इ. राजेश पाठक

भारत में बोद्ध-धर्म के प्रभाव के समाप्त हो जाने के कारण पर प्रकाश डालते हुए डॉ.भीमराव अम्बेडकर कहते हैं- ‘जब मुस्लिम शासक बख्तियार खिलजी ने बिहार पर आक्रमण किया, तब उसने पांच हजार से अधिक बोद्ध भिक्षुओं का क़त्ल किया. बचे हुए बोद्ध-धर्मी चीन, नेपाल व तिब्बत भाग गए. बोद्ध-धर्म के पुनरुज्जीवन के लिए हिंदुस्तान के बोद्धधर्मियों ने नए धर्मपीठ खड़े करने का प्रयत्न किया, परन्तु तब तक ९० प्रतिशत बोद्ध फिर से हिन्दू धर्म में चले गए थे, इस कारण ये प्रयत्न बिफल हो गया.’ [डॉ. अम्बेडकर और सामाजिक क्रांति की यात्रा; पृष्ठ- ३२१] ये बात डॉ. अम्बेडकर ने बोद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद कही थी. लेकिन अभी देश में वामपंथी, जेहादी तत्व और क्रिप्टो क्रिस्चियन[ crypto Christian] के सम्मलित प्रयासों से बड़ी ही कुटिलता के साथ ये स्थापित करने का अभियान चल रहा है कि उनकी ‘सामान’ सामाजिक-आर्थिक अवस्था के कारण मुसलमान,इसाई,आदिवासी व बुद्धिस्ट-दलित की एकजुटता समय की जरूरत है. और इसको लेकर बामसेफ, मूल निवासी संघ जैसे कुछ संगठन अस्तित्व में भी आ चुके है, जिनके समाज को विभाजित करने वाले भडकाऊ नारे इधर-उधर दीवारों पर पढ़े भी जा सकते हैं. किसी भी बहकावे में आने से पहले ऐसे लोगों को चाहिए की वे डॉ. अम्बेडकर के उपरोक्त कथन को ध्यान में रखें. साथ ही वे ये भी याद करें की मुस्लिम बहुसंख्यक अफगानिस्तान के बामियान में जिहादियों ने किस प्रकार भगवान बुद्ध की प्राचीन दुर्लभ मूर्तियाँ ज़मीदोज़ कर दी थीं. कट्टरपंथी रोहिंग्यों के हाथों कैसे म्यांमार के शांतिप्रिय बुद्ध के अनुयायीयों को अपने ही देश के अन्दर चैन से जीना मुश्किल हो गया था. जिसके परिणामस्वरूप विवश हो अपने बोद्ध-भिक्षुओं के नेतृत्व में उन्हें प्रतिकार का रास्ता अपनाना पड़ा, और रोहिंग्यों को अपने ही खेल में मात खाकर सब-कुछ खोकर देश छोड़ भारत सहित अलग-अलग देशों में जाकर शरण लेनी पड़ी. श्रीलंका में ईसाईयों के विरुद्ध शुरू हुआ जिहाद ने अब वहां रहने वाले सिहंली बोद्ध समाज को अपनी जद में ले लिया है. बोद्ध धर्मालय अब पुलिस की सुरक्षा के अधीन आ चुके हैं. श्रीलंका में सक्रीय मुस्लिम तौहीद जमात का इस हमले पीछे हाँथ माना जा रहा है. भारत के लिए भी अब चिंता का कारण उपस्थित हो चुका हैं क्योंकि इस जमात के देश के दक्षिण भाग में टीवी चैनलों पर धार्मिक प्रसारण चलते हैं. वैसे इस घटना के बाद ईसाई कट्टरपंथी संगठनों ने इसे ईसाइयत के खिलाफ जिहाद कहना शुरू कर दिया है.
हमारे पड़ौसी बांग्लादेश का किस्सा कोई अलग नहीं है. मजहबी आतंकवाद का ये नतीजा है कि गरीब-पिछड़े बोद्ध चकमा आदिवासी समुदाय वहां से पलायन कर भारत में शरण लेने के लिए बाध्य हैं. मुसलमान बहुसंख्यक पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ-साथ अल्पसंख्यक अहमदिया और ईसाई-समाज मजहबी प्रताड़ना से त्रस्त जीवन जीने के लिए मजबूर हैं. कट्टरपंथी जमात के कारण जिस आसिया बीवी का पाकिस्तान में जीना दूभर हो गया था, वो ईसाई थी ये भी नहीं भूलना चाहिए.