वादा तेरा वादा (चुनावी व्यंग-एक सच्ची घटना पर आधारित)

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संदीप ठाकुर

चुनावी मुद्दों के बाद अब लोक-लुभावन वादों से, पूरे प्रदेश में सियासी हलचल मची हुई है. किस पार्टी के मेनीफेस्टो कौन सा चुनावी आफर निकल कर आ जाय किसी कुछ पता नही. कोई साईकिल बाँट रहा है तो कोई टेबलेट व लैपटॉप देने की बात कर रहा है. कहीं शिक्षा मुफ्त की जा रही है तो कही के लिए बिजली मुफ्त देने की बात हो रही है. कोई कन्याधन तो कोई बालिका शिक्षा धन, इस तरह से पूरे सियासी बाज़ार में ठण्ड के मौसम भी, चुनावी गरमी का नजारा साफ़ नजर आ रहा है. वही जब आप किसी चुनावी क्षेत्र में नजर दौडाए तो सियासतदानों के साथ- साथ, चुनावी ठलुओं का भी बाजार बहुत तेजी से गरम होने लगा है. इस चुनावी हलचल में किसको कितना फायदा हो रहा है या होगा ?

यह आप किसी क़स्बे या गवारु बाज़ार के, किसी चौराहे या नुक्कड़ के आसपास छप्पर या मोटी पालथीन की चादर के नीचे विराजमान किसी कल्लू या पप्पू चाय की दुकान पे थोड़ी देर बैठ कर अंदाज़ा लगा सकते है. जब बिना किसी अखबार के पन्ने पलटे या घर में कम्बल का सहारा लेकर बच्चों से टी वी रिमोट के लिए चिक-चिक पिक-पिक किये बिना, आपको सियासी उठापक की जमीनी सच्चाई से रूबरू होने का मौका मिल जाय तो, टी वी चैनलों के एंकरों द्वारा आम जनता की फेसबुकिया या ट्वीटर वाली राय क्यों देखी जाय. जहाँ सोशल मीडिया के नाम से प्रचलित इस जीव से, देश की 95 प्रतिशत से अधिक की आबादी का कोई वास्ता न हो खैर इस बार कई सियासी दलों के चुनावी घोषणा पत्र जानने का प्रयास करे तो आने वाले भविष्य में बहुत कुछ ऐसी सुविधाए मिल सकती है जिससे कम्पयूटर साक्षरता तो बढ़ेगी ही, साथ ही साथ कई दशकों से उपेछित जनमानुष को भी ट्विट करने का अभूतपूर्व मौका मिल जाएगा. खैर जिस बात की बात हम करने जा रहे थे वो अभी शुरू नही हुई है बात कुछ ऐसी है अभी हाल में मुझे अपने गृहनगर विकासपुर जाने का मौका मिला जो प्रदेश की राजधानी से मात्र 200 किमी.की दूरी पर स्थित है. दूरी तो है पर उस बड़े राज्य के लिए कुछ ख़ास नही.

अगर प्रदेश का चुनावी विभाजन के नजरिये से देखे तो इस एरिये के विकास की कल्पना बिना बटवारें के संभव नही हो सकता.वही एक और बात पर गौर करे. तो साफ़ हो जाता है कि प्रदेश के विकास का सूचकांक का आधार पूरा प्रदेश नही बल्कि उसकी राजधानी को मान लिया जाना चाहिए.अगर राजधानी की चमकती सड़कों,ओवरब्रिजों या मूर्तियों या पार्को को सही अर्थों में विकास का पैमाना माना लिया जाय तो यह किसी भी देश की विकसित अर्थव्यस्था को टक्कर देती नजर आएगी लेकिन क्या इस तथाकथित विकास को सर्वांगीण विकास का पैमाना माना लिया जाय या इसे विकास का चुनावी मॉडल. अगर कहीं इसकी डाकूमेंट्री फिल्म बना दी जाय तो यह अंतराष्ट्रीय पटल पर प्रदेश की, एक सॉफ्ट पावर की छवि बनकर उभरेगी.जिसमे जान बूझ कर उन्ही चीज़ों को दिखाया जाता है जिनका आम जन-मानस कोई खासा सारोकार तो नही होता लेकिन इमेज मेकिंग में ज्यादा कारगर सिद्ध होता है.

