राजस्थान -कांग्रेस की हार का कारण नेताओं की आपसी फूट तो नहीं?

                   रामस्वरूप रावतसरे

    राजस्थान की सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस को बड़ी शिकस्त झेलनी पड़ी। उपचुनाव से पहले कांग्रेस के पास चार सीटें झुंझुनूं, दौसा, रामगढ़ और देवली उनियारा कांग्रेस के पास थी। अब केवल एक सीट दौसा बची है। शेष तीन सीटें झुंझुनूं, रामगढ़ और देवली उनियारा भाजपा ने छीन ली। भाजपा ने सात में से पांच सीटों पर जीत दर्ज की जबकि कांग्रेस को केवल एक सीट नसीब हुई। डूंगरपुर जिले की चौरासी विधानसभा सीट पर बीएपी का कब्जा बरकरार रहा।

     भजनलाल शर्मा को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया गया, तब उनके नेतृत्व क्षमता को लेकर अनेक सवाल उठे। छह माह बाद लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 25 में से 11 सीटों पर भाजपा की हार ने सीएम शर्मा पर अनेक सवाल उठाए। अब उपचुनाव में 7 में से 5 सीटों पर जीत मिलने से भजनलाल शर्मा प्रदेश में सबसे बड़े नेता बन गए है। शर्मा के लिए सबसे अनुकूल बात यह है कि भाजपा में उनके नेतृत्व को चुनौती देने वाला कोई नहीं है। पांच सीटों पर जीत इसलिए मायने रखती है कि गत चुनाव में सिर्फ सलूंबर सीट पर भाजपा की जीत हुई थी। देवली उनियारा, झुंझुनूं और रामगढ़ की सीट भाजपा ने कांग्रेस से छीनी, जबकि खींवसर की सीट आरएलपी से ली गई। यह भी तब जब लोकसभा के चुनाव में खींवसर, देवली और झुंझुनूं से कांग्रेस और आरएलपी के सांसद बने। देवली में सांसद हरीश मीणा, झुंझुनूं में बृजेंद्र ओला और खींवसर में सांसद हनुमान बेनीवाल ने पूरी ताकत लगा रखी थी।

    झुंझुनूं में तो सांसद ओला के पुत्र अमित ओला और खींवसर सांसद बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल उम्मीद थी। इतना ही नहीं, देवली वाली सीट पर टोंक के विधायक पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने पूरी ताकत लगा रखी थी। अलवर की रामगढ़ सीट पर आमतौर पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। इन विपरीत परिस्थितियों के बाद भी भाजपा को इन सीटों पर जीत मिली है। स्वाभाविक है कि इसका श्रेय सीएम भजनलाल शर्मा को ही मिलेगा। जहां तक आदिवासी बाहुल्य डूंगरपुर की चौरासी सीट का सवाल है तो भले ही बीएपी के अनिल कटारा ने 23 हजार मतों से जीत दर्ज की हो लेकिन गत चुनाव में इसी पार्टी के राजकुमार रोत 70 हजार मतों से जीते थे। मौजूदा समय में राजकुमार रोत सांसद हैं, लेकिन फिर भी 48 हजार मतों की खाई को पार किया गया, यानी चौरासी में भी भाजपा का प्रभाव बढ़ा है। कहा जा सकता है कि अब भजनलाल शर्मा प्रदेश में भाजपा की राजनीति में सबसे बड़े नेता है। प्रदेश का कोई भी नेता उन पर दबाव डालने की स्थिति में नहीं है।

    राजस्थान के उपचुनावों में सबसे बड़ा झटका आरएलपी के सांसद हनुमान बेनीवाल और प्रदेश के कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा को लगा है। दोनों ही नेता बड़बोले है। बेनीवाल तो स्वयं को प्रदेश की राजनीति का सबसे बड़ा नेता मानते हैं और किरोड़ी मीणा को यह मुगालता है कि उनकी वजह से प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी है। इतने गुमान के बाद भी बेनीवाल अपनी पत्नी और किरोड़ी लाल मीणा अपने भाई को चुनाव नहीं जितवा सके। किरोड़ी के समर्थक अब भले ही यह आरोप लगाए कि दौसा सीट पर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा अपनी ब्राह्मण जाति के वोट नहीं दिला सके लेकिन मीणा की हार का सबसे बड़ा कारण किरोड़ी लाल का बड़बोलापन ही रहा है।

