रवींद्रनाथ टैगोर : जिसने तीन देशों को दिए राष्ट्रगान व भारत को पहला नोबेल पुरस्कार

भारतीय इतिहास गौरवशाली गाथाओं से भरा हुआ है | इस पावन धरा पर विश्वविजेताओं की संख्या का भी कोई हिसाब नही | किन्तु इतिहास के राजाओं और पराक्रमियों से ही राष्ट्र महान नहीं बनता | क्या कोई सोच सकता है, कि किसी की लिखी हुई कविताएँ नोबेल पुरस्कार से विभूषित करा सकती है ? कोई भी गौरवशाली राष्ट्र राष्ट्रगान के बिना अधूरा सा लगता है, क्योंकि राष्ट्रगान उस देश के गौरव का ऐसा गीत होता है, जो प्रत्येक देशवासी को देश पर गर्व, राष्ट्रप्रेम, समर्पण और जनहित करना सिखाता है | भारत का गौरवशाली राष्ट्रगान जन–गण-मन है | आइये जानते हैं उस कविता और राष्ट्रगान के बारे में ?

कोलकाता में एक समाज-सुधारक के पुत्र के रूप में 7 मई 1868 को जन्मा था राष्ट्रगान का लेखक, जिसका नाम था रवींद्रनाथ ठाकुर | हालांकि उन्हें रवींद्रनाथ टैगोर के नाम से बहुतायत से जाना जाता है | नाम की पुष्टि हमेशा से विवादों में रहकर भी पूर्णता को प्राप्त नहीं कर पाई है | कहा जाता है, कि रवींद्रनाथ जी का परिवार अपने नाम के साथ ‘ठाकुर’ का उपयोग करता था और बाद में उन्हें ‘टैगोर’ कहा जाने लगा। बाल्यकाल से ही हिंदी प्रेमी रहे रवींद्रनाथ ने आठ वर्ष की उम्र में अपनी पहली कविता लिखी और 16 वर्ष के हुई तो उनकी लघुकथा ने सबको मुग्ध कर दिया | टैगोर के बंग्ला गीतों का संग्रह “गीतांजलि” बहुत लोकप्रिय हुआ | “गीतांजलि” के साथ अन्य संग्रहों से गीत चुनकर बनाए गये अंग्रेजी गद्यानुवाद संग्रह के लिए साहित्यिक क्षेत्र में उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया, जिसे प्राप्त करने वाले वे प्रथम भारतीय हैं | जिस संग्रह को पुरस्कार के लिए चुना गया उसका नाम कवि ने “गीतांजलि : सॉंग ऑफ़रिंग्स” रखा था | रवींद्रनाथ टैगोर न केवल कवि वरन निबंधकार, उपन्यासकार, नाटककार व गीतकार भी थे | भारत को “जन–गण-मन”, श्रीलंका को “श्रीलंका माता” और बांग्लादेश को “आमान सोनार बंग्ला” नामक राष्ट्रगान की सौगात देने वाले टैगोर एकमात्र भारतीय कवि हैं | उनकी रचनाओं में गीतांजली, गीताली, गीतिमाल्य, कहानी, शिशु, शिशु भोलानाथ, कणिका, क्षणिका, खेया आदि प्रमुख हैं | उन्होंने कई किताबों का अनुवाद अंग्रेज़ी में किया। अंग्रेज़ी अनुवाद के बाद उनकी रचनाएं जगत का दिल छू लिया | हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ठुमरी शैली से इनके गीत प्रभावित हैं |

वर्तमान समाज और प्राचीन समाज की समीक्षा करें तो विचार आता है, कि कागजी लेखन को कितने मनोरम रूप में पढ़ा जाता होगा | रवींद्रनाथ टैगोर की साहित्यिक उपलब्धियां उस समय के साहित्यिक समाज की चरम सृजनात्मकता का बखान चीख – चीखकर कर रही है | आज समाज विकास की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए अनवरत प्रयास कर रहा है, किन्तु सही और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव 21वी सदी के लिए शापित है | आधारभूत शिक्षा, नैतिक मूल्य और व्यवहारिक ज्ञान आज सुनियोजित समाज की अपेक्षा है, जिससे बढ़ता अपराध, द्वेष की भावना, भाई-भतीजावाद, आतंकवाद, हिंसा और दुराचार कम और ख़त्म हो सके | रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने लन्दन के विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा ली किन्तु डिग्री प्राप्त किए बिना ही भारत लौट आए | उनसे सीखा जा सकता है, कि केवल डिग्री प्राप्त करना ही शिक्षा की पूर्णता का प्रमाण नहीं है, बल्कि यथार्थ ज्ञान का होना महत्वपूर्ण है |

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