हिन्दी उर्दू एक सिर दो धड़ है

—विनय कुमार विनायक
जवाहरलाल नेहरू का कहना है,
हिन्दी उर्दू एक सिर दो धड़ है!

इससे सटीक परिभाषा हो नहीं
सकती हिन्दी व उर्दू भाषा की!

हिन्दी वाक्य रचना में संस्कृत,
औ’कुछ देशी-विदेशी शब्द होते!

इन विदेशी शब्दों में अरबी एवं
फारसी सायास मिलाई जाती है!

उर्दू जबतक विदेशी लिपी में है,
तब तक जनता नहीं चाहती है!

नस्तालीक उर्दू की है दुखती रग,
नागरी लिपि में उर्दू फैलेगी जग!

उर्दू की इकलौती विधा ये गजल,
गजल होती नहीं है काव्य प्रांजल,

गजल का क्षेत्र है, इश्क मुहब्बत,
या ईश्वर, अल्लाह,खुदा और रब!

अरबी गजल में औरत की बातें,
फारसी इश्क मजाजी से हकीकी!

भारतीय गजल का जनक खुसरो
एक विदेशी,जिसे प्रिय थी हिन्दी!

पच्चीस मिसरे तक होती गजल,
काव्य-महाकाव्य ना होती गजल!

गजल तुकबंदी के, बल पे टिकी,
गजल में देश-धर्म, संस्कृति नहीं!

गजल की पहचान साम्प्रदायिक,
साम्प्रदायिक सोच-विचार गजल!

गजल में धौंस जमाने की प्रवृत्ति,
गजल कोसने हेतु है विधा-विधि!
—विनय कुमार विनायक
दुमका, झारखण्ड-814101.

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