जन-जागरण

विवेकशील बुद्धि से मिलती है सफलता

अभिषेक कांत पाण्डेय

विवेक से आशय यह है कि जब हम किसी गंभीर विषय पर निर्णय लेते हैं, तो दो बात सामने आती है कि हमारा निर्णय या तो सही होता है या गलत। लेकिन हम अपनी बुद्धि का उपयोग विवेक से करें तो उस समस्या का हल सही दिशा में ढूंढेंगे और जीवन में सफल होंगे। यदि रावण ने बुद्धि का प्रयोग विवेकपूर्वक किया होता तो रावण का अंत इतना बुरा न होता। सार यह है कि जीवन को सफल और सुखी बनाने के लिए सही निर्णय की क्षमता होनी चाहिए और यह निर्णय बुद्धि के सही प्रयोगी यानी विवेक के कारण ही आती है। क्या आप जानते हैं कि वक्त आने पर सही फैसला न ले पाने की कमजोरी आपके स्वभाव में मौजूद होती है। इस स्थिति से बचने के लिए बुद्धि का प्रयोग विवेक के साथ करना आपको आना चाहिए।

विवेक का तर्क से संबंध

जब हम कोई भी काम विवेक के अनुसार तर्क के आधार पर करते हैं, तो उसी समय हम कारण और प्रभाव तत्व की ओर भी आकर्षित होते हैं, यह विज्ञान कहलाता है। इस दुनिया में सभी कुछ कारण तत्व के दायरे के अंदर होता है और कोई भी चीज अकारण नहीं होती है। हम देखकर पता लगा सकते हैं कि कारण तत्व क्या है? जैसे हम चीनी देखते हैं, यहां चीनी का कारण तत्व क्या है? चीनी का कारण तत्व गन्ना है, इसीलिए जीवन के हरेक क्षेत्र में कारण तत्व मौजूद है।

विवेक का शत्रु है क्रोध

गीता का यह श्लोक क्रोध की सही व्याख्या करता है- ‘क्रोधोद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृति विभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणस्यति।’ जिसका अर्थ है कि विषय ध्यान परिग्रह में आसक्ति बढ़ाने वाले होते हैं। आसक्ति से काम, काम से क्रोध, क्रोध से सम्मोह तथा सम्मोह से स्मृति विभ्रम हो जाता है। स्मृति विभ्रम से बुद्धि नाश हो जाती है और बुद्धि के नष्ट होने से मनुष्य का नाश हो जाता है। इसका सार यह कि क्रोध से विवेक यानी बुरे या भले को समझने वाली बुद्धि खत्म हो जाती है, जिससे अंत में नुकसान ही हाथ लगता है। मनोवैज्ञानिक अध्ययन से भी प्रमाणित हुआ है कि क्रोध पैदा होने का कारण व्यक्ति में ज्ञान की कमी होती है। वहीं ज्ञान के कारण किसी व्यक्ति में अभिमान भी बढ़ जाता है। इसलिए अगर जीवन में लगातार सफलता और सुखों की चाहत है तो हर इंसान को हर तरह के ज्ञान को पाने का श्रमसाध्य प्रयास करना चाहिए, साथ ही ज्ञान के घमंड से बचकर भी रहे। रावण के पास ज्ञान था लेकिन अधिक ज्ञान का घमंड उसे असफलता की ओर ले गया, क्योंकि उसने बुद्धि का प्रयोग विवेक से नहीं किया। इसीलिए इन दो उपायों से क्रोध भी काबू में रहेगा और सही क्या-गलत क्या? की समझ भी बनी रहेगी।

विवेकशीलता से आती है नेतृत्व क्षमता

विवेकशील व्यक्ति ही नेतृत्व क्षमता से युक्त होता है। वाल्मीकि रामायण में भगवान श्रीराम के ऐसे सोलह गुण बताए गए हैं, जो आज भी लीडरशीप के अहम सूत्र हैं। श्रीराम ने वानरों की सेना का नेतृत्व और रावण पर सफलता, इन्हीं गुणों के कारण ही प्राप्त की थी। आज के संदर्भ में इसे हमें अपने व्यक्तित्व में उतारने की आवश्यकता है।
1. गुणवान (ज्ञानी व हुनरमंद)
2. वीर्यवान (स्वस्थ्य, संयमी और हृष्ट-पुष्ट)
3. धर्मज्ञ (धर्म के साथ प्रेम, सेवा और मदद करने वाला)
4. कृतज्ञ (विनम्रता और अपनत्व से भरा)
5. सत्य (सच बोलने वाला ईमानदार)
6. दृढ़प्रतिज्ञ (मजबूत हौसले वाला)
7. सदाचारी (अच्छा व्यवहार, विचार)
8. सभी प्राणियों का रक्षक (मददगार)
9. विद्बान (बुद्धिमान और विवेकशील)
1०. सामथ्र्यशाली (सभी का भरोसा, समर्थन पाने वाला)
11. प्रियदर्शन (कार्य-व्यवहार से सुंदर दिखने वाला)
12. मन पर अधिकार रखने वाला (धैर्यवान व व्यसन से मुक्त)
13. क्रोध जीतने वाला (शांत और सहज)
14. कांतिमान (अच्छा व्यक्तित्व)
15. किसी की (निदा न करने वाला सकारात्मक)
16. युद्ध में जिसके क्रोधित होने पर देवता भी डरें (जागरूक, जोशीला, गलत बातों का विरोधी)

विवेक यानी अंत:ज्ञान
विज्ञान क्या है? जो विवेक पर आधारित हो, कारण और प्रभाव तत्व पर भी ध्यान रखता हो, वह विज्ञान कहलाता है। महान दार्शनिक महर्षि
कणाद ने यही कहा था- ‘कारणाभावात्कार्याभाव:।’ जहां कारण तत्व नहीं है, वहां प्रभाव तत्व नहीं हो सकता। आध्यात्मिक साधना का अभ्यास भी विज्ञान के दायरे में आता है। भगवान सदाशिव ने आध्यात्मिक विज्ञान की खोज की थी। सभी प्राणियों में कमोबेश ज्ञान होता है, कितु अंत:ज्ञान यानी विवेक का अभाव होता है। मनुष्य में ज्ञान और विवेक दोनों तत्व रहता है। मनुष्य एक अजीब प्रकृति का जीव है, उसके मस्तिष्क के कुछ भाग में चेतन और कुछ भाग में अचेतन अवस्था है। वहीं पर सारी क्षमताएं उपस्थित हैं। जब मन की चेतना बाह्य जगत से निकलकर आंतरिक जगत में परिवर्तित हो जाती है, तब वही वास्तविक ज्ञान है। यहां बाह्य ज्ञान का कोई स्थान नहीं है।