कविता

धर्म क्या है?

-बीनू भटनागर-
religion

धर्म क्या है?
केवल संस्कृति!
या फिर एक नज़रिया!
या फिर जीने की कला!
जो है जन्म से मिला।
धर्म जो बांट दे,
धर्म जो असहिष्णु हो,
तो क्या होगा किसी का भला!
व्रत उपवास ना करूं,
मंदिरों में ना फिरूं,
या पूजा पाठ ना करूं,
तो क्या मैं हिंदू नहीं?
रोज़ा नमाज़ ना करूं
तो क्या मैं मुस्लिम नहीं?
मै अधर्म ना करूं,
तो क्या मैं धार्मिक नहीं?
धर्म तो है जोड़ता,
नहीं है वो तोड़ता,
यही है धर्म निर्पेक्षता!
माथे पे हो चंदन टीका,
या हो जालीदार टोपी,
ईश तो सबका वही है,
नहीं तो है सिर्फ धोखा!