राजनीति

प्रशांत भूषण बहाना: केजरीवाल हैं निशाना

-तनवीर जाफरी-  aap
भारतीय राजनीति में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से चमत्कारिक रूप से अवतरित होने वाली आम आदमी पार्टी तथा उसके नेता व दिल्ली के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की दिनोंदिन बढ़ती लोकप्रियता ने भारतवासियों को आश्चर्यचकित कर दिया है। इस अद्भुत राजनैतिक घटनाक्रम से जहां न्यायप्रिय लोग, ईमानदार व पारदर्शी शासन व्यवस्था की चाहत रखने वाले लोग, सुराज तथा वास्तविक जनतंत्र के भारत का सपना देखने वाले लोग तथा भ्रष्टाचार व वोट बैंक जैसे पाखंड की राजनीति से ऊब चुका वर्ग प्रसन्न है तथा ‘आप’ व अरविंद केजरीवाल में तमाम संभावनाएं देख रहा है। वहीं स्वयं-भू रूप से देश के रखवाले बने बैठे तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की दुहाई देने वाले लोग व सत्ता को अपनी जेबें भरने का साधन समझने वाले तत्व ‘आप’ के उदय से बेहद भयभीत तथा विचलित नज़र आ रहे हैं और दिल्ली में जनता की अदालत से अपनी मुंह की खाने वाली यह दक्षिणपंथी ताकतें अब स्वयं हिंसा से इसका जवाब देने की चेष्टा कर रही हैं।
पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के गाजि़याबाद के कौशांबी जि़ले में स्थित कार्यालय पर कुछ ऐसी ही दक्षिणपंथी शक्तियों द्वारा लाठी-डंडे व लोहे की रॉड से आक्रमण किया गया। कार्यालय के फर्नीचर व शीशे तोड़े गए तथा इन स्वयंभू राष्ट्रभक्तों द्वारा ‘आप’ कार्यालय में मौजूद कई महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार किया गया। यदि कार्यालय में मौजूद ‘आप’ के स्वयंसेवक घटनास्थल से इन अराजक तत्वों की हिंसा से डरकर भाग न जाते तो संभवत: इनकी हिंसा का तांडव किसी भी सीमा तक पहुंच सकता था। इस संबंध में 12 आक्रमणकारी लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इन तथाकथित राष्ट्रभक्तों का कहना है कि वे ‘आप’ पार्टी के नेता प्रशांत भूषण द्वारा कश्मीर के विषय पर दिए गए बयान से सहमत नहीं हैं और उसके विरोधस्वरूप उन्होंने इस हिंसक कार्रवाई को अंजाम दिया है। यहां गौरतलब है कि 2 वर्ष पूर्व जब प्रशांत भूषण ने कश्मीर में जनमत संग्रह कराए जाने का अपना मत व्यक्त किया था, उस समय भी उन्हें उनके सुप्रीम कोर्ट स्थित चैंबर में पीटा गया था और पिछले दिनों एक टीवी चैनल को दिए गए अपने साक्षात्कार में प्रशांत भूषण ने एक बार फिर कश्मीर के विषय पर अपना एक और मत व्यक्त कर दक्षिणपंथी शक्तियों को आप पार्टी तथा अरविंद केजरीवाल व उनके साथियों के विरोध का एक और मज़बूत बहाना उपलब्ध करा दिया। गत् दिनों प्रशांत भूषण ने अपने साक्षात्कार में कहा था कि कश्मीर में उन स्थानों पर जहां शांति कायम हो चुकी है, वहां सेना तैनात करने से पूर्व स्थानीय लोगों से पूछ लिया जाना चाहिए।
