गजल

रिश्ते भी हो गये हैं व्यापार की तरह….

               इक़बाल हिंदुस्तानी

दावा तो कर रहे थे वफ़ादार की तरह ,

अब क्यों खड़े हैं आप ख़तावार की तरह।

अफ़सोस मेरे क़त्ल में ऐसे भी लोग थे,

आये थे घर मेरे जो मददगार की तरह ।

 

दौलत तमाम रिश्तों की चाबी है आजकल,

रिश्ते भी हो गये हैं व्यापार की तरह।

 

जज़्बात बेचने लगे शायर बड़े बड़े,

महफ़िल अदब की सज गयी बाज़ार की तरह।

अपने तमाम यारों पे रखना ज़रा नज़र…..

आग़ाज़ गर ये है तो फिर अंजाम देखना,

क़ातिल का भी होगा क़त्ल सरेआम देखना।

 

रुतबे को देखना ना उसका नाम देखना,

इंसां को देखना उसका काम देखना।

 

अपने तमाम यारों पे रखना ज़रा नज़र,

दुश्मन को चाहते हो जो नाकाम देखना।

दौलत को तक रही है जो न्याय की मूर्ति,

वो फ़ैसला करेगी तो कोहराम देखना।।

नोट-ख़तावार-दोषी, आग़ाज-शुरूआत, अंजाम-अंत, रुतबा-मान सम्मान,

कोहराम-हंगामा।।