रविदासजी एक सिद्ध एवं अलौकिक समाज-सुधारक संत थे

0
315

संत गुरु रविदास जयन्ती- 24 फरवरी, 2024 के उपलक्ष्य में
– ललित गर्ग –

जब भारतीय समाज और धर्म का स्वरूप रूढ़ियों एवं आडम्बरों में जकड़ा एवं अधंकारमय था तब संत गुरु रविदास एक रोशनी बनकर समाज को दिशा दी। वे अध्यात्म की सुदृढ़ परम्परा के संवाहक थे। वे ईश्वर को पाने का एक ही मार्ग जानते थे और वो है ‘भक्ति’, इसलिए तो उनका एक मुहावरा आज भी बहुत प्रसिद्ध है कि, ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’। हर जाति, वर्ग, क्षेत्र और सम्प्रदाय का सामान्य से सामान्य व्यक्ति हो या कोई विशिष्ट व्यक्ति हो -सभी में विशिष्ट गुण खोज लेने की दृष्टि उनमें थी। गुणों के आधार से, विश्वास और प्रेम के आधार से व्यक्तियों में छिपे सद्गुणों को वे पुष्प में से मधु की भाँति उजागर करने में सक्षम थे। परस्पर एक-दूसरे के गुणों को देखते हुए, खोजते हुए उनको बढ़ाते चले जाना रविदासजी के सर्वधर्म समभाव या वसुधैव कुटुम्बकम् के दर्शन का द्योतक है। संत शिरोमणि गुरु रविदासजी एक महान संत और समाज सुधारक थे। भक्ति, सामाजिक सुधार, मानवता के योगदान में उनका जीवन समर्पित रहा।
रविदासजी के जन्म को लेकर कई मत हैं। लेकिन रविदासजी के जन्म पर एक दोहा खूब प्रचलित है- ‘चौदस सो तैंसीस कि माघ सुदी पन्दरास, दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री गुरु रविदास- इस पंक्ति के अनुसार गुरु रविदास का जन्म माघ मास की पूर्णिमा को रविवार के दिन 1433 को हुआ था। इसलिए हर साल माघ मास की पूर्णिमा तिथि को रविदास जयंती के रूप में मनाया जाता है जोकि इस वर्ष 24 फरवरी 2024 को है। रैदास पंथ का पालन करने वाले लोगों में रविदास जयंती का एक विशेष महत्व है। रविदासजी का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी के गोवर्धनपुर गाँव में एक मोची परिवार में हुआ था। वे कबीरजी के समकालीन थे और अध्यात्म, धर्म, समाज-व्यवस्था पर कबीरजी के साथ उनके कई संवाद उपलब्ध हैं। मध्यकाल की प्रसिद्ध संत मीराबाई भी रविदासजी को अपना आध्यात्मिक गुरु मानती थीं। रविदासजी ने लोगों को एक नई राह दिखाई कि घर-गृहस्थी में रहकर और गृहस्थ जीवन जीते हुए भी शील-सदाचार और पवित्रता का जीवन जिया जा सकता है तथा आध्यात्मिक ऊंचाइयों को प्राप्त किया जा सकता है। अपनी सामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि के बावजूद भी रविदासजी भक्ति आंदोलन, हिंदू धर्म में भक्ति और समतावादी आंदोलन में एक प्रमुख पुरोधा पुरुष के रूप में उजागर हुए। 15 वीं शताब्दी में रविदास जी द्वारा चलाया गया भक्ति आंदोलन उस समय का एक बड़ा आध्यात्मिक आंदोलन था।
धर्म के वास्तविक स्वरूप को उजागर करने, भक्ति और ध्यान में गुरु रविदास का जीवन समर्पित रहा। उन्होंने भक्ति के भाव से कई गीत, दोहे और भजनों की रचना की। पवित्रता, मानवीयता, आत्मनिर्भरता, सहिष्णुता और एकता उनके मुख्य धार्मिक संदेश थे। हिंदू धर्म के साथ ही सिख धर्म के अनुयायी भी गुरु रविदास के प्रति श्रद्धा भाव रखते हैं। यही कारण है कि रविदासजी की 41 कविताओं को सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव ने पवित्र ग्रंथ आदिग्रंथ या गुरुग्रंथ साहिब में शामिल कराया था। वे समाज सुधारक थे, तत्कालीन रूढियों, आडम्बरों एवं दुराचारों को समाप्त कर स्वस्थ समाज संरचना करने में भी उनका विशेष योगदान रहा। इन्होंने समाज से जातिवाद, भेदभाव और समाजिक असमानता के खिलाफ जनजागृति का वातावरण निर्मित कर समाज को समानता और न्याय के प्रति प्रेरित किया। गुरु रविदासजी ने शिक्षा के महत्व पर जोर दिया और अपने शिष्यों को उच्चतम शिक्षा पाने के लिए प्रेरित किया।