प्रत्यक्ष रूप से यदि इस बयान पर गौर किया जाए तो इसमें कोई आपत्तिजनक नज़र नहीं आती। सेना की तैनाती का विरोध स्थानीय लोगों द्वारा केवल कश्मीर में ही नहीं बल्कि पूर्वोत्तर राज्यों में भी किया जा रहा है। परंतु निश्चित रूप से यह देश की आतंरिक सुरक्षा से जुड़ा हुआ एक विषय है तथा भारत सरकार, सेना, रक्षा मंत्रालय तथा संबंधित राज्य सरकारें समय-समय पर इस विषय पर परस्पर समीक्षा भी करती रहती हैं। प्रशांत भूषण के बयान मात्र से न तो कश्मीर के किसी भाग से सेना हटने जा रही है न ही कश्मीर में जनमत संग्रह कराने पर सरकार विचार करने जा रही है, पंरतु इस बात को बहाना बनाकर आक्रामक रुख अख्तियार करने वाले इन अराजक तत्वों को गोया प्रशांत भूषण के बयान से आम आदमी पार्टी तथा अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधने का एक सुनहरा मौका मिल गया। अरविंद केजरीवाल ने इस घटना पर संज्ञान लेते हुए बड़े ही गांधीवादी तरीके से यह बयान दिया है कि यदि उन्हें व प्रशांत भूषण को मारने से कश्मीर समस्या का समाधान हो सकता है तो उन्हें बताया जाए कि कब और कहां पहुंचना है। वे स्वयं वहां मार खाने के लिए पहुंच जाएंगे। केजरीवाल ने कश्मीर के संबंध में प्रशांत भूषण द्वारा दिए गए बयान से भी स्वयं को अलग करते हुए यह स्पष्ट किया है कि यह उनका व्यक्तिगत बयान है तथा उनका व उनकी पार्टी का ऐसा कोई मत नहीं है।
दरअसल, दक्षिणपंथी ताकतें इस समय कांग्रेस नहीं बल्कि आप पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता तथा जनाधार से बेहद घबराई हुई हैं। दिल्ली के चुनाव परिणाम आने से पूर्व तक के राजनैतिक वातावरण में इनको यह नज़र आने लगा था कि मंहगाई और भ्रष्टाचार जैसे हालात का सामना कर रही कांग्रेस पार्टी के हाथ से निकलने वाली सत्ता 2014 में उनकी झोली में आने वाली है। 2009 की ही तरह इन्होंने इस बार भी अपना प्राईम मिनिस्टर इन वेटिंग भी घोषित कर दिया है। झूठ, मक्कारी, फरेब, गलतबयानी तथा भावनात्मक भाषण देने में महारत रखने वाले इनके नेताओं ने देश में अपने पक्ष में माहौल बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रख छोड़ी है। जहां सांप्रदायिकता का ज़हर घोलने से राजनैति· लाभ होता दिखाई दे रहा है वहां वैसा फॉर्मूला अपनाया जा रहा है और जहां उदारवादी दिखाई देने की ज़रूरत है, वहां सर्वधर्म संभाव और सौहाद्र की बात भी की जा रही है। निश्चित रूप से देश की सीधी व शरीफ जनता को भावनात्मक रूप से अपने पक्ष में करने में इन शक्तियों ने काफी हद तक सफलता भी हासिल की है। पंरतु आम आदमी पार्टी के उदय ने तथा दिल्ली की सत्ता इन दक्षिणपंथियों के हाथों से ‘आप’ द्वारा छीन लेने की घटना ने इन्हें हक्का-बक्का कर दिया है। कल तक दिल्ली दरबार पर राज करने का स्वप्न देखने वाले लोगों की नींदें अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी ने उड़ा दी हैं।
