतित है तो इसका कोई ठोस समाधान निकालने का प्रयत्न करना चाहिए। इस तरह के प्रलाप से न तो भ्रष्टाचार का खात्मा हो सकता है और न ही जनता का विश्वास ही जीता जा सकता है। जरुरत है भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी जंग को निर्णायक मुकाम पर पहुँचाने की। कांग्रेस महासचिव अगर अपनी इस पहल को निर्णायक मुकाम तक ले जाते हैं तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए।

2 COMMENTS

  1. आज बहस के केंद्र में भ्रष्टाचार है। अगर राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव नहीं आया तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को नहीं लड़ा जा सकता। कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है। भ्रष्टाचार के सर्वाधिक आरोप इसी पार्टी पर है। अन्य राजनीतिक दल भी अलग नहीं हैं। भ्रष्टाचार पर अंकुश की शुरुआत राजनीतिक दलों को खुद से करनी चाहिए।

  2. आपने सब सही लिखा है जी , लकिन देश की जनता निराश हो चुकी है ,बेबस हो चुकी है !या तो कानून बने की रिश्वत खोर को सस्पेंड करने की बजाय बर्खास्त किया जाय जेल से लगा कर फांसी तक की सजा दी जाय ! अगर सर्कार ने ऐसा कानून नहीं बनाया तो मुझे आसंका है की गुस्साई देश की जनता कानून हाथ में लेकर रिस्वतखोरो से जूते लाठी गोली से निपटेगी और सर्कार को स्थिति सम्हालना मुस्किल हो जाये

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