बलात्कारी खुद को निर्दोष सिद्ध करे, ऐसा कानून बनाने की मांग पागलपन है!

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

दिल्ली में चलती बस में घटित सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद जो दिल्ली में जो भावनाओं का उबाल देखा जा रहा है, जिसे कुछ लोग प्रायोजित भी कह रहे हैं के कारण बलात्कार के अपराध के बारे में नये सिरे से विचार करने की जरूरत महसूस की जाने लगी है, यहॉं तक तो ठीक है, लेकिन बलात्कार के अभियोग के आरोपी को खुद को निर्दोष सिद्ध करने का कानून बनाने की मांग करना करना मूर्खता और पागलपन के सिवा कुछ भी नहीं है।

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498 ए से सारा देश पहले से पीड़ित है, जिसमें यह व्यवस्था है कि आरोप लगाने वाले पक्ष को (वधु या पत्नी पक्ष को) आरोपों को सिद्ध करने की जरूरत नहीं है। जिसका सीधा और साफ मतलब है कि आरोप लगाते समय इस बात की कोई परवाह नहीं की जाती है कि यदि जो आरोप लगाये जा रहे हैं, वे गलत पाये गये या सिद्ध नहीं किये तक सके तो क्या होगा? इसीलिये दहेज उत्पीड़न के अधिकतर मामलों में वर पक्ष के परिवार के सभी उम्र के स्त्री-पुरुषों और सम्बन्धियों को बेरोकटोक फंसाया जाता रहा है। जिसके दुष्परिनामस्वरुप दहेज उत्पीड़न के मामलों में आत्महत्या करने वालों में स्त्रियों की तुलना में पुरुषों की संख्या अधिक है। इस स्तिथि से सारा देश परेशान है और अब सुप्रीम कोर्ट एवं संसद सहित हर मंच पर इस कानून को बदलने पर विचार करने की मांग जोर पकड़ रही है।

 

दहेज उत्पीड़न कानून स्त्रियों, विशेषकर नवविवाहिताओं की रक्षा के लिये लाया गया था, लेकिन यह कानून नवविवाहिताओं की रक्षा तो कर नहीं पाया। क्योंकि आज भी दहेत हत्याएं हो रही हैं! इसके विपरीत यह कानून वर-पक्ष की स्त्रियों सहित सभी लोगों को बेरहमी से कुचलने का कानूनी साधन जरूर बन गया है। इस प्रकार की व्यवस्था न्याय शास्त्र के मूलभूत सिद्धान्त का खुला उल्लंघन करती है, क्योंकि यह सार्वभौमिक सिद्धान्त है कि आरोपी को ही अपने आरोप सिद्ध करने होते हैं। लेकिन भावनाओं में बहकर कानून बनाते समय इन बातों का ख्याल नहीं रखा गया और इसे हम सब झेल रहे हैं!

 

इसी मनमाने और उत्पीड़क कानून की तर्ज पर भावावेश में बह रहे तथा कानूनी बातों से अनजान लोगों द्वारा बलात्कार के मामले में भी मृत्यदण्ड की सजा के कठोरतम दाण्डिक प्रावधान के साथ-साथ ऐसा मनमाना और बेरहम कानून बनाये जाने की पुरजोर मांग की जा रही है, जिसमें बलात्कार के आरोपी को खुद को ही अपने आप को निर्दोष सिद्ध करना होगा। यदि ऐसा कानून बनता है तो इस कानून का मतलब होगा कि कोई भी स्त्री सिर्फ इतना भर कह दे कि फलां पुरुष ने उसके साथ बलात्कार किया है। इसके बाद उस स्त्री को ये सिद्ध करने की जरूरत नहीं होगी कि बलात्कार हुआ भी या नहीं? या बलात्कार किन स्थितियों में कारित किया गया। या बलात्कार करने का क्या सबूत है! जिस किसी भी पुरुष को बलात्कार का आरोपी घोषित कर दिया जायेगा, उसे खुद को ये सिद्ध करना होगा कि उसने उस स्त्री के साथ बलात्कार नहीं किया, जिसने उसके खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाया है। यह एक असहज और मनमानी स्तिथी होगी!

 

इस विषय को सुप्रीम कोर्ट के उन निर्णयों के प्रकाश में देखना होगा, जिनमें अनेक बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा गया है कि अब भारत में स्त्रियों के चरित्र में बदलाव आया है, बल्कि स्त्रियों का चारित्रिक पतन भी हुआ है, जिसके चलते आपसी रंजिश या सम्पत्ति के मामलों में बदला लेने, रुपये एंठने और ब्लैक मेल करने के लिये भी स्त्रियों द्वारा बलात्कार के झूठे मुकदमें दायर किये जा रहे हैं। इन हालातों में यदि ऐसा कठोर और मनमाना कानून बन गया तो इस सम्भावना से कतई भी इनकार नहीं किया जा सकता कि बलात्कार का आरोप लगाकर कथित बलात्कारी से रुपये एंठे जायेंगे और फिर अदालत के बाहर समझौता हो जायेगा। अदालत में बलात्कार का आरोप लगाने वाली स्त्री अपने बयान से पलट जायेगी तो उसके खिलाफ किसी प्रकार की कार्यवाही भी नहीं होगी। क्योंकि आरोप सिद्ध करना या साक्ष्य जुटाना उसका दायित्व ही नहीं होगा।

