रेडी सिनेमा के माध्यम से हिन्दू मान्यताओं का अपमान

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गौतम चौधरी

आजकल एक गीत बडे़ जोर शोर से गाया जा रहा है। हम करें तो साला कैरेक्टर ढीला है। यह गीत सलमान खान द्वारा अभिनित सिनेमा रेडी का है। सिनेमा में कई ऐसे तथ्यों को अभिनित किया है जिस पर आपत्ति हो सकती है। चौधरी परिवार को जिस प्रकार सिनेमा में गलिया गया है वह एक समाज के खिलाफ साजिश को चिंहित करता है। जिस चौधरी परिवार को फिल्म टारगेट कर रहा है वह चौधरी परिवार पैसे के लिए अपनी भांजी तक नहीं बक्सता है। जबकि सिनेमा में कपूर परिवार को बडा सभ्य और समाजोपयोगी बताया गया है। क्योंकि कपूर परिवार की महिलाए बाहर पार्टियों में जाती है, क्योंकि उनके परिवार की महिलाएं गैर मर्दों के साथ बात करने में हिचकती नहीं है, कपूर परिवार संयुक्त परिवार है और बडा व्यापारी परिवार है। लेकिन सिनेमाकर ने कपूर परिवार को भी नहीं छोडा है। जहां कपूर परिवार धर्म-कर्म की बात करता है और हर किसी काम के लिए अपने गुरू जी के पास जाता है वहां सिनेमा बडे निर्लजता के साथ कपूर परिवार को धोता है। गोया सिनेमा में गुरूजी के आश्रम को कुत्ता-कुत्ती और नौकरानी आपूर्ति करने वाली संस्था के रूप में दिखाया गया है।

इधर चौधरी परिवार को तो हर एक बिन्दुओं पर बेवकूफ एवं मूर्ख साबित करने का पूरा पूरा प्रयास किया गया है। फिल्मकार क्या दिखाना चाह रहा है वह तो पूरी फिल्म देखने बाद भी पता नहीं चलता है लेकिन फिल्म बनाने का हिडेन एजेंडा थोडा थोडा समझ में आता है। फिल्म में चौधरी परिवार के परंपरा पर आघात किया गया है। यही नहीं चौधरी परिवार के बहाने सिनेमा में हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण चिंह चुटिया पर भी विभत्स टिप्पणी की गयी है। फिल्म बताता है कि चौधरी का छोटा बेटा कैसे अपने षिक्षक को परीक्षा में अनुत्तीर्ण कर देने के कारण पिटाई करवाता है। कैसे वह बच्चा अमर चौधरी अपने यहां काम करने वाले चाटर एकाउंटेंट का अपमान करता है। फिल्म में चाटर एकाउंटेंट के धंधें को भी अपमानित किया गया है। कुल मिलाकर देखें तो पूरा का पूरा फिल्म पारंपरिक भारत को तो अपमानित कर ही रहा है फिल्म में आधुनिक भारत के कुछ प्रतिमानों को भी नीचा दिखाया गया है। फिल्म कपूर परिवार को आदर्श भारतीय परिवार घोषित कर रहा है। जिनके पास न तो अपना इतिहास है और न ही कोई सांस्कृतिक धरोहर। कपूर परिवार को भारतीय अग्रेज के तरह प्रस्तुत किया गया है। फिल्म में एक स्थान पर अमर चौधरी नामक किरदार की चुटिया खुद प्रेम यानि सलमान खान काट लेटे हैं और जब बच्चा प्रतिरोध करता है तो वहां प्रेम कहता है कि चुटिया ही तो काटा जा रहा है खतना तो नहीं हो रहा। यानि खतना और चुटिया दोनों अपमान का प्रतीक है, फिल्म यह साबित करने का प्रयास करता है। एक स्थान पर अमर चौधरी मंदिर परिसर में घुम रहा होता है। उसके साथ वाले नौकर चाकर उसे कहते हैं कि चालो छोटे चौधरी भगवान का दर्षन कर लें। किरदार अमर से कहलवाया जा रहा है कि पिछली बार इसी भगवान के यहां मन्नत मांग थी कि परीक्षा में पास हो जाएं लेकिन भगवान ने फेल करवा दिया। मैं तो चौधरी परिवार का छोटा जासूस हूं महिलाओं के साथ आता हूं कि महिलाएं कही दुष्मनों के साथ तो नहीं मिल रही है। इस प्रकार फिल्म आस्था के कई प्रतिमानों पर आघात करता है। इन तथ्यों की मिमांषा से साबित होता है कि फिल्म बनाने के पीछे का धेय एक मात्र भारत के बहुसंख्यक जनता में अपनी परंपरा, अपनी सोच, अपनी आस्था और अपने धर्म से विमुख करना है।

ऐस प्रयास कोई नया नहीं है। बहुत पुराना है। समाचार और प्रचार के माध्यमों के द्वारा देश के साथ खिलवाड आज से नहीं लगभग आधी सदी से चल रहा है। फायर फिल्म में हिन्दू धर्म के आधार तत्व अग्नि पर प्रहार किया गया, अर्थ फिल्म के द्वारा धरती पर, वाटर फिल्म के द्वारा जल पर प्रहार किया गया है। इस कडी में हवा और आकाश तत्व पर भी नकारात्मक टिप्पणी की जानी है जिसपर या तो काम चल रहा होगा या फिर वह लम्बित होगा। फायर फिल्म लगी थी। रांची में उसका विरोध भी हुआ था। विरोध करने वालों का कहना था कि फिल्म में भारत को जबरदस्त गाली दी गयी हे। लेकिन उस विशय को नजरअंदाज किया गया। अखबारों में ऐसे समाचार परोसे गये कि कुछ पुरातनपंथियों ने फिल्म का विरोध किया है। क्या समलैंगिकता वैज्ञानिक सोच पर आधारित है? अगर नहीं है तो फिर इसे स्थापित करने के पीछे किन लोगों का हाथ हो सकता है, विचार किया जाना चाहिए। आजतक किसी ने फिल्म में यह नहीं देखा होगा कि वाईविल या फिर पवित्र कुरान में रखकर हीरे या हेरोईन की चोरी की जा रही है। लेकिन हिन्दुओं के पवित्र मूर्तियों में, पवित्र गीता और रामायण में रखकर ऐसी चोरी अकसरहां दिखाया जाता है। हालांकि आजकल तो मुल्ला मौलवियों के खिलाफ भी फिल्म वालों ने मानों फतवा काट दिया हो लेकिन किसी ने कभी भी पादरी को ड्रग बेचते हुए नहीं देखा होगा जबकि पूर्वोत्तर के राज्यों में सुवह प्रार्थना के लिए अनुयायी चर्च जाते हैं और शाम होते ही वही चर्च ड्रग वितरण का अड्डा बन जाता है। पूर्वोत्तर ही नहीं देश के माओवादी चरमपंथियों को भी चर्च का संरक्षण प्राप्त है लेकिन किसी की मजाल है कि कोई फिल्म उसपर बनावे।

भारत का फिल्मिस्तान पूरे पूरी भारत की सोच से विपरीत चलने वाली संस्था बनकर रह गयी है। जिसका खामियाजा आज भारत की नई पीढी को उठाना पड रहा है। अहमदाबाद में एक धारावाहिक नाटक के पत्रकार वार्ता में जाने का मौका मिला। उस वार्ता में आलीशॉ चिनाई आई थी। बड़ी देर तक संवाददाताओं के साथ बैठी रही है। एक महिला संवाददाता ने पूछा कि सिनेमा में आजकल अश्‍लील दृश्‍यों का प्रचलन बढता जा रहा है। लालीशॉ ने कहा कि जो लोग देखना पसंद करते हैं वही फिल्मकार दिखते हैं। अलीशॉ की बात सत्य से परे है। आज जो लोग देखना चाहते हैं वह नहीं दिखया जा रहा है। आज कुछ लोग जो दिखाना चाहते हैं दुनिया वही देखने को मजबूर है। हिन्दी के बडे विद्वान प्राध्यापक हैं, रहते हैं कोलकात्ता में। नाम है जगदीश्‍वर चर्तुवेदी। उन्होंने एक पुस्तक लिखी है मीडिया साम्राज्यवाद। पुस्तक में उन्होंने यह साबित करने का प्रयास किया है कि अब आवश्‍यकता आविष्कार जी जननी नहीं रही। अब आविष्कार ही आवश्‍यकता को पैदा कर रहा है।

चौधरी परिवार को जितना गलिया है गलियाव, मंदिर में बलात्कार और वेश्‍यावृति दिखाना है दिखाओ, कौन रोकता है और लोगों को तो कुछ न कुछ देखना है वो तो देखेंगे ही। इसलिए एक मंच ऐसा भी होना चाहिए जो अन्ना के सिध्दांतों का सिविल सोसाईटी हो उसका अधिकार हो कि वह इस प्रकार के समाज तोडक, परंपरा विरोधी और नमारात्मक प्रयोगधर्मी अभिनयों पर प्रतिबंध लगाने का काम करे। फिर फिल्म बनाने वालों को पैसा कहां से मिलता है उसके लिए भी एक समिति होनी चाहिए। समाज में मान्य और वैज्ञानिक परंपरा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। फिर समाज विरोधी प्रयोग को किसी कीमत पर स्वीकारा नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए प्रयोग समाज के हित का हो तथा परांपरा में जो वैज्ञानिकता हो उसपर टिप्पणी करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो तब जाकर समाज में चेतना का अवतरण होगा। नहीं तो समाज दिन व दिन कमजोर एवं गुलाम होता जाएगा।

3 COMMENTS

  1. ये लोग भारत को इंडिया बनाने में कोई क़सर नहीं छोड़ना चाहते है ………..पशुता की और अग्रसर ये लोग कहा ले जायेंगे भावी भारत को ………………………………….

  2. सही बात की सर आप ने जिस फिल्म मैं हीरो सलमान खान (मुसलमान) , हेरोइन आसीन (मुस्लमान) हो जिस director का दिमाग सेकुलर हो उन लोगों से क्या उमीद कर सकते है हम हिन्दू लोग , वैसे भी हिन्दुओं को बदनाम करने की अंतरास्त्त्रिया तोर पर सजी रची जा रही है , क्याकरें हिन्दुयोंको मिटाने की एक और कोसिस ……………………….

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