चुनाव राजनीति

राहुल गांधी की चुनावी चुनौतियां

-आदर्श तिवारी- rahul

लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. सभी पार्टियां चुनाव के लिए कमर कस चुकीं हैं. अगर सभी शीर्ष नेताओं की बात की जाये तो सबसे अधिक दबाव में अगर कोई नेता है तो वो है कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी. क्योंकि इस समय उनके कंधों पर 125 वर्ष पुरानी पार्टी को पुनर्जीवित करने का बोझ है, जिसके कैडर में बिरोधियो से लड़ने की प्रेरणा, उत्साह और जज्बा बिल्कुल ही नहीं दिखता. बल्कि हाल के वर्षो में तो यह कैडर डरपोक और चापलूस लोगो की ऐसी भीड़ बनकर रह गया है, जिसके लिए आम आदमी के मन में न तो कोई सम्मान बचा है और न ही भरोसा. बिधानसभा चुनाव में पराजय के बाद अब लोकसभा चुनाव में राहुल पर उस शख्स से टक्कर लेने की भी जिम्मेदारी है, जिसे न केवल खेल का नियम पता है, बल्कि मीडिया और बड़े उद्योगपतियों का समर्थन भी प्राप्त है. अपने राज्य में तीसरी बार मुख्यमंत्री बना यह शख्स बड़े–बड़ों को पीछे छोड़ते हुए न केवल अपनी पार्टी में एकमेव चेहरा बनकर उभरा है, बल्कि देश भर में यह अपनी छाप छोड़ने कि कोशिश भी कर रहा है और लगभग सफल भी हो रहा है .भारत को तमाम संकटों से बचाने में केवल वही सक्षम है.

विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद कांग्रेस पूरी तरह नर्वस है और आम चुनाव बिल्कुल सर पर है. जनता कांग्रेस से पूरी तरह त्रस्त है और सत्ता परिवर्तन के लिए परेशान. ऐसे में कांग्रेस के पास राहुल के सिवाय कोई और उम्मीद नहीं है जो पार्टी को जीत दिला सके. राहुल के जिम्मे न सिर्फ सत्ता को बचाने की चुनौती है बल्कि आपने आप को भी साबित करने का मौका है. दूसरी ओर जहां नरेंद्र मोदी लगातार आपने आप को साबित करते आये हैं. फिर चाहें वो गुजरात में हैट्रिक लगाना हो या आम जनता के बीच अपनी बात पहुचना हो. जिस तरह की भीड़ नरेंद्र मोदी की जनसभाओं में हो रही है, इससे तो नहीं लगता की राहुल ऐसा कर पाएंगे. जिस तरह लोग मोदी को सुनने के लिए आतुर है, शायद और किसी नेता को नहीं. मोदी भी जनता को खुश करने के लिए तमाम तरह के आभार अपने भाषण में शुरू से अंत तक करते रहते हैं. जिससे जनता पूरी तरह मोदीमय हो जाती है.मोदी की पटना रैली की बात करे तो लोग बम धमाकों के बाद भी वही जमे रहे और पूरा भाषण सुनने के बाद ही वहां से गये. मोदी की लोकप्रियता का इससे बड़ा उदाहरण नहीं मील सकता.दूसरी तरफ अगर कांग्रेस की बात की जाय तो कांग्रेस पूरी तरह पस्त है.जनता पूरी तरह कांग्रेस से खिन्न है .बिधानसभा चुनाव में इसका नमूना जनता ने दिखा दिया था. क्या राहुल कुछ ऐसा कर पाएंगे जिससे कांग्रेस का जनाधार फिर वापस मिल जाये ? ये तो अब चुनाव से नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा कि आखिर किसे जनता अपना नेता मानती है .बड़ा सवाल ये है कि क्या राहुल गांधी में वह हौसला और आत्मविश्वास है, जिसकी बदौलत वह सारे आकलनों को झूठलाते हुए नेहरु-गांधी परिवार के चौथे प्रधानमंत्री बन सकें ? इस सवाल का जबाब तो चुनाव के नतीजे आने के बाद ही मालूम पड़ेगा.

राहुल को यह सच्चाई जाननी चाहिए कि युवा, ईमानदार, बुद्धिमान, ऊर्जावान, विदेश में शिक्षित, मशीनों को समझने वाले जिन सहयोगियों से वह घिरे है, वे पार्टी को वोट नहीं दिला सकते और न ही वो खोया हुआ जनाधार! क्योंकि उनके पास न तो कोई उचित सलाह है और न ही कोई नई योजना. चूंकि ये वो लोग है जो किसान क्या होता है. लोगों की जरूरी समस्या क्या है कुछ नहीं जानते. इसका सीधा कारण यह है कि इन्होंने कभी चुनाव लड़ा ही नहीं और न ही आम लोगों की भावनाओं को समझने की कोशिश. अब यह बहुत ही दिलचस्प होगा की लोगों की धारणा किसके साथ है. चूंकि, धारणा के मोर्चे पर कांग्रेस को जबरदस्त मात मिली है. 1980 के दशक में रक्षा मंत्री से इस्तीफा देने के बाद जिस तरह एक पर्ची लिए बीपी सिंह ने राजीव गांधी के खिलाफ बिना किसी अहम सुबूत और न्यायिक फैसले के बिना बीपी सिंह ने राजीव गांधी भ्रष्ट है, का नारा दिया था और सत्ता से कांग्रेस को बाहर का रास्ता भी दिखाया क्योंकि उस समय भी लोगों की धारणा कांग्रेस के खिलाफ थी और आज भी ! यह राहुल के लिए दुखद की बात है कि भले ही वह ईमानदार है, पर उनकी पार्टी में जिस तरह से घोटाले इत्यादि हुए है, इससे न केवल पार्टी का वरन् सभी नेताओं की छबी धूमिल हुई है और लोगों के मन में यह धारणा बन चली है, कि कांग्रेस भ्रष्टाचार की जननी है. लोकपाल विधेयक पास करने के बाद राहुल गांधी की वह छबी नहीं बन सकी कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ सकते हैं.फिलहाल राहुल गांधी जिस तरह से छोटे-छोटे मजदूरों से मिल रहे हैं, बुनकरों से मिल रहे हैं, चुनावी रैलियां कर रहे हैं, एक बात तो साफ है कि राहुल कोई भी चुक नहीं करना चाहते जो भी हो अब चुनाव होने में चंद दिन ही बचे हैं, अब जनता को फैसला करना है कि वो किस पर भरोसा जताती है और अपना मत किसे देती है. क्या जनता एक बार फिर कांग्रेस के लोक लुभावन वादों के साथ जाती है, या कांग्रेस के उन वादों को याद करके जो उन्होंने पूरा नहीं किया उनके विरोध में अपना मत करती है।