 

जिन मामलों में सम्पत्ति हड़पने के लिये बनावटी मुकदमें दायर किये जाते देखे जाते हैं, उनमें लोगों को बहुत नीचे के स्तर तक गिरते हुए देखा जा सकता है। मैं व्यक्तिगत तौर पर ऐसे मामलों को जानता हूँ, जहॉं भाभी द्वारा देवर पर झूंठा और मनगढंथ बलात्कार का आरोप इस कारण से लगाया गया, ताकि देवर के जेल में रहने तक उसकी जमीन का भाभी और उसके पति (आरोपी के भाई) द्वारा बेरोकटोक दोहन और उपभोग किया जा सके। यदि मृत्युदण्ड का कानून बना दिया गया तो ऐसे मामलों में सम्पत्ति के लिये बलात्कार के बनावटी मामले दर्ज कराके आरोपी को फांसी की सजा दिलवाकर, उसकी सम्पत्ति पर आसानी से कब्ज़ा किया जा सकेगा।

 

यही नहीं जिन स्त्रियों का चारित्रिक पतन हो चुका है और जो सामाजिक प्रतिष्ठा की परवाह नहीं पालती हैं, उनके लिये किसी भी पुरुष को ठिकाने लगाना बहुत ही सरल और आसन हो जायेगा। ऐसे में इस प्रस्तावित कानून का राजनेताओं और व्यावसायिक प्रतिस्पर्धियों द्वारा अपने विरोधियों को निपटाने में उसी प्रकार से आसानी से दुरुपयोग किया जाना बेहद सरल होगा, जैसा कि कुछ मामलों में अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनिय, 1989 का दुरुपयोग होते हुए देखा जा सकता है!

 

अत: बलात्कार जैसे जघन्य और घिनौने अपराध से निपटने के लिये कठोरतम अर्थात् मृत्युदण्ड की सजा और आरोपी पर खुद को निर्दोष सिद्ध करने का भार डालना, केवल इन दो बिन्दुओं को ही इस समस्या से मुक्ति का मूल आधार बनाकर यह नहीं समझा जा सकता कि स्त्रियों को बलात्कार से हमेशा-हमेशा को बचाया जा सकेगा? इन दो सुधारों से स्त्री को सुरक्षा कवच मिल ही जायेगा? बल्कि यदि हम चाहते हैं कि बलात्कार जैसी क्रूरता से स्त्री को हमेशा-हमेशा को निजात मिल सके तो हमें हमारी सम्पूर्ण सामाजिक, संवैधानिक, धार्मिक, पारिवारिक और व्यावहारिक व्यवस्था की खामियों पर, स्त्रियों की पूर्ण सहभागिता से बिना पूर्वाग्रह के पुनर्विचार करना होगा और जो भी बदलाव या सुधार जरूरी हैं, उन पर लगातार काम करना होगा।

 

प्रत्येक क्षेत्र में प्रक्रियात्मक सुधार के लिये हर स्तर पर आमूलचूल परिवर्तन के लिये मन से तैयार होना होगा और देश में कानून बनाने से लेकर कानूनों को लागू करने, दोषी को सजा देने तथा सजा भुगताने तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया को न केवल पूरी तरह से पारदर्शी ही बनाना होगा, बल्कि हर एक स्तर पर पुख्ता, सच्ची और समर्पित लोगों की भागीदारी से निगरानी की संवेदनशील व्यवस्था भी करनी होगी। जिससे किसी निर्दोष को किसी भी सूरत में सजा नहीं होने पाए और किसी भी सूरत में किसी भी दोषी को बक्शा नहीं जा सके! इसके साथ-साथ 21वीं सदी में तेजी बदलते समय के आचार-विचारों, पश्चिम के प्रभावों को और देश पर अंगरेजी थोपे जाने के कुपरिणामों को ध्यान में रखते हुए, पुरातनपंथी कही जाने वाली और अव्यावहारिक हो चुकी हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक परम्पराओं, प्रथाओं और रीतियों से समाज को क्रमश: मुक्त करने की दिशा में केवल कुछ दिन नहीं, बल्कि दशकों तक लगातार कार्य करना होगा। तब ही केवल बलात्कार ही नहीं, बल्कि हर प्रकार के अन्याय और अपराध से पीड़ितों को संरक्षण प्रदान किया जा सकेगा।

Previous articleसबसे बडी सजा नहीं है मृत्युदण्ड
Next articleइस उबाल को समझना ही होगा…
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

2 COMMENTS

  1. क़ानून बनाते समय हर पक्ष का ध्यान रखना ज़रूरी है, कानून भावावेष मे नहीं बनते, आपके तर्क अपनी जगह
    बिल्कुल सही हैं, जिस प्रकार की घटना दिल्ली मे हुई है अपराधियों को जल्दी सज़ा मिलना ज़रूरी है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,453 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress