सत्ता सुख नहीं, समस्या समाधान

स्वतंत्र भारत के इतिहास में अनुकूल परिस्थितियां  होने के उपरांत भी अनेक समस्याओं को बनाये रखकर हमारे राजनेता दशकों सत्ता का सुख भोगते रहे। राजनीति को जोकि एक अत्यंत पूण्य कार्य है येन-केन-प्रकारेण सत्ता प्राप्ति का माध्यम मान कर अपवित्र करते रहे। अधिकांश अयोग्य राजनेताओं के कारण समाज व राष्ट्र की जटिल समस्याओं से सामान्य समाज उदासीन व अनभिज्ञ रहा। परिणामस्वरूप वर्षों से जटिल राष्ट्रीय समस्याओं की हार्दिक तड़प हम सब राष्ट्रवादियों को बार-बार वर्षो से झकझोरती आ रही थी। फिर भी हम कुशल व आक्रमक नेतृत्व के अभाव में गांधी के तीन बंदरों के समान गूंगे,बहरे औऱ अंधे बने रहे। लूटते रहे,पिटते रहे और मरते रहे पर आक्रोश के अंगारों की आग में अंदर ही अंदर धधकते रहे। जब 2014 में इन्हीं अंगारों की लपटों से राष्ट्रीय नेतृत्व में अभूतपूर्व ऐतिहासिक परिवर्तन हुआ तो राष्ट्रवादी समाज की पीड़ा कुछ कम हुई।
इससे आगे बढ़ कर 29 सितंबर  2016 की पी.ओ.के. में आतंकवादियों के लांचिग पैडों पर सर्जिकल स्ट्राइक व 2019 आते ही 26 फरवरी को आतंकियों के गढ़ बालाकोट को एयर स्ट्राइक द्वारा ध्वंस करके भारत के शीर्ष नेतृत्व ने हम सबका सोया हुआ देश प्रेम जगा दिया। मोदी जी ने अपनी अद्भुत आक्रामकता का परिचय देते हुए शत्रु देश पाकिस्तान को एक बड़ा युद्धकौशल का कूटनीतिज्ञ संदेश देकर देशवासियों को अभिभूत कर दिया था।
अप्रैल-मई 2019 के आम चुनावों के सकरात्मक परिणामों से भाजपा की जीत से पुनः देशभक्तों में  सर्वत्र राष्ट्रभक्ति का संचार हुआ। 5 व 6 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर की 72 वर्ष पुरानी राष्ट्र तोड़क समस्या अनुच्छेद 370 व 35 ए के अधिकांश प्रावधानों को जब मोदी जी के विश्वस्त सेनापति अमित शाह जी ने राज्यसभा व लोकसभा में निरस्त करने का सफल अभियान चलाया तो विश्व के सम्पूर्ण भारत प्रेमी झुम उठे। उसी कड़ी में आगे बढ़ कर समस्याओं के निवारण के संकल्प के साथ 9 दिसंबर को लोकसभा व 11 दिसम्बर को राज्यसभा में भारतीय मूल के गैर मुस्लिम धार्मिक पीड़ितों को नागरिक अधिकार प्रदान करवाने के लिए नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित करवाकर अमित शाह जी ने आचार्य चाणक्य के सपनों को साकार करने का मार्ग प्रशस्त किया है।
हमारे केंद्रीय ग्रहमंत्री श्री अमित शाह जी ने राज्यसभा के सदन में (11 दिसम्बर) अपनी वर्षों की तड़प को व्यक्त करते हुए जब यह कहा कि “हम सत्ता सुख के लिए नहीं समस्याओं के समाधान के लिए आये हैं” तो समस्त भारतभक्तों के ह्रदयों में भी उनके अपने-अपने राष्ट्रीय दायित्वों को निभाने का बोध जाग गया। माननीय ग्रहमंत्री जी की भाव-भंगिमा से ऐसा लग रहा था कि मानो वह कह रहे हो कि जिन करोड़ों देशवासियों ने हमें चुन कर भेजा है, उनके भरोसे को तोड़ने का पाप हम नहीं करेंगे। नागरिकता कानून को मूर्त रूप देने के समय ऐसे पीड़ित भारतीय बन्धुओं के प्रति उनके भावों की ऊष्मा से संवेदनाओं का व्यापक संचार हुआ है। ऐसे में उनका मानव कल्याण के साथ-साथ राष्ट्र रक्षा के प्रति आग्रह और समर्पण स्पष्ट छलक रहा था।
