रमजान और स्वास्थ्य

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-विजय कुमार

कुछ दिन पूर्व दूरदर्शन पर एक मौलाना रमजान का महत्व बता रहे थे। पहले तो उन्होंने इसे अध्यात्म से जोड़ा और फिर स्वास्थ्य रक्षा और शरीर शुद्धि से। उन्होंने बताया कि जैसे अन्य धर्मों में व्रत और उपवास होता है, वैसे ही हमारे यहां रोजे होते हैं।

रोजे को स्वास्थ्य से जोड़ने वाली उनकी बात मेरे गले नहीं उतरी। ईसाइयों के व्रत के बारे में मैंने कभी नहीं सुना। हिन्दुओं में इनका एक निश्चित क्रम है। कुछ लोग सोमवार, मंगलवार, शनिवार आदि को साप्ताहिक उपवास रखते हैं। कुछ लोग एकादशी पर पाक्षिक उपवास रखते हैं। कुछ लोग गणेश चतुर्थी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, शिवरात्रि आदि के भी उपवास करते हैं। नवरात्र पर वर्ष में दो बार नौ दिन तक भी लोग बड़ी संख्या में उपवास करते हैं। ये व्रत निर्जल, फलाहारी या एक समय भोजन आदि के रूप में होते हैं। बहुत से व्रत या उपवास केवल महिलाएं ही करती हैं। इसमें भी विवाहित और अविवाहित के अलग-अलग व्रत और पूजा विधान हैं।

उपवास का धार्मिक कारण चाहे जो हो; पर व्यवहार रूप में देखें तो एक या दो सप्ताह में पेट की मशीन को आराम देना ही इसका मुख्य कारण है। नवरात्र सर्दी से गर्मी तथा गर्मी से सर्दी की ओर जाने का संधिकाल है। इसमें नौ दिन पेट को पूर्ण या अर्ध विश्राम देना उचित रहता है। जैसे किसी भी मशीन या वाहन की एक निश्चित समय के बाद धुलाई और सफाई कर उसमें तेल, ग्रीस आदि लगाया जाता है, बिल्कुल वैसे ही यह उपवास हैं।

कुछ लोग व्रत-उपवास के समय अन्न तो नहीं खाते; पर दिन में कई बार दूध, फल, मेवे या मिठाई खाकर सामान्य दिनों से अधिक कैलोरी ले लेते हैं। वस्तुतः यह उपवास की भावना का अपमान है। अच्छा तो यह है कि भोजन में जितना समय लगता है, उपवास वाले दिन उसे बचाकर प्रभु भजन या समाज सेवा में लगायें। भोजन न करने से जो अन्न या धन बचे, उसे भी किसी निर्धन को अर्पित कर दें। कुछ संत लोग इसे ही व्रत का सही अर्थ बताते हैं।

व्रत-उपवास वाले दिन व्यक्ति शारीरिक व मानसिक शुद्धता का भी विशेष ध्यान रखता है। वह प्रातः जल्दी उठकर स्नान, ध्यान, पूजा आदि करता है। लोग उस दिन प्याज, लहसुन, मांसाहार या शराब आदि से भी परहेज करते हैं। इसका साफ अर्थ है कि वे इसे गलत मानते हैं; पर किसी कारण छोड़ नहीं पाते। अर्थात उपवास का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से गहरा संबंध है।

पर रोजे के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं है। पहली बात तो रोजा किसी निश्चित मौसम में नहीं होता। अवैज्ञानिक कालगणना वाला इस्लामी कैलेंडर दस महीने का होने से रोजे कभी सर्दी, तो कभी गर्मी या वर्षा में पड़ जाते हैं। फिर सुबह से शाम तक निर्जल-निराहार रहकर शेष समय खाते ही रहना, यह स्वास्थ्य के लिए कैसे लाभकारी है?

सूर्यास्त के बाद शरीर शिथिल पड़ जाता है। इसलिए प्रायः रात में भारी भोजन के लिए चिकित्सक मना करते हैं; पर यहां तो रात में ही तेज मिर्च, मसाले वाला अति गरिष्ठ भोजन खाते हैं। सूर्योदय से पहले आधी-अधूरी नींद में उठकर बिना शौच, कुल्ला, मंजन और स्नान किये, भूख न होते हुए भी जबरन कुछ खाना स्वास्थ्य के लिए कैसे हितकारी है? कई बार तो रोजे के प्रारम्भ या समाप्ति पर एक ही थाली, चम्मच या गिलास से कई लोग खा-पी लेते हैं। यह किस चिकित्सा विज्ञान में सही बताया गया है?

एक बात पर और विचार करें। जब कोई व्यक्ति रात में देर तक जागकर खाता रहेगा, तो स्वाभाविक रूप से वह सुबह देर तक सोएगा। भले ही सुबह की नमाज पढ़कर सोते हों; पर यह है तो प्राकृतिक नियमों के प्रतिकूल ही। इसीलिए मुस्लिम मोहल्लों में इन दिनों बाजार भी दोपहर में ही खुल पाते हैं। जब बड़े लोग रात में देर तक जगेंगे, महिलाएं देर रात तक रसोई में व्यस्त रहेंगी, तो उस खटपट में छोटे शिशु भी ठीक से नहीं सो पाते। इस अप्राकृतिक दिनचर्या से छात्रों को भी बहुत कठिनाई हो जाती है। इसीलिए रमजान के बाद कई दिन तक रोजे रखने वाले लोग पेट संबंधी रोगों से परेशान रहते हैं।

इसलिए कोई रोजे रखे या न रखे; पहला और अंतिम रखे या पूरे 30; कोई दिन में खुलेआम खाए या छिपकर; कोई इसे अध्यात्म से जोड़े या किसी ऐतिहासिक घटना से, यह अलग बात है; पर इसे स्वास्थ्य सुधार और शरीर शुद्धि से जोड़ना बिल्कुल गलत है।

6 COMMENTS

  1. आप कि सबसे बडी गलती यही है कि आप इस्लाम में “विग्यान” तलाश रहे है,अरे वो “विश्वास” है विग्यान नहीं………….विग्यान तो तर्क,प्रयोग,समाधान आदि से चलता है किसि “किताब” में एसा लिखा है वैसा लिखा है उससे नहीं.
    अपने को नियंत्र्ण करने के लिये र्कमिक उपवास किया जाता है,ताकि अपना “इन्द्रिय निग्रह” भी हो और ज्यादा से ज्यादा समय परमात्मा के चिन्तन और उनके ध्यान मे लगे,लेकिन उपवास के इस पहलु को भुल कर लोग तिखा,तला हुवा,फ़लो आदि का दट कर भोजन करते है फ़िर खुब सोते है,दिन भर अनावश्य गप्पेबाजि करते है फ़िर कुछ समय के लिये संध्या,प्राथना या नमाज आदि पढ कर अपने को धार्मिक मानने के अंह से तुष्ट रहते है पर उनका एक कदम भी आध्यातमिक विकास नही हो पाता,जीवन में स्थिर प्रग्यता नही आ पाती,शोक से भी गिरे रहते है,फ़िर कभी चुपके कभी खुले आम भगवान या अल्लाह को कोसते है……………………………

  2. विजय कुमार जी द्वारा “रमजान और स्वास्थ्य” पर अपने विचार इस प्रकार प्रस्तुत ठीक नहीं लग रहा है.
    *रमजान अध्यात्म से किस प्रकार जुडा है और किस ऐतिहासिक घटना से संबध रखता – इस दिशा में कुछ भी तो इशारा नहीं किया है.
    * क्यो ?
    *शायद इस लिये क्योंकि लेख “रमजान और स्वास्थ्य” पर है।
    * धार्मिक भावनाओं का आदर किये बिना ही यह निष्कर्ष निकालना कि:
    रमजान के बाद कई दिन तक रोजे रखने वाले लोग पेट संबंधी रोगों से परेशान रहते हैं – कहना अच्छा नहीं लग रहा.
    * हिन्दू भी रोजे रखने का सम्मान करें; आम जनता तो अपने कर्म काण्ड का पालन करना ही जानती है.

  3. जानकारी का अभाव लगता है.लेकिन सबको अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है. किसी के कुछ लिख देने या कह देने से कोई बात सच हो जाए ऐसा नहीं लगता है.हाँ ख्याली पुलाव बनाने का सबको अधिकार है बनाने में क्या हर्ज़ है.

  4. vijay kumar ji aapne roja ke baare mein arcticle likhte samay kisi doctor se advice lete tab aapko iska reason pata chalta. doctor’ s ne roja ko medically health ke liye sahi mana hai. second thing ramzan har ten days pahle aata hai jabki aapne likha hai ki ten month baad aata hai, because islami month thirty days ke hote hain. isliye meri aap se gauzarish hai ki kisi mazhab ke baare mein likthe samay bhool kar bathenge. article likhte samay apne organization ki idiology ko bach foot par choode diziye.
    mazharuddeen khan editor rajashtan gaurav news paper bhiwadi.

  5. I had been struggling with weight gain and skin allergies and high cholesterol..
    this year i am fasting for the first time in my life..and i m really amazed to see how my allergies are COMPLETELY gone and there is a significant drop in weight and cholesterol level..i too can not understand it..and as a bonus i am also cured of my tv addiction..Fasting has given me tremendous self control..i can not explain it..the author of this article should himself fast for a few days to experience the truth of what i m saying..

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