मीडिया समाज

देश को बदनाम करती बेलगाम कट्टरपंथी ताक़तें

निर्मल रानी

extremism in indiaभारत में विभिन्न धर्मों में सक्रिय कट्टरपंथी शक्तियां अपने ज़हरीले व नापाक अभियान को आगे बढ़ाने में अपनी पूरी ताक़त झोंके हुए हैं। परिणामस्वरूप देश में सांप्रदायिक सद्भाव बढऩे के बजाए नफरत का बाज़ार गर्म होता जा रहा है। और इसके नतीजे हमें समय-समय पर अलग-अलग रूप में देखने को मिलते रहते हैं। कहीं इस प्रदूषित एवं ज़हरीले वातावरण की परिणिति सांप्रदायिक दंगों के रूप में हो जाती है जिसमें प्रायरू बड़े पैमाने पर होने वाले जान व माल के नुकसान की खबरें आती रहती हैं। कभी धर्म व जाति आधारित उपेक्षा किए जाने के समाचार नौकरी,बैंक लोन व मकान किराए पर लेने या ज़मीन-जायदाद खरीदने व बेचने जैसे विषयों को लेकर सुनने में आते रहते हैं। एक साधारण व्यक्ति चाहे वह किसी भी धर्म का हो कभी-कभी वह दूसरी कट्टरपंथी शक्तियों के निशाने पर आकर उपरोक्त हालात का सामना करने के लिए मजबूर हो जाता है। परंतु जब ऊंची हैयियत रखने वाले लोगों विशेषकर सेलेब्रिटिज़ को इन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है तो उनके पास देश को छोड़कर अन्यत्र जा बसने का भी विकल्प खुला रहता है। जैसाकि विश्ववि यात भारतीय पेंटर मकबूल फिदा हुसैन ने किया था। एक पेटिंग को लेकर उनके विरुद्ध कुछ कट्टरपंथी ताकतों के मुट्ठीभर लोगों ने ऐसा आतंक फैलाया व फिदा हुसैन की वर्कशॉप व उनकी पेंटिग की नुमाईशों में तोडफ़ोड़ व हंगामा किया कि उन्हें मजबूर होकर भारतवर्ष छोड़कर कतर की नागरिकता लेकर वहां जाकर बसना पड़ा। और आखिरकार उन्होंने 9 जून 2011 को लंदन में 95 वर्ष की आयु में निर्वासन की अवस्था में ही अपनी जन्मभूमि से दूर अपने प्राण भी त्याग दिए। फिदा हुसैन के देश छोडऩे पर भारत व दूसरे देशों में भी इस बात को लेकर अच्छी-खासी बहस छिड़ी थी कि भारत सरकार मकबूल फ़िदा हुसैन को उनकी सुरक्षा की गारंटी दिए जाने में क्योंकर असफल रही और फिदा हुसैन के दिल में अपनी दहशत बसा पाने में कट्टरपंथी ताकतें किस प्रकार कामयाब हो गईं?

एक बार फिर विश्वरूपम नामक एक फिल्म को लेकर ऐसे ही स्वर कमल हासन नामक प्रसिद्ध कलाकार के मुंह से निकलते दिखाई दिए। उनकी इस फ़िल्म को हालांकि सेंसर बोर्ड ने मंज़ूरी दे दी थी। इसके बावजूद कुछ कट्टरपंथी शक्तियों ने फिल्म के कुछ दृश्यों पर आपत्ति जताई। अपनी पूरी धन-संपत्ति इस फिल्म के निर्माण पर दांव पर लगा चुके कमल हासन जब कट्टरपंथियों के विरोध से दुरूखी हुए तो उन्होंने भी एक संवाददाता स मेलन में यही शब्द कहे कि वे स्वयं धर्मनिरपेक्ष विचारधारा रखते हैं तथा एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में ही रहना पसंद करेंगे। उन्होंने कहा कि वे देश के ही किसी दूसरे धर्मनिरपेक्ष राज्य में जा बसेंगे। परंतु यदि ऐसा न हुआ तो वे मकबूल फिदा हुसैन की तरह देश छोड़कर भी जा सकते हैं। मकबूल फिदा हुसैन द्वारा देश छोड़कर जाने के बाद कमल हासन द्वारा भी उसी प्रकार की आजिज़ी भरी बात करना तथा पूरी मायूसी के साथ सार्वजनिक रूप से इस बात की घोषणा करना निश्चित रूप से इस बात के संकेत देता है कि कट्टरपंथी ताकतें न केवल पूर्ववत् सक्रिय हैं बल्कि दिन-प्रतिदिन अपना शिकंजा और अधिक मज़बूत करती जा रही हैं।