खैर विकासपुर पहुँच कर हमने घर पर पूरे दिन आराम किया और शाम को रामनगर बाज़ार के लिए निकल पड़े. काफी दिन बाद जाने को मौका मिला था सो कुछ पुराने परिचितों से मुलाकात की तो कुछ नए अपरचितों से जान पहचान हुई. और कुछ आगे बढे तो चौराहे के मोड़ पर कल्लू चाय वाले की दूकान पर काफी गहमा-गहमी में बहस हो रही थी.

कल्लू भाई की दूकान चौराहे की सबसे फेमस दूकान है. जहाँ पर चाय में भी कई वैरायटी उपलब्ध है जैसे मसाला चाय, काली मिर्च की चाय वगैरा-वगैरा.

दूसरी बात, बचपन से उस दुकान से एक अजीब सा लगाव था जब भी कुछ खाने-पीने का चीज़ लेनी होती थी तो हम वही से खरीदते थे.ऐसा कभी नही हुआ जब कल्लू भाई की दुकान पर दस-बीस कस्टमर या कस्टमरी बहस बाजों की जमात वहां डेरा जमाये न नजर आये.लेकिन आज संख्या कुछ ज्यादा देखकर मेरा भी मन हुआ चलो देखते है क्या ….! एक चाय का आर्डर देकर हमने भी बेंच का एक कोना पकड़ लिया और चाय से ज्यादा उनकी बातों को ध्यान से सुनने मशगूल हो गए.

तभी कुछ दूर पर बैठे एक महाशय ने कहा ‘अरे उ जोअन नाइ है.. का नाम है ? उ प्रत्याशिया का…..जोउन कल्हियां शामवा को, वोटवा मांगे आवल रहा.

तभी दुसरे महाशय ने तपाक से कहा ‘अरे मर्दे राम किशोरवा नाम है सुना है.. बड़ा मेहनत से अबकी टिकट मिला है बड़ा लम्बा-चौड़ा चढ़ावा चढ़उले ह.

अईसे पहिले तो अध्यक्षजी के पीछे-२ चमचागिरी करत रहल…ठीक-पट्टा में दलाली काटत रहल. एक नम्बर का चोर आदमी हउए.

तीसरे महाशय तभी बीच में टपक पड़े बोले ‘ भईया केहू के का पता ! कब केकर किस्मत चमक जाई… लागत बा राम किशोरे अबकी विधायक बन के रही.. दिन रात एक कईले बा…बड़ा मेहनत करत बा.

पहले वाले महाशय ने कहा ‘हा सुना है कल्हियां रतियाँ में चोरी छुपे उहो कुछ नगद बटाऊले ह.

तभी चौथे महाशय कुछ दूर बैठे थे कहने लगे. ‘अरे काका अपना कुछ पायो है का, जोउन गुण गावत हया,

उहाँ बहादुरगंज वाले मंत्रीजी पिछला रिकार्ड तोड़ दिहे है चुनाव आयोग के ऐतना सख्ती होएक बाद, एक -एक वोट का एक लाल पत्ती, जितना वोट वतना पत्ती.

तभी पहिले महाशय बात बीचय में पकड़ लिए कहने लगे ‘हा पता बा तबे रामराज का लौंडा आजकल मंत्री जी पीछे -२ लागल बा ….दिन रात एक कईलेबा.

ऐसे पहिले राम किशोरवा के प्रचार में लागल रहल, लेकिन पता नाइ काव ओकारा के भूत सवार रहल जौन चुनाव आयोग के इतना सख्ती में भी चोरी छुपे होर्डिंग बैनर लगावत बा ..

आजकल क लौंडें का पुछेक बा, जहाँ ज्यादा मलाई काटेक मिलत बा वहिक पीछे होई लेत है.

तभी किसी और महाशय ने कहा आजकल इ ठलुअन का बाज़ार गरम बा.

इसी तरह से चुनावी बहस जारी थी. शाम भी होने लगी थी और चाय भी ख़त्म हो चुकी थी सो घर की तरफ कूच करने का समय आ गया सो कुछ जरुरत का सामान ख़रीदा और घर की तरफ चल पड़े.

कुछ दूरी जाने के बाद रास्ते में नजर अचानक एक होर्डिंग पर पड़ी. जिस पर लिखा था ‘सड़क,बिजली,पानी अधूरी… राम किशोर करेंगे पूरी.

आगे बढ़ने पर मन ही मन एक अजीब सी स्तिथि में झूठी मुस्कराहट समेटे हुए आगे बढने लगा तभी किशोर कुमार का गया हुआ एक फ़िल्मी गीत ‘वादा तेरा वादा…….. तेरे वादे पे मारा गया .. बंदा मै सीधा साधा….. वादा तेरा वादा’ याद आने लगा. घर तो पहुँच गया लेकिन मन एक टीस सी बनी रही. मन ही मन असमंजस की स्थिति में सोचने लगा

‘लगता है आज हमारे समाज की सामजिक, राजनीतिक चेतना कहीं गुम सी गयी है.आम जनता भी अपना धैर्य खो चुकी, अब उन्हें भी कही से कोई उम्मीद नही नजर आती. चाहे कोई भी सरकार आये या जाए …उन्हें कोई फर्क नही पड़ता. जब जन सरोकार का मुद्दा सिर्फ लोक-लुभावनी वादों में सिमट कर रह जाता हो और वोटिंग सिर्फ जाति-बिरदारी, धन-बल के नाम पर हो तो एक सच्चे लोकतंत्र की संकल्पना किसी दिवास्वप्न के समान है. खैर जितने भी पात्रों से आप रूबरू हुए उनके नाम तो काल्पनिक थे, लेकिन घटना सच्ची थी. और इस क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण बात बताना भूल गया जो राम किशोर जी अपने होर्डिंग वाले मेनीफेस्टो में कह रहे थे.

जहाँ तक मुझे याद आता है. यहाँ की सड़क सन २००० से कुछ वर्ष पहले बनी थी कुछ भारी वाहनों के चलने से उसकी हालत खंड्जे से भी बदतर हो गयी है आये दिन कोई न कोई एक्सीडेंट होता रहता है फुटपाथ पर अवैध कब्ज़ा होने वजह से बारिश के मौसम में अधिकतर समय पानी भरा रहता है.

बिजली की बात करे तो अभी कुछ साल पहले एक प्राइवेट कम्पनी ने बड़े जोर-शोर से गाँव -गाँव बिजली पहुचाने का ठीक लिया था कई दशकों बाद बिजली तो पहुची.लेकिन कुछ ही लोगों को मिल पाया और वही आस-पड़ोस के गाँव यह काम अन्धूरा लटका हुआ है जहाँ पर है भी वहां मात्र छ: से सात घंटे में संतोष करना पड़ता है.

राम नगर में पानी के लिए कोई खासा इंतजाम नही है.भूमिगत जल ही पीने व सिचाई एक मात्र साधन है जो बड़े-जोत के किसानों तक मात्र सीमित है पेट्रोलियम पदार्थो की तेजी से बढती कीमतों से गरीब किसानों को खासी दिक्कते झेलने पड़ रहे है भूमिहीन किसानों व मजदूरों की स्तिथि बद से बदतर है अभी कुछ साल पहले इस क्षेत्र से एक नहर निकाली गयी हज़ारों की संख्या में गरीब किसानों की भूमि सरकारी रेट के नाम पर आधे-पौने दामों में अधिग्रहित कर ली गयी लेकिन उस नहर में सही समय पर आज तक पानी नही आया.

कई ऐसे मुद्दे है जिनकी एक लम्बी फेहरिस्त है, जो चुनाव के दौरान कई दशकों तक मुद्दे बनते रहे है लेकिन अब स्तिथि ये है कि आम जनता के बीच यह एक तथाकथित तौर पर मुद्दा है जो सिर्फ चुनावी वादों के दौरान याद आता है

अन्यथा लोग भूल चुके है कि उनके भी लोकतान्त्रिक अधिकार है और वो अपने अधिकारों का सही उपयोग कैसे कर सकते है अपनी नियति मान कर वो अब इसे लूटतंत्र कहने में कोई गुरेज नही करते.

और ये भी कहते है राम किशोर जैसे भ्रष्ट, अपराधी प्रवृति के लोग जब तक राजनीति में आते रहेंगे और हमारे सपने सदैव अधुरें रहेंगे.

आखिरकार कर भी क्या सकते है उनकी भी अपनी मजबूरी है आखिर किसको चुने, जब सब एक ही जैसे है.

अंतत: मुझे महसूस हुआ कि जनता के पास उचित विकल्प न होने की वजह से वोटिंग को लेकर एक हताशा व निराशा का माहौल है. खैर मैं अब वापस लौट आया हूँ लेकिन कई ऐसे सवाल मेरे जेहन में आज भी जिन्दा है जो इस देश के लोकतान्त्रिक व्यस्था से जबाब मांग रहा है.

 

 

 

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