यह सत्य है कि इन मुस्लिम घोषित देशों में गैर मुस्लिमों पर अमानवीय अत्याचारों के कारण उनकी संख्या लगभग नगण्य हो चुकी है। ग्रहमंत्री जी ने स्पष्ट किया है कि सन् 1947 में जब देश का विभाजन हुआ था तब पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की संख्या 23% थी जो घटकर सन् 2011 में केवल 3.7% रह गयी थी। जबकि बंग्ला देश में 1947 में 22% गैर मुस्लिम थे जो 2011 में घटकर 7.8% रह गयी।
सम्भवतः 2019 में यह आंकडे और अधिक घट गए होंगे, जो बहुत चिंताजनक  है। वहीं अफगानिस्तान के आंकड़े की उपलब्धता स्पष्ट नहीं है। लेकिन वे भी इससे अधिक चिंताजनक होंगे। क्योंकि अफगानिस्तान में तो लगभग 200 से भी अधिक वर्षों से गैर मुसलमानों पर इस्लामिक आतंकवादियों का कहर बरपाया जाते रहने के कारण कभी लाखों-करोड़ों में रहने वाले हिन्दू , बौद्ध व सिख आदि गैर मुस्लिम अब मात्र हज़ारों या सैकड़ों में शेष रह गए हैं।
  इसी संदर्भ में यह भी सोचना आवश्यक हो जाता है कि जब भारत में सन् 1951 में 84% हिन्दू  जो 2011 में 79% रह गए थे। जबकि 1951 में मुसलमान 9.8% थे जो 2011 में बढ़ कर 14.8% हो गए थे। लेकिन अगर इसी घटत व बढ़त के आधार पर आंकलन किया जाय तो आज हिन्दुओं की संख्या लगभग 75% और मुसलमानों की संख्या 20% हो तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि भारतीय मूल के गैर मुस्लिमों को इन मुस्लिम देशों में धार्मिक आधार पर पीड़ित होने के कारण अपनी पूण्य भूमि भारत में ही शरण लेनी पड़ती है।
निःसंदेह धर्म आधारित भारत विभाजन के सात दशक बाद भी ऐसे पीड़ितों का अपने मूल देश में आने का क्रम अभी भी बना हुआ है। यहां एक विचारणीय बिंदु यह भी है कि भारतीय मूल के हिंदुओं को शरण देना भारत सरकार का नैतिक दायित्व भी है। इस्लामिक अत्याचारों से पीड़ित ऐसे लोगों को भारत में नागरिक अधिकार प्रदान करवाने के लिए “नागरिकता संशोधन अधिनियम” एक बहुप्रतीक्षित व अति आवश्यक कानून बनवा कर श्री अमित शाह ने एक और ऐतिहासिक कार्य किया है।
भारतीय उपमहाद्वीप के मानवीय कल्याणार्थ बनें इस अधिनियम का विरोध करने वाले तत्वों के किसी भी प्रकार के मिथ्या प्रचार से बचना होगा। क्योंकि यह अधिनियम किसी भी प्रकार से भारतीय मुसलमानों के विरोध में नही है। यह भी बहुत स्पष्ट समझ लेना चाहिये कि इस अधिनियम से हमारे संविधान के अनुच्छेद 14 का किसी भी प्रकार से कोई उल्लंधन नहीं होता। हमारा संविधान केवल भारतीय नागरिकों को ही प्रभावित करता है, इसलिए इस कानून का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह कानून केवल बाहर से आये हुए उन लोगों से सम्बंधित है जिनको भारत की नागरिकता चाहिये। अतः यह कहना कि यह देश के मुसलमानों के विरुद्ध है, केवल शरारतपूर्ण राजनीति का भाग है।
आज देश में जो अराजकता का वातावरण बनाया जा रहा है वह बहुत चिंता का विषय है। घुसपैठियों व अवैध नागरिकों की पहचान करवाने व इस्लाम से पीड़ित गैर मुस्लिमों को देश में बसाने के लिए नागरिकता कानून में संशोधन का विरोध करने वाले केवल अपनी राजनैतिक स्थिति को बनाये रखने के लिए मुस्लिम समाज को भ्रमित करके उकसा रहें हैं। जबकि यह सुनिश्चित है कि कोई भी मुसलमान जो भारत की नागरिकता लेना चाहता हो तो उसे पूर्व कानून के अनुसार आवदेन करने का यथावत अधिकार है। पिछले कुछ वर्षों में वर्तमान सरकार ने इन तीनों देशों के  566 सुपात्र मुसलमानों को भारत की नागरिकता प्रदान करी भी है।  क्या इस कानून का विरोध करने वालों को घुसपैठियों के बढते नेटवर्क से होने वाले देशविरोधी कार्यों का कोई संज्ञान नहीं है ? देश में लाखों-करोड़ों घुसपैठियों के अवैध व अनैतिक धंधों से हमारा समाज दूषित हो रहा है। पिछले 30-40 वर्षो के पुलिस रिकॉर्ड खंगाले जाय तो यह स्पष्ट होता है कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान व बंग्ला देश आदि मुस्लिम देशों के घुसपैठियों को आपराधिक व आतंकवादी गतिविधियों में निरंतर लिप्त पाया जाता आ रहा है। क्या स्वस्थ व सुरक्षित राष्ट्र निर्माण के लिए घुसपैठियों के आतंक से देश व देशवासियों को बचाने के लिए कठोर कानून बनाना न्यायसंगत नहीं है? इसीलिए इस कानून में संशोधन करना आवश्यक हो गया था। परंतु दुर्भाग्यपूर्ण है कि इसके विरोध में आसाम, बंगाल, तमिलनाडु व महाराष्ट्र आदि राज्यों में राजनैतिक चालबाज क्षेत्रवाद की राजनीति को उकसा कर राष्ट्रीय एकता पर चोट पहुँचाने का निंदनीय कार्य कर रहे है। भारत स्थित ऐसे विरोधियों और पाक समर्थकों को क्या यह चिंतन नहीं करना चाहिये कि उनका भविष्य भारतभक्ति में सुरक्षित रह सकता है भारतद्रोह में नहीं। जिस राष्ट्र ने अपने समस्त वासियों को भरपूर जीवन जीने के समस्त संसाधन उपलब्ध करवाए हो और उसी के विरुद्ध कोई दिग्भ्रमित होकर विकास में रोड़ा बन जाए तो क्या यह उचित होगा?
ऐसे में हम सब भारतभक्तों का यह विशेष दायित्व है कि देश व विदेश में इस अधिनियम के विरुद्ध देशद्रोहियों व भारतविरोधियों द्वारा किये जा रहे हिंसात्मक व अंहिसात्मक प्रदर्शनों का यथा संभव शांतिपूर्ण विरोध करके प्रधानमंत्री जी व गृहमंत्री जी सहित केंद्रीय शासन व प्रशासन की राष्ट्रहित नीतियों का समर्थन करके उनके उत्साहवर्धन में सहयोग करें। इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों में बसे हुए पाकिस्तानी,बंग्ला देशी,अफगानिस्तानी व म्यांमार आदि  के मुस्लिम घुसपैठियों व उनके शरणदाताओं को ढूंढ-ढूंढ कर कानून के हवाले करना होगा। ये खूंखार जिहादी हमारे देश के लिए बहुत घातक हैं। जिहादी जनून से ग्रस्त ऐसे घुसपैठियों का बढ़ता नेटवर्क न जाने कब क्या कर जाय उससे पूर्व सभी को सतर्क व सावधान हो जाना चाहिये। जब मोदी सरकार सत्ता सुख भोगने के स्थान पर राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए दृढ़संकल्पित है तो भारतभक्तों को भी ऐसे राजनेताओं के प्रति कम से कम कृतज्ञ होकर समर्पित होना ही चाहिये।

विनोद कुमार सर्वोदय

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