अब बंद भी करो सब ठीक-ठाक है जैसी लीपापोती की परंपरा

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निर्मल रानी

आज हमारे देश में चारों ओर भ्रष्टाचार का मुद्दा चर्चा का मुख्‍य विषय बना हुआ है। ऐसा लगता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में ‘भ्रष्टाचार ही चुनाव का केंद्र बिंदु होगा। परंतु यदि हम भ्रष्टाचार के इन कारणों की तह में जाने की कोशिश करें तो हम यह पाएंगे कि हमारे देश में लीपापोती करने की जो आदत सी बन चुकी है, वह भी दरअसल भ्रष्टाचार की अहम जड़ों में से एक है। आज नेता हो या अधिकारी अथवा समाज के किसी और तबके का कोई भी व्यक्ति लगभग सभी की मनोवृति ऐसी बन चुकी देखी जा सकती है कि वह सब कुछ ठीक-ठाक न होते हुए भी यह दर्शाना चाहता है कि सब कुछ ठीक-ठाक ही है। और इसी तथाकथित ठीक-ठाक है के थोथे प्रदर्शन के पीछे छुपा होता है छोटे से लेकर बड़े से बड़ा भ्रष्टाचार, घोटाला, लापरवाही, अकर्मण्यता, हरामखोरी, रिश्वतखोरी तथा ढेर सारी गैरजि़म्‍मेदारियां आदि।

आईए,चंद उदाहरणों के साथ इन बातों को समझने की कोशिश की जाए। आज के यह तथाकथित वी वी आई पी और वी आई पी गण कहीं न कहीं आते-जाते रहते हैं। इनका भी कोई न कोई मार्ग होता है और कभी कभी शहरों के व्यस्त बाज़ारों या रास्तों से भी इन्हें गुज़रना पड़ता है। जलसे-जुलूस व सभाओं आदि के लिए इन्हें कहीं न कहीं आना जाना पड़ता है। अब ज़रा ग़ौर कीजिए कि स्वयं को समाजसेवी कहने वाले परंतु हमारी नज़रों में अति विशिष्टगण का रुतबा रखने वाले यह मंत्रीगण, मुख्‍यमंत्री अथवा किसी अन्य श्रेणी का वी आई पी जब तथाकथित तौर पर हमारी ही समस्याओं को सुनने, समझने या उसपर चर्चा करने के लिए या किसी योजना अथवा भवन आदि का उद्घाटन करने के सिलसिले में हमसे मिलने हमारे ही क्षेत्र में आता है तो उस समय उस शहर तथा $खासतौर पर उस क्षेत्र विशेष के रखरखाव के लिए क्या कुछ नहीं किया जाता, यह हम सभी भलीभांति जानते हैं। यदि उस कथित वी आई पी के गुज़रने वाले रास्ते में गड्ढे हैं तो भले ही वह विगत कई महीनों व कई वर्षों से क्यों न हों तथा जनता उन गड्ढों में कितनी बार गिर कर अपना नुकसान क्यों न कर चुकी हो परंतु जब विशिष्ट व्यक्ति अर्थात हमारे सेवक को उस रास्ते से गुज़रना है तो उन गड्ढों को तत्काल भर दिया जाता है। जिन रास्तों में कई महीनों से नालियां साफ नहीं हुई हैं या सफाई नहीं हुई है, जिन सड़कों पर कूड़े करकट के ढेर लगे पड़े हैं वह सभी स्थान वी आई पी के आने से पूर्व साफ सुथरे, चमकदार तथा आर्कषक हो जाते हैं। इतना ही नहीं इन रास्तों के किनारे चूने का छिड़काव भी कर दिया जाता है तथा रंगीन झंडियां आदि लगाकर उनका स्वागत किया जाता है।

यदि वी आई पी ऊंची हैसियत वाला है फिर तो जिस दिन वह किसी शहर में पधारता है, उस दिन तो गोया उस शहर के भाग्य ही खुल जाते हैं। शहर वालों को कम से कम इतनी देर तक बिजली व पानी की अबाध आपूर्ति की पूरी गारंटी रहती है, जितनी देर कि उक्त विशिष्ट व्यक्ति शहर की शोभा बढ़ा रहा है। जिस भवन में वी आई पी जाता है उसे भी तत्काल तौर पर ऐसा कर दिया जाता है कि वह भवन देखने में ठीक-ठाक लगे और माननीय महोदय यहां से खुश होकर जाएं। उन्हें यह एहसास इसलिए नहीं कराया जाता कि यह सब केवल उनके स्वागत के लिए ही किया गया है। बल्कि दरअसल इन सबके पीछे छुपा होता है नाकामी, निठल्लेपन, भ्रष्टाचार और गैर जि़ मेदारी का एक ऐसा पहलू जो धीरे-धीरे हमारे देश को दीमक की तरह खाए जा रहा है। वास्तव में इस तरह की थोथी नुमाईश के द्वारा ‘समाजसेवी अतिथि को यह दिखाया जाता है कि हमारा पूरा का पूरा शहर ही इसी प्रकार चमक-दमक रहा है। हमारे शहर में बिजली-पानी की आपूर्ति इसी प्रकार 24 घंटे बनी रहती है। हमारे पूरे शहर की सड़कें ऐसी ही चिकनी, सपाट, साफ-सुथरी हैं। और इसी झूठे व मक्कारीपूर्ण प्रदर्शन के पीछे हो जाता है बड़े से बड़ा भ्रष्टाचार या घोटाला।

पिछले दिनों बराड़ा कस्बे में एक फ्लाईओवर का उद्घाटन हरियाणा के मु यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा किया गया। वैसे भी इस  फ्लाईओवर के निर्माण की गति शुरु से ही बहुत धीमी थी। परंतु किसी प्रकार यह तैयार हुआ। इस लाईओवर के दोनों ओर स्ट्रीट लाईट का प्रबंध किया गया है। ज़ाहिर है उद्घाटन से पूर्व लाईओवर की चूना-सफेदी की गई तथा उसपर लगे बिजली के खंभों को सिल्वर पेंट द्वारा चमकाया गया। आपको यह जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि उस फलाईओवर पर जिस स्थान पर उद्घाटन का पत्थर लगा था उसी स्थान तक लगे बिजली के खंभों को पेंट किया गया था। वह भी आधा-अधूरा। उसके बाद आगे के खंभों को न तो तब पेंट किया गया था और न ही तब से लेकर अब तक पेंट किया गया है। आखिर इस प्रकार की प्रशासनिक ‘कार्यकुशलता का अर्थ क्या है? यह लाईओवर तो जनता के लिए, जनता की सहूलियतों व उसके सुख-दु:ख के लिए बना है। परंतु इसकी चमक-दमक में होने वाली लीपापोती तथा इस लीपापोती की आड़ में यह प्रदर्शित करना कि सब कुछ ‘ठीकठाक है, आखिर इस प्रवृति का अर्थ क्या है? क्या सरकार के पास पूरे  फ्लाईओवर के खंभों को पूरी तरह से पेंट किए जाने के लिए धन की कमी थी या मुख्‍यमंत्री को चंद पेंट किए हुए खंभे दिखाकर यह समझाने की कोशिश कर दी गई था कि फ्लाईओवर पर लगे सभी खंभे पेंट हो चुके हैं।

ऐसी ही एक घटना अंबाला छावनी के मुख्‍य बस स्टैंड के उद्घाटन के समय की याद आती है जबकि प्रकृति ने ही ऐसी प्रशासनिक लापापोती की पोल खोलकर रख दी। स्वर्गीय बंसी लाल हरियाणा के मु यमंत्री के रूप में अपनी सत्ता के अंतिम दिन गुज़ार रहे थे। जाते-जाते वह अपने नाम की अधिक से अधिक उद्घाटन शिलाएं तमाम सरकारी इमारतों में लगाकर जाना चाह रहे थे। उन्हीं इमारतों में से एक भवन अंबाला छावनी बस अड्डे का भी था। उस नवनिर्मित हुए बस अड्डे का काम अभी भी पूरी नहीं हुआ था कि मुख्‍यमंत्री कार्यालय द्वारा बस अड्डे के भवन के उद्घाटन करने की तिथि घोषित हो गई। दिन-रात तेज़ी से काम कर सरकार को यह बता दिया गया कि बस अड्डा पूरी तरह से ठीक-ठाक है तथा उद्घाटन के लिए तैयार है। वह तिथि व निर्धारित समय आ गया। मुख्‍यमंत्री आए उद्घाटन समारोह बस स्टैंड के मुख्‍य विशाल शेड में संपन्न हुआ। अभी मुख्‍यमंत्री महोदय का भाषण चल ही रहा था कि काफी तेज़ बारिश शुरु हो गई। इस भारी बारिश के चलते पूरे सभा स्थल की छत टपकने लगी। चारों ओर पानी ही पानी हो गया। गोया जिस प्रकार की लीपापोती प्रशासन ने करनी चाही उसकी पोल प्रकृति ने खोलकर रख दी।

लीपापोती तथा सब ठीकठाक दिखाई देने जैसी कमज़ोर व खोखली परंपरा कोई गांव,शहर या राज्यस्तर तक ही सीमित नहीं है। बल्कि दुर्भाग्यवश शायद यह प्रवृति हमारी परंपराओं में ही शामिल हो चुकी है और राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के आयोजनों में भी हम अपनी इसी प्रवृति या परंपरा के शिकार होते देखे जाते हैं। जैसे गत् वर्ष भारत में पहली बार राष्ट्रमंडल खेल आयोजित हुए। यह तो भला हो हमारे देश के खिलाडिय़ों का जिन्होंने अप्रत्याशित रूप से सौ से अधिक पदक जीतकर देश की इज्ज़त बचा ली। क्योंकि शासन व प्रशासन के लोगों की तरह खेल जैसी प्रतिस्पर्धाओं में लीपापोती या जबरन सब ठीक-ठाक है कहने से पदक कतई हासिल नहीं हो सकता। अन्यथा इस आयोजक मंडल के सदस्यों ने तो देश की नाक कटवाने में अपनी ओर से तो कोई कसर ही बाकी नहीं रखी थी। ज़रा कल्पना कीजिए कि उन विदेशी मेहमानों को या विदेशी खिलाडिय़ों को आज जब यह पता लग रहा होगा कि भारत में हुए राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति की अमुक-अमुक हस्तियां जो कल तक अहंकार तथा सत्ता का प्रतीक बनी हुई दिखाई दे रहीं थीं, वही हस्तियां आज जांच एजेंसियों द्वारा की जाने वाली पूछताछ, संदेह व फज़ीहत की शिकार हैं तो उनके दिलो-दिमाग पर हमारे देश की क्या छवि बन रही होगी? यह ऐसे निठल्ले, हरामखोर तथा घोटालेबाज़ शासनिक व प्रशासनिक अधिकारियों व जि़ मेदार लोगों की ही देन थी कि राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी के दौरान कभी कोई पुल गिर गया तो तमाम जगहों पर गड्ढे नहीं भरे जा सके। कई भवनों को आधा-अधूरा रखकर ही उन पर लीपापोती कर दी गई। और आिखरकार ऐसे तमाम गड्ढों को व गंदगी, कूड़ा-करकट आदि को छुपाने के लिए उन बेशकीमती हार्डिंग्स का सहारा लिया गया जिन्हें किन्हीं अन्य स्थानों पर लगाने के लिए बनवाया गया था। कहीं गमले रखकर अपनी इज्ज़त बचाने की कोशिश की गई तो कहीं रातोंरात घास व पौधे लगाकर लीपापोती की गई। और इन्हीं सब लापरवाहियों के परिणामस्वरूप ही निकल कर आया है देश का सबसे बड़ा राष्ट्रमंडल खेल घोटाला। लीपापोती करने व सब कुछ ठीक-ठाक है जैसा थोथा प्रदर्शन करने से हमें बाज़ आना चाहिए तथा जहां भी इस प्रकार की कोशिशें की जा रही हों, उसका न सिर्फ पर्दाफाश करना चाहिए बल्कि सामाजिक स्तर पर इनका विरोध भी किया जाना चाहिए। ऐसी परंपराओं का प्रबल विरोध निश्चित रूप से देश में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में सहायक साबित होगा।

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