ऐसे हालात में केंद्रीय सत्ता के हाथ न लगने की भरपूर संभावना से भयभीत वे लोग जो कल तक स्वयं दिल्ली में अपनी सरकार बनाने से इनकार कर चुके थे, जो लोग आम आदमी पार्टी को सरकार चलाने में सहयोग देने की बात कर रहे थे वही शक्तियां आज 2014 के चुनाव परिणामों की कल्पना कर तथा उसमें आम आदमी पार्टी की मज़बूत स्थिति से घबराकर अब स्वयं अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी को उन्हीं के घिसे-पिटे व विवादित मुद्दों की ओर घसीटकर उन्हें बदनाम करने जैसे असफल प्रयास कर रही हैं। ऐसा ही एक विषय है कश्मीर पर दिया गया प्रशांत भूषण का वह ताज़ा विवादित बयान जिससे केजरीवाल व उनकी पार्टी के अन्य नेता पहले ही किनारा कर चुके हैं। ‘आप’ से भयभीत होकर यही शक्तियां कभी केजरीवाल पर यह कहकर उंगली उठाने लगती हैं कि कल तो इसने कहा था कि सरकारी बंगला नहीं लेंगे। अब पांच कमरों का मकान क्यों लेने लगा? कल तक अरविंद केजरीवाल सुरक्षा लेने से इनकार कर रहे थे, अब वे सुरक्षा क्यों ले रहे हैं? बंगलादेशी घुसपैठियों के विषय में क्यों नहीं बोलते? केजरीवाल को विदेशों से धन प्राप्त हो रहा है। मुजफ्फरनगर दंगों के विषय में, कश्मीर तथा इशरत जहां जैसे विवादित विषयों पर इनका क्या कहना है? बाटला हाऊस मुठभेड़ पर इनकी क्या राय है? कल तक कांग्रेस को भ्रष्ट कहते थे आज उसी भ्रष्ट कांग्रेस से हाथ मिलाकर भ्रष्टाचार कैसे दूर करेंगे? इस प्रकार के सवालों में अरविंद केजरीवाल को उलझाने की कोशिश बड़े ही सुनियोजित ढंग से दूरदर्शन पर होने वाली बहस से लेकर दक्षिणपंथी लेखकों द्वारा लिखे जाने वाले आलेख तथा सोशल मीडिया पर इनके गुर्गों द्वारा छेड़ी गई मुहिम के माध्यम से की जा रही है।
उधर अरविंद केजरीवाल इन सब बातों से बेफिक्र अपनी भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। केजरीवाल यह भी स्पष्ट कर चुके हैं कि उन्हें सत्ता में रहने न रहने को लेकर इतनी चिंता नहीं है जितनी कि शीघ्र अति शीघ्र जनता से किए गए अपने वादों को पूरा करने की। जैसे-जैसे उनका विरोध दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा तेज़ होता जा रहा है, वैसे-वैसे केजरीवाल की लोकप्रियता में और अधिक इज़ाफा होता जा रहा है। दिल्ली सरकार पर नियंत्रण के बाद केजरीवाल के शासन का एक-एक दिन कोई न कोई ऐसी नई खबर देता है जिसमें जनहित, जनकल्याण, पारदर्शिता तथा जनसुविधाओं व सुराज का दर्शन नज़र आता है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध उनके आह्वान से प्रभावित होकर देश के अनेक जाने-माने लोगों, अनेक नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं,पत्रकारों, बुद्धिजीवियों यहां तक कि दूसरे दलों के ईमानदार नेताओं के भी आम आदमी पार्टी में शामिल होने के समाचार आने शुरू हो चुके हैं। 2014 की राजनैतिक संभावनाओं में स्पष्ट दिखाई देने लगा है कि देश को ‘पप्पू’ या ‘फेंकूं’ की नहीं बल्कि राष्ट्र को समर्पित एक वास्तविक ईमानदार, राष्ट्रभक्त तथा सुराज स्थापित करने की क्षमता रखने वाले नेता की ज़रूरत है। ज़ाहिर है ऐसी उम्मीदें रखने वाली देश की जनता यह भी बखूबी देख रही है कि किस-किस प्रकार प्रशांत भूषण या अन्य विवादिति मुद्दों को बहाना बनाकर अरविंद केजरीवाल को निशाना बनाने की कोशिश की जा रही है।