कविता साहित्‍य

पुरा अवशेष

 

दीखते पुरावशेष निस्तेज ,आज भी करते हैं अट्टहास ।

नष्ट होते रहते पल पल,  गर्व से लेते हैं उच्छवास ।।

 

समाधि में रहे जो लीन, अमर है आज सभी के साथ।

शान्त अवशेष सा रहा बैठ, लगाया जादूगर सा आस।।

 

जगी आंखें गई अब खुल, लगी गैंती कुदाल की चोट।

पुराना बरसों का इतिहास, निकलने लगे हैं उनके बोल।।

 

हुआ प्रचार खूब चहुं ओर, आते हैं नये नये नित लोग।

कुतूहल जिज्ञासा है व्याप्त, खेलते राज नये नित रोज।।

 

रही रौनक थी कभी जहां ,आज भी रौनक करते लोग।

पुरास्थल जितना गुमनाम, पीटता आज वो उतना ढोल।।