डॉ. बालमुकुंद पांडे
जनसंख्या देश की सबसे बड़ी पूंजी हैं क्योंकि यही राज्य का तत्व श्रम शक्ति, प्रतिभा एवं विकास की नींव होती है। जब जनसंख्या असंतुलन की स्थिति में पहुंच जाती है तो यह जनशक्ति देश के लिए अभिशाप एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष संकट का आकार धारण कर लेती है। समकालीन में वैश्विक स्तर के अनेक नवोदित राष्ट्र- राज्य ,विकासशील राष्ट्र – राज्य एवं विकास की प्रक्रिया में शामिल राष्ट्र- राज्य जनसंख्या के संतुलन से बोझिल है। जनसंख्या का संतुलित होना राष्ट्र के बहुआयामी विकास की अवधारणा को सार्थक,अर्थपाय, एवं निश्चित दिशा का सार्थक आशय देता है।
हिंदू समाज अपने विवेकी प्रज्ञा एवं बौद्धिक परंपरा से सहिष्णु होता है। वह तनाव, भू – भागी तनाव, मानसिक विक्षोभ ,दंगों एवं आक्रामक व्यवहारों से असुरक्षित महसूस करता हैं ,तो इन भयावह स्थान से पलायन कर जाता है। उत्तर प्रदेश के संभल हिंसा पर जांच प्रतिवेदन ऐसे पहलुओं पर प्रकाश डालता हैं। संभल जिले में 1947 से सन् 2025 तक 25 बार दंगे हुए हैं। इन दंगों की भयावहता के कारण अधिकांश हिंदुओं ने पलायित कर अपना दूसरा सुरक्षित स्थान बनाया है। भारत का लोकतंत्र वैश्विक स्तर का वृहद लोकतंत्र एवं शांतिमय लोकतंत्र है। इसके राजनीतिक संस्कृति और प्रशासनिक संस्कृति में हिंदुओं का बाहुल्य है एवं हिंदुओं ने लोकतांत्रिक संस्कृति की सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए सकारात्मक पहल की हैं। भारत में लोकतंत्र का जीवन हिंदुओं की सहिष्णुता एवं सहयोग से संभव है। करीब 3 दशकों से भारत में घुसपैठ, मतांतरण एवं अन्य दूसरी सामयिक कारणों से देश के करीब 210 जनपदों की जनसांख्यिकीय संरचना में बड़ा बदलाव आया है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय अखंडता, एवं राष्ट्रीय एकता के लिए चिंता का विचार एवं समाज के लिए कष्टकारी है।
स्वतंत्रता के पश्चात तत्कालीन कांग्रेस सरकार की उपेक्षा से देश में तनाव जनित शक्तियां उभर रही थी जो देश की एकता, अखंडता एवं राष्ट्रीयता की भावना को तितर – बितर करना चाहती थी। सवाल यह है कि क्या संभल से हिंदुओं का खामोश पलायन देशव्यापी चलन का हिस्सा है ?
संभल हिंसा पर आए एक जांच आयोग के प्रतिवेदन में रेखांकित है कि हिंदुओं की जनसंख्या में 30% की गिरावट दर्ज की गई है। संभल से हिंदुओं का खामोश पलायन स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या के असंतुलन के खतरों को उजागर कर रहा है। बंटवारे के पश्चात भारत की प्रथम जनगणना में देश में मुस्लिम आबादी 3 करोड़ थी जो वर्तमान में बढ़कर 21 करोड़ हो चुकी है। यह पाकिस्तान की वर्तमान आबादी 24 करोड़ के समतुल्य हो चुकी है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के संभल में 30% तक हिंदू आबादी घटी है । संभल हिंसा के लिए जांच 3 सदस्य न्यायिक आयोग की जांच रिपोर्ट के अनुसार, आजादी के समय संभल में लगभग 45 प्रतिशत हिंदू आबादी थी जो इस शहर में लगातार दंगों की आग में झुलसने से 15 प्रतिशत रह गई है । इस जन सांख्यिकी बदलाव के कारण संभल में आबादी से लेकर हुए 15 दंगों एवं हिंसा में हिंदू आबादी को निशाना बनाया गया था। उत्तर प्रदेश के कैराना कस्बे में मुस्लिम आबादी 78% एवं हिंदू आबादी 22% थी। 2011 की जनगणना में मुस्लिम आबादी चार प्रतिशत से बढ़कर 82 प्रतिशत हो गई है, वहीं हिंदू आबादी घटकर 18% रह गई है। स्थानीय स्तर के राजनीतिक दलों के चुनावी आंकड़ों के अनुसार 2015 में मुस्लिम जनसंख्या 90% हो गई एवं हिंदू आबादी 10% रह गई है। उत्तर – प्रदेश के नेपाल से सटे जिलों बहराइच, श्रावस्ती एवं बलरामपुर में तेजी से जनसंख्या बदलाव हो रहे हैं। यहां पर पिछले 10 वर्षों में बड़ी संख्या में अवैध मदरसों एवं दरगाहे बनी हैं जो जनसांख्यिकीय असंतुलन के लिए प्रबल रूप से जिम्मेदार हैं।
क्या देश में जनसांख्यिकीय असंतुलन का खतरा गंभीर एवं खतरनाक रूप ले रहा है ?
किसी देश या राज्य – क्षेत्र में जनसंख्या वृद्धि दर असामान्य रूप से बढ़ जाती है एवं उसके संसाधन अवसर एवं आधारभूत संरचना उसके अनुरूप विकसित नहीं हो पाते हैं, तब वहां सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न हो जाता है। जनसांख्यिकीय असंतुलन के कारण आर्थिक संकट अर्थात बेरोजगारी एवं गरीबी बढ़ती है। संसाधनों पर अत्यधिक दबाव उत्पन्न हो जाता हैं ,जिससे जल, भोजन , ऊर्जा एवं भूमि की कमी होने लगती है। पर्यावरणीय संकट अर्थात जंगलों की कटाई, प्रदूषण एवं जलवायु संकट उत्पन्न हो जाते हैं। सामाजिक असंतुलन अर्थात अपराधों में वृद्धि एवं अशांति का वातावरण उत्पन्न हो जाता है। स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं ।
जनसांख्यिकीय असंतुलन के तीन रूप हैं।
1. मुस्लिम जनसंख्या में औसत राष्ट्रीय वृद्धि।
2. देश के सीमावर्ती क्षेत्रों खास तौर से असम,बंगाल एवं बिहार में बांग्लादेश, म्यांमार एवं नेपाल से आए अवैध मुस्लिमों और रोहिंग्या घुसपैठियों का बढ़ता जमावड़ा; एवं
3.लगभग प्रत्येक शहरों एवं कस्बों में बढ़ते मुसलमानों की बेतहाशा संख्या।
1971 के पश्चात भारत में बांग्लादेशियों का पलायन दो कारणों से तेज हुआ । पहला कारण राजनीतिक था एवं दूसरा आर्थिक था। राजनीतिक कारण के अंतर्गत बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं का उत्पीड़न शुरू हुआ और वहां से बहुसंख्यक स्तर पर हिंदुओं का पलायन हुआ । तत्कालीन समय में बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति दयनीय स्थिति में थी. आर्थिक स्थिति को बेहतर एवं जीविका की सुरक्षा के लिए मुसलमान भी भारत में पलायन करके आए जिससे भारत में जनसंख्या असंतुलन उत्पन्न हो गया। दुर्भाग्य से तत्कालीन सरकार ने इस समस्या को राष्ट्रीय समस्या के तौर पर नहीं देखा और न हीं इस समस्या पर गंभीरता से ध्यान दिया। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय का कहना था कि बांग्लादेश से बड़े पैमाने पर भारत में पलायन हुआ है।( विदेश मंत्रालय, 20 जनवरी 1972)।
तत्कालीन समय में सीमा प्रबंधन समिति के अध्यक्ष माधव गोडबोले थे. उन्होंने बांग्लादेश की सीमा को लेकर अपने प्रतिवेदन में लिखा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बांग्लादेश से घुसपैठ की समस्या पर कुछ नहीं किया था। उन्होंने अपने प्रतिवेदन में तत्कालीन भारत सरकार की कटु आलोचना की थी । 2001 में उनका आकलन था कि प्रत्येक महीने लगभग 25000 व्यक्ति भारत में पलायन कर रहे हैं एवं प्रतिवर्ष 3 लाख बांग्लादेशी भारत में आ रहे हैं। उस समय उनका गणितीय आकलन था कि करीब 1.5 करोड़ बांग्लादेशी भारत में रह रहे हैं।
सन् 2001 में भारत सरकार द्वारा गठित मंत्रियों के समूह ने प्रतिवेदन दिया था, जिसमें कहा गया था कि बांग्लादेश से जो घुसपैठ हो रही है, उससे भारत के सामाजिक सौहार्द को खतरा, राजनीतिक स्थिरता को चुनौती, सुरक्षा को खतरा एवं आर्थिक प्रगति पर दबाव है। सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा था कि, असम एवं पूर्वी- राज्यों के रास्ते बांग्लादेश से घुसपैठ हो रही है, वह बाहरी आक्रामकता है। इसका आशय है कि भारत में विदेशी आक्रमण का माहौल हो चुका है। इसमें भारत सरकार को अनुच्छेद 355 के तहत कार्रवाई करनी चाहिए। राजनीतिक दलों द्वारा राजनीतिक स्वार्थों , सत्तालोलुपता एवं लोक भावनाओं के उभार के लिए तुष्टिकरण की राजनीति की जाती है। अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में बढ़ती मुस्लिम आबादी राजनीतिक विजय या पराजय में निर्णायक भूमिका निभाती है।
असम पुलिस के रिपोर्ट के अनुसार , कछार, करीमगंज, धुबरी एवं दक्षिण सलमार में बांग्लादेश की सीमा से 10 किलोमीटर के भीतर आबादी की दशकीय – वृद्धि दर 31.45 प्रतिशत है जो राज्य की संभावित वृद्धि दर 13.5 प्रतिशत से बहुत अधिक है। इन सीमावर्ती क्षेत्रों में मस्जिदों एवं मदरसों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई हैं जिसका प्रयोग अनेक संदिग्ध गतिविधियों में किया जाता है। राजनीतिक संरक्षण, पुलिस की संलिप्तता एवं प्रशासनिक भ्रष्टाचार के कारण इस पर लगाम नहीं लग पा रहा है। उत्तर- प्रदेश पुलिस के प्रतिवेदन के अनुसार, महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर ,बहराइच, श्रावस्ती, पीलीभीत एवं लखीमपुर खीरी के जनपदों में 1047 गांवों में मुस्लिम आबादी 30 से 40% एवं 116 गांवों में मुस्लिम आबादी 50% से अधिक हो गई है। ऐसे जनसांख्यिकीय असंतुलन का राजनीतिक प्रक्रिया एवं लोकतंत्र पर सीधा असर पड़ेगा। यह हिंदू – मुस्लिम सौहार्द के लिए बहुत बड़ा खतरा बनता जा रहा है क्योंकि राजनीतिक स्वार्थ के लिए राजनीतिक नेतृत्व भी संरक्षण देते रहते हैं, जिससे हिंदू समाज में गलत संदेश जाता है।
वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(RSS ) इस दिशा में प्रयास कर रहा है कि हिंदू एवं मुस्लिम एक मंच पर आए एवं राष्ट्रीय हितों के विषय पर परस्पर संवाद कर सके। समाज से कट्टरपंथ ,उग्रवाद, उन्माद एवं नफरत को दूर कर सकें। दोनों समुदाय आपसी मतभेदों,तनावों, एवं समस्याओं को बातचीत से सुलझाएं।दोनों समुदाय अपने- अपने समाज में परस्पर सौहार्द कायम कर सकें एवं समाज को सशक्त संदेश दें कि किसी भी वाह्य शक्ति को भारत की धार्मिक विविधता को खंडित करके दुरुपयोग नहीं करने दिया जाएगा। हिंदुओं एवं मुसलमानों को भी सामाजिक स्तर पर प्रत्येक गांवों ,शहरों, एवं मोहल्ले स्तर पर काम करना होगा।
जनसांख्यिकीय असंतुलन को दूर करने हेतु निम्न सुझाव हैं :
1.समाज में शिक्षा एवं जागरूकता का उन्नयन किया जाए; 2. महिला सशक्तिकरण की दिशा में सकारात्मक एवं शासकीय प्रयास किया जाए ; 3 स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन का शक्ति से क्रियान्वयन हो ; 4.विधि एवं सामाजिक सुधार आंदोलन को जमीनी स्तर पर लाया जाए; 5. आर्थिक एवं सामाजिक संतुलन का समीकरण बढ़ाया जाए; 6. नैतिक एवं सांस्कृतिक पहल की धारणा को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाया जाए; 7.जनसांख्यिकीय असंतुलन के लिए वर्तमान में “आयोग” की आवश्यकता है; एवं 8. हिंदू एवं मुसलमानों को धार्मिक समन्वय के साथ अंतर्जातीय संबंधों पर केंद्रीकरण की आवश्यकता है।
डॉ. बालमुकुंद पांडे