पिछले दिनों कुछ ऐसा ही विवाद सुपर स्टार शाहरुख खान जैसे महान अभिनेता को लेकर उस समय छिड़ गया था जबकि शाहरुख खान के एक लेख को लेकर बेवजह यह प्रचारित किया गया कि वे भारत में स्वयं को असुरक्षित महसूस करते हैं। उनके इस बयान पर और अधिक हंगामा उस समय खड़ा हो गया जबकि उनके हमदर्द के रूप में दुनिया के सबसे असुरक्षित व आतंकवाद को संरक्षण देने वाले देश पाकिस्तान के आतंकवादी सरगना हाफिज़ मोहम्मद सईद तथा वहां के गृहमंत्री रहमान मलिक एक साथ एक ही स्वर में बोलते दिखाई दिए। अपने देश के गवर्नर से लेकर आए दिन होने वाली आम लोगों की सामूहिक हत्याओं से बेखबर इन पाक नेताओं को शाहरुख खान की सुरक्षा की चिंता सताने लगी। पाकिस्तान निरूसंदेह हमारा पड़ोसी और कभी एक ही भारतवर्ष का हिस्सा ज़रूर रह चुका है। परंतु वर्तमान हालात ऐसे हैं कि दोनों ही देश एक-दूसरे देशों में होने वाली विवादित गतिविधियों पर पूरी नज़र रखते हैं। लिहाज़ा बावजूद इसके कि दुनिया पाकिस्तान को ही इस समय विश्व का सबसे असुरक्षित देश मान रही है फिर भी पाकिस्तान ने शाहरुख खान से हमदर्दी दिखाकर केवल उनसे हमदर्दी जताने मात्र का ही काम नहीं किया है बल्कि शाहरुख खान की सुरक्षा के प्रति चिंता जताने का ढोंग करने वाले अपने उन बयानों से दुनिया को यह दिखाने की कोशिश भी की, कि भारत एक सुरक्षित देश नहीं है। बहरहाल शाहरुख के विषय पर देश की सभी राजनैतिक पार्टियों तथा भाारत सरकार द्वारा पाकिस्तान को उनकी कथित चिंता का दो टूक जवाब उन्हें आईना दिखाते हुए दे दिया गया है।

यहां भी सवाल यही है कि इस प्रकार की अभिव्यक्ति या संदेहपूर्ण व विवादास्पद बयान या लेख किसी भी धर्म के लोगों द्वारा आखिर किस मजबूरीवश और क्योंकर व्यक्त किए या लिखे जाते हैं। देश में आखिर कौन सी ताकतें ऐसी हैं जो किसी भी धर्म से संबंध रखने वाले एक लोकप्रिय एवं धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति के दिल में भय या असुरक्षा का वातावरण पैदा करती हैं। क्या यह सांप्रदायिक व कट्टरपंथी ताकतें स्वयं को इतनी अधिक संगठित व मज़बूत कर चुकी हैं कि मकबूल फिदा हुसैन या कमल हासन जैसे प्रतिष्ठित भारतीयों की शर्त पर इन्हें नियंत्रित नहीं किया जा सकता? यदि ऐसा है तो इस बात की क्या गारंटी कि देश में भविष्य में कोई दूसरा फिदा हुसैन या कमल हसन देश से अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर किसी अन्य देश में जाने व वहां पनाह लेने की बात नहीं करेगा? विश्व के सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने का परचम लहराने के बावजूद हमारे ही देश में धर्मस्थलों को क्षतिग्रस्त करने व उन्हें जलाए जाने, धर्मग्रंथों को फाडऩे व जलाने, धर्म व जाति विशेष के लोगों को धर्म व जाति विशेष के लोगों द्वारा मारने, पीटने, ज़िंदा जलाने व उनकी हत्याएं किए जाने के समाचार भी आते रहते हैं। और ज़ाहिर है जब देश के किसी कोने से किसी भी धर्म या संप्रदाय का कोई भी व्यक्ति इन बेलगाम कट्टरपंथियों द्वारा छेड़ी गई हिंसा का शिकार होता है उस समय हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को एक बड़ा झटका ज़रूर लगता है। और तभी मौके की तलाश में बैठी हमारी दुश्मन ताकतें ऐसे हादसों को रेखांकित करने का व इससे लाभ उठाने का प्रयास करती हैं।

हालांकि हमें यह भलीभांति याद है कि 1947 में देश की स्वतंत्रता की बुनियाद में रखी गई दो महत्वपूर्ण ईंटें सांप्रदायिकता के लहू से सराबोर हैं। एक तो देश का हुआ रक्तरंजित विभाजन जिसमें लाखों लोगों ने अपनी जानें गंवाईं। और दूसरा महात्मा गांधी की हत्या जिन्हें कि एक ऐसी सांप्रदायिक विचारधारा ने शहीद कर दिया जोकि आज भी देश में पूरी तरह सक्रिय है तथा अपने सांप्रदायिकतावादी मिशन को आगे बढ़ा रही है। परंतु हमें इस बात पर भी गर्व है कि इन सबके बावजूद भारत वर्ष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों के धर्मनिरपेक्ष भारत के रूप में दुनिया में अपनी पहचान बना पाने में सफल हुआ है। और इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि देश की केंद्रीय सत्ता आज तक किसी भी सांप्रदायिकतवादी शक्तियों के हाथों में स्वतंत्र रूप से नहीं जा सकी। परंतु यहीं पर एक दूसरा सवाल यह भी उठता है कि जब देश की सत्ता का नियंत्रण प्रायरू धर्मनिरपेक्ष ताकतों के हाथों में ही रहा करता है फिर आखिर सांप्रदायिकतावादी व कट्टरपंथी शक्तियों के दिन-प्रतिदिन और अधिक संगठित व मज़बूत होने का कारण क्या है? क्यों नहीं देश की सरकारें देश की बदनामी का कारण बनने वाले ऐसे व्यक्तियों, संगठनों व शक्तियों को नियंत्रित करती हैं? यदि भारत को धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में दुनिया में अपनी पहचान बनाए रखनी है तो देश से कट्टरपंथी ताकतों को नियंत्रित या प्रतिबंधित ही नहीं बल्कि इन्हें जड़ से समाप्त किए जाने के कारगर उपाय भी तलाश करने होंगे। सभी धर्मों में सक्रिय सांप्रदायिक शक्तियां दरअसल अपने धर्म के लोगों की शुभचिंतक नहीं बल्कि अपनी सं या का भय दिखाकर उनसे सत्ता की सौदेबाज़ी करने मात्र की इच्छुक रहती हैं। परंतु अब ज़रूरत इस बात की है कि ऐसे सांप्रदायिकतावादी चेहरों व संगठनों को बेनकाब किया जाए तथा इनका बहिष्कार किया जाए। और ज़रूरत पडऩे पर इनके विरुद्ध स त से स त कानूनी कार्रवाई की जाए।