रविदासजी एक सिद्ध एवं अलौकिक संत थे। एक कथा के अनुसार रविदासजी बचपन में अपने साथियों के साथ खेल रहे थे। उनमें से एक साथी अगले दिन खेलने नहीं आता है तो रविदासजी उसे ढूंढ़ते हुए उसके घर तक पहुंच जाते हैं। उसकी मृत्यु हो गई और वे मृत शरीर को देखकर बहुत दुखी होते हैं और अपने मित्र को बोलते हैं कि उठो ये समय सोने का नहीं है, मेरे साथ खेलो। इतना सुनकर उनका मृत साथी खड़ा हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि संत रविदासजी को बचपन से ही आलौकिक शक्तियां प्राप्त थी। लेकिन जैसे-जैसे समय निकलता गया उन्होंने अपनी शक्तियों को भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की भक्ति में लगाई। इस तरह धीरे-धीरे लोगों का भला करते हुए वे जन-जन के प्रिय अलौकिक संत बन गए।
संत गुरु रविदास ने स्वयं को ही पग-पग पर परखा और निथारा। स्वयं को भक्त माना और उस परम ब्रह्म परमात्मा का दास कहा। वह अपने और परमात्मा के मिलन को ही सब कुछ मानते। शास्त्र और किताबें उनके लिये निरर्थक और पाखण्ड था, सुनी-सुनाई तथा लिखी-लिखाई बातों को मानना या उन पर अमल करना उनको गंवारा नहीं। इसीलिये उन्होंने जो कहा अपने अनुभव के आधार पर कहा, देखा और भोगा हुआ ही व्यक्त किया, यही कारण है कि उनके दोहे इंसान को जीवन की नई प्रेरणा देते थे। रविदासजी शब्दों का महासागर हैं, ज्ञान का सूरज हैं। उनके बारे में जितना भी कहो, थोड़ा है, उन पर लिखना या बोलना असंभव जैसा है। सच तो यह है कि बूंद-बूंद में सागर है और किरण-किरण में सूरज। उनके हर शब्द में गहराई है, सच का तेज और ताप है।
संत गुरु रविदास सर्वधर्म सद्भाव के प्रतीक थे, साम्प्रदायिक सद्भावना एवं सौहार्द को बल दिया। उनको हिन्दू के अलावा अन्य संप्रदायों में बराबर का सम्मान प्राप्त था। उन्होंने मानव चेतना के विकास के हर पहलू को उजागर किया। श्रीकृष्ण, श्रीराम, महावीर, बुद्ध के साथ-ही-साथ भारतीय अध्यात्म आकाश के अनेक संतों-आदि शंकराचार्य, नानक, रैदास, मीरा आदि की परंपरा में रविदासजी ने भी धर्म की त्रासदी एवं उसकी चुनौतियों को समाहित करने का अनूठा कार्य किया। जातिवाद एवं सम्प्रदायवाद के खिलाफ वातावरण बनाया। जीवन का ऐसा कोई भी आयाम नहीं है जो उनके दोहों-विचारों से अस्पर्शित रहा हो। अपनी कथनी और करनी से मृतप्रायः मानव जाति के लिए रविदासजी ने संजीवनी का कार्य किया। इतिहास गवाह है, इंसान को ठोंक-पीट कर इंसान बनाने की घटना रविदासजी के काल में, रविदासजी के ही हाथों, उनकी रचनाओं-विचारों एवं कार्यो से हुई। शायद तभी रविदासजी कवि मात्र ना होकर युगपुरुष और युगस्रष्टा कहलाए। न तो किसी शास्त्र विशेष पर उनका भरोसा रहा और ना ही उन्होंने जीवन भर स्वयं को किसी शास्त्र में बाँधा। रविदासजी ने समाज की दुखती रग को पहचान लिया था। वे जान गए थे कि हमारे सारे धर्म और मूल्य पुराने हो गए हैं। नई समस्याएँ नए समाधान चाहती हैं। नए प्रश्न, नए उत्तर चाहते हैं। नए उत्तर, पुरानेपन से छुटकारा पाकर ही मिलेंगे।
संत गुरु रविदास ने धरती और धरती के लोगों की धड़कन को सुना। धड़कनों के अर्थ और भाव को समझा। इन धड़कनों को वे जितना आत्मसात करते चले, उतना ही उनका जीवन ज्ञान एवं संतता का ग्रंथ बनता गया। यह जीवन ग्रंथ शब्दों और अक्षरों का जमावड़ा मात्र नहीं, बल्कि इसमें उन सच्चाइयों एवं जीवन के नए अर्थों-आयामों का समावेश है, जो जीवन को शांत, सुखी एवं उन्नत बनाने के साथ-साथ जीवन को सार्थकता प्रदान करते हैं। उनके अनुभवों और विचारों ने एक नई दृष्टि प्रदान की। इस नई दृष्टि को एक नए मनुष्य का, एक नए जगत का, एक नए युग का सूत्रपात कहा जा सकता है। रविदासजी भारत की उज्ज्वल गौरवमयी संत परंपरा में सर्वाधिक समर्पित एवं विनम्र संत हैं। वे गुरुओं के गुरु थे, उनका फकडपन और पुरुषार्थ, विनय और विवेक, साधना और संतता, समन्वय और सहअस्तित्व की विलक्षण विशेषताएं युग-युगों तक मानवता को प्रेरित करती रहेगी।  प्रेषक
                (ललित 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,551 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress