कविता

राजनीति तेरा चेहरा

 बलबीर राणा “भैजी”

राजनीति तेरा चेहरा कितना बदल गया

जन हित छोड स्वहित पर टिक गया

 

राज नेता राज के लिये नहीं

केवल ताज पहनने के लिये होते हैं

देश प्रेम में महानुभाव

देशद्रोहियों को पालते हैं

विकाश की परपाटी को

भ्रष्टाचार से पोतते हैं

राजनीति तेरा चेहरा कितना बदल गया

जन हित छोड स्वहित पर टिक गया

 

अपने ही राष्ट्र सम्बोधन में

बिदेशी भाषा बालते हैं

मन कर्म वचन से ये लोग

कुर्शी के लिए दौड लगाते हैं

कर सेवा जनता की

केवल घोषणाये करके छोडते हैं

राजनीति तेरा चेहरा कितना बदल गया

जन हित छोड स्वहित पर टिक गया

 

वोट बैंक] के खातिर

जात पात की लडाई लडाते हैं

राष्ट्रएकता के नाम पर

धर्म के दिये जलाते हैं

देश भक्तों की सदाहत पर

ताबूतों तक का घोटाला कर जाते हैं

राजनीति तेरा चेहरा कितना बदल गया

जन हित छोड स्वहित पर टिक गया

 

करें संसद का मान इतना

जूते बाजी करते हैं

लोकतन्त्र की पराकाष्टा को

भ्रष्ट तन्त्र बनाते हैं

जनता की आवाज को

पुलिसिया दमन से कुचलते हैं

राजनीति तेरा चेहरा कितना बदल गया

जन हित छोड स्वहित पर टिक गया