इधर खींवसर में प्रचार के दौरान बेनीवाल ने कांग्रेस खासकर जाट नेताओं पर जो प्रतिकूल टिप्पणी की, उसका खामियाजा कनिका बेनीवाल को उठाना पड़ा। बेनीवाल ने 2023 का चुनाव मात्र 2059 मतों से जीता था लेकिन इन मतों की जीत को बेनीवाल ने गंभीरता से नहीं लिया, इसलिए उनकी पत्नी पुराने उम्मीदवार रेवत राम डांगा से 14 हजार मतों से हार गई। इसमें कोई दो राय नहीं कि हनुमान बेनीवाल और किरोड़ी लाल मीणा का राजनीतिक सफर संघर्षपूर्ण रहा है। दोनों ही लोकप्रिय नेता है लेकिन उनकी लोकप्रियता पर उनका बड़बोलापन पानी फेर देता है।

   कांग्रेस की हार को लेकर राजनीति के जानकारों का कहना है कि इन उपचुनावों में कांग्रेस ने बेमन से चुनाव लड़ा। कांग्रेस के कई नेता चुनाव प्रचार में गए ही नहीं। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, सचिन पायलट, गोविंद सिंह डोटासरा सहित 40 नेता स्टार प्रचारक बनाए गए थे लेकिन कई नेताओं ने प्रचार में रुचि नहीं दिखाई। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली, केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह जैसे नेता सिर्फ रामगढ़ सीट तक ही सीमित रहे। सभी सातों सीटों पर प्रचार करने भी नहीं गए। यही वजह रही कि कांग्रेसी प्रत्याशी चुनावी माहौल तक नहीं बना पाए। पूर्व सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने ज्यादातर समय महाराष्ट्र चुनाव में दिया हालांकि सचिन पायलट ने दौसा, रामगढ़ और देवली उनियारा में चुनावी सभाएं की। दौसा में वे दो बार गए लेकिन प्रत्याशी चयन के बाद से लेकर मतदान तक करीब दो सप्ताह के समय में ज्यादातर समय वे महाराष्ट्र में व्यस्त रहे। गहलोत ने भी दौसा और देवली उनियारा में सभाएं की लेकिन ज्यादातर समय वे महाराष्ट्र चुनाव में व्यस्त रहे। गहलोत ने राजस्थान के उपचुनाव में रूचि नहीं दिखाई। यही वजह रही कि कांग्रेस प्रत्याशी मुकाबले में नहीं आ सके।

    उपचुनाव के दौरान टिकट नहीं मिलने से कांग्रेस के कई नेता नाराज हुए। नाराज नेताओं में से कुछ निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद गए और कुछ भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस ने उन्हें मनाने की कोशिश तक नहीं की। खींवसर सीट पर पूर्व के चुनावों में 42 हजार से ज्यादा वोट लेने वाले दुर्ग सिंह भाटी टिकट की मांग कर रहे थे लेकिन कांग्रेस ने डॉ. रतन चौधरी को प्रत्याशी बना दिया। नाराज भाटी भाजपा में शामिल हो गए। इससे हजारों वोट भाजपा में शिफ्ट हो गए। देवली उनियारा से नरेश मीणा ने टिकट की मांग की लेकिन पार्टी ने केसी मीणा को उतार दिया। मतदान से एक दिन पहले तक नरेश मीणा कहते रहे कि केसी मीणा चुनाव नहीं जीत पा रहे हैं। कांग्रेस पार्टी को उन्हें समर्थन देना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हुआ और कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा।

     कांग्रेस की हार की एक वजह यह भी बताई जा रही है कि कांग्रेस नेताओं की आपसी फूट से पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ। कांग्रेस के नेता एकजुट नजर नहीं आए। प्रदेश के नेता किसी एक मंच पर एकत्रित होकर एकजुटता का संदेश तक नहीं दे सके। नवंबर 2023 में हुए विधानसभा चुनाव की तरह दिखावा तक नहीं कर सके। जब प्रदेश के नेता भी एकजुट नहीं हो तो फिर किसी भी प्रत्याशी के अकेले दम पर चुनाव निकालना बेहद मुश्किल है। इस उपचुनाव में ऐसा ही हुआ।

रामस्वरूप रावतसरे

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,340 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress