अनुसंधान से आर्थिक उन्नति संभव – मुलख राज विरमानी

भारत के उद्योगपति अनुसंधान में इतनी रुचि नहीं लेते जितना संपन्न हुए देशों के उद्योगपति। यह कड़वा सत्य भारत की सबसे बड़ी कमजोरी है। कुछ थोड़े से उद्योगपतियों ने इस ओर ध्यान दिया वह आज अपने उद्योग के क्षेत्र में विश्व के उद्योगपतियों के बराबर हैं या उनसे भी आगे निकल गए। उदाहरणतया कुछ भारतीय एलोपैथिक दवाओं के निर्माता अनुसंधान के कारण विश्व स्तर पर काम कर रहे हैं। उनमें साहस, संपन्नता और शक्ति आ गई है और बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियां तक खरीद चुके हैं। अनुसंधान के कार्य इस देश को सबसे अधिक धोखा सरकारी उद्योगों की कंपनियों ने दिया। हालांकि निजी उद्योग भी इस आलोचना से नहीं बच सकते। कई उद्योगों ने एक टेक्नोलॉजी विदेश से खरीदी, उसे और विकसित करने की बजाय उसका पूरा दोहन कर लिया। विदेशों में यही टेक्नोलॉजी अधिक विकसित हो गई तो भारतीय उद्योग बंद हो गए या दोबारा विकसित टेक्नोलॉजी विदेशों से खरीद कर अपना उद्योग बंद हो गए या दोबारा विकसित टेक्नोलॉजी विदेशों से खरीद कर अपना उद्योग चालू रखा। भारत में 1960 और 1970 के दशकों तक फियेट गाड़ी की धाक रही। विदेशों में जब कारें बनाने की तकनीक हर वर्ष बेहतर हो रही थी, फियेट वाले पुरानी टेक्नोलॉजी का दोहन कर और किसी अच्छी गाड़ी के मिलने के अभाव में पुरानी गाड़ी दना-दन बेच रहे थे। हमारे रक्षा संबंधी उद्योगों ने भी अक्सर ऐसा ही किया। ऐसा लगता है उनको तो अनुसंधान से कुछ लेना-देना ही नहीं। न वह लगन से अनुसंधान करेंगे और न हीं विश्व स्तर का बैटल टैंक बनाएंगे। रक्षा के क्षेत्र में और विदेशी उद्योगों के अलावा इसराइल सबसे आगे है। इतना छोटा सा देश और इतने समर्पित वैज्ञानिक। हम तो सुंदर बोल ‘सबसे अच्छा देश हमारा’ जप सकते हैं और परंतु देश के लिए समर्पण भाव कम है तो दुःख की बात है कि कुछ लोग नाइट क्लबों में अपना समय बिताकर मूंछों को ताव देते हुए सुने गये हैं कि वह मौज कर आये हैं। ऐसी हालत में कहां हो अनुसंधान और कहां से हो प्रगति। पुराना होने के कारण कई सार्वजनिक और निजी उद्योग बंद हो जाते हैं या सरकार के मथ्थे मढ़ दिये जाते हैं। निजी क्षेत्र की 120 से अधिक बीमार कपड़ों की मिलें जो सरकार को लेनी पड़ी, ताकि उनमें काम करने वाले बेरोजगार न हों, आज भी बीमारी की हालत में देश के आर्थिक साधनों पर बोझ बनी हुई है। सरकारी क्षेत्र के उद्योगों में यह समस्या अकसर है। निजी उद्योगपतियों ने इन मिलों का खूब दोहन किया पर यह नहीं सोचा कि उनको हर साल के लाभ के कुछ धन, नई मशीनें खरीदनी चाहिए ताकि इनमें सदैव आधुनिक तकनीक रहे और लाभ भी। अब ये उद्योग अधिकतर बीमार हैं घाटे पर चलने के कारण सरकार से भारी अनुदान लेते ही रहते हैं।

गाय उत्पादों में अनुसंधान की आवश्यकता:

काफी प्रगति होते हुए भी हमारे देश के उद्योगों की चाल, दूसरे देशों की तुलना में धीमी है। डेरी उद्योग की बात क रें तो अभी तक कोई बड़ा उद्योगपति इस क्षेत्र में नहीं आया जो विदेशों के ऐसे बड़्रे उद्योगों से टक्कर ले, गाय उत्पादक जैसे दूध गोबर और गोमूत्र संबंधी उद्योग लगाये, इनसे बनी वस्तुओं का निर्यात कर स्वयं तो धन कमायें ही, गाय पालक किसान को भी समृद्ध बनायें और देश के लिए विदेशी मुद्रा कमायें। भारत में किसी देश की तुलना में सबसे अधिक गोवंश है परंतु ठीक पालन-पोषण न होने के क ारण से गायें बहुत कम दूध देती हैं। हमें इन्हें पौष्टिक पदार्थ, खिलाना, रहने, चरने और घूमने के लिए उपयुक्त स्थान और गायों के प्रति प्रेम और करुणा। ब्रिटानिया के नयूकैसल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने खोजकर यह पाया कि गाय को कोई सुंदर और प्यारे नाम से पुकारें और उनको एक अलग इकाई समझें तो उनकी वात्सल्यता जागती है और दूध में बढ़ोतरी होती है। यह सत्य उनको इतना लाभकारी लगा कि उन्होंने विश्व के लाभ के लिए छापकर खूब प्रचार-प्रसार किया। हमारे देश में तो गाय को किसी एक मधुर नाम से बुलाना एक पुरानी प्रथा थी। गाय के लिए प्यार, करुणा और सम्मान इतना कि गाय को गोमाता कह कर संबोधित किया जाता रहा है। यह सब होते हुए भी लज्जा की बात यह है कि बहुत अधिक गाय कूड़े के ढ़ेरों में कचरा खाकर अपना पेट भरती हैं और उन गायों के स्वामी प्रातः और सायं उनका दूध दुहकर सड़कों और गलियों में छोड़ देते हैं।

विश्व डेरी व्यापार में भारत की भागीदारी:

हम बात कर रहे थे हमारे उद्योगपतियों की जिनके आगे समय की पुकार ऊंचे स्वर में कह रही है कि विश्व के 50 अरब डॉलर की डेरी व्यापार को हाथ से न जाने दें। स्मरण रहे कि इतने भारी धंधे में एक देश न्यूजीलैंड की 8.6 अरब डॉलर की भागीदारी है। हमारे उद्योगपति अगर अपनी व्यापारी कुशलता दिखाएं तो भारत भी न्यूजीलैंड के बराबर इस धंधे में विदेशी मुद्रा कमा सकता है। भारत चारों ओर से दूध के अभाव के देशों से धिरा हुआ है। ये देश है बंग्लादेश, चीन, हांगकांग, सिंगापुर, थाइलैंड, मलेशिया, फिलीपाइंस, जापान, ओमान और बाकी खाड़ी के देश। यह देश दूर-दराज ब्राजील देश से दूध की वस्तुएं महंगें दामों से मंगवाते हैं। अफ्रीका के देशों में दूध से बनी वस्तुओं की भी बहुत मांग है। एक और बड़ी अच्छी बात यह है कि भारत में दूध देने वाले जानवरों की संख्या लगभग 128 करोड़ है। ठीक पालन-पोषण करने से यह संख्या बढ़ सकती है और ऐसे ही हर जानवर के दूध देने की मात्रा भी। दुनिया के 70 प्रतिशत दूध पैदा करने वाले देशों से भारत में दूध की कीमत कम है

भारत की दूसरे देशों की तुलना में एक बड़ाई यह है कि जिसके कारण दूध के साथ गाय किसान के लिए और भी साधन उपलब्ध करवाती है। दूसरे सब दूध उत्पादित देशों की गाय केवल दूध और उनसे बनी वस्तुओं का व्यापार करने के काम आती हैं परंतु भारत की 18 करोड़ देशी गायों के गोबर और गोमूत्र से कई दवाइयाँ, कीट नियंत्रण इत्यादि वस्तुएं बनती हैं जिससे किसान और उद्योगपति को अधिकाधिक लाभ होता है। अनुसंधान की गति तेज हो जाने पर न जाने और कितनी लाभदायक वस्तुएं विकसित की जा सकती हैं।

गाय के गोबर, गोमूत्र से अपार वस्तुओं का निर्माण संभव :

इस समय गाय के गोबर से निम्नलिखित वस्तुएं बनाई जा रही हैं : जैसे मच्छर, क्वायल, डिस्टेंपर (सादा व आयल), स्नान टिकिया, फेस पाउडर, धूप स्टिक व धूप कांडी, हवन बिस्कुट, समिधा, पूजन लेप, गोमय कंडे, मुक्ता पाउडर, मुर्तियां व स्टेट्यू, पौधों के लिए गमले, दंत-मंजन, कागज (उत्तम कोटि का), विभिन्न प्रकार के टाइल्स (खपरैल) (पानी आग व ध्वनि रोधक तथा रेडिएशन मुक्त), फर्नीचर (सभी प्रकार के), पैकिंग का समान कम खर्चे में स्थानांतरित किये जा सकने वाले मकान, नाली दार चादरें, जमीन पर बिछाने की मैटिंग, छत पर लगाने के पदार्थ (रूफिंग मैटेरियल), कमरा ठंडा रखने के रखने के खपरैल, बंकर्स के लिए टाइल्स। गोमूत्र आधारित उत्पादों में जो वस्तुएं बन रहीं हैं और इनका अधिक विकास बन सकता हैं : अर्क, फिनाइल (सफेद व काली) नील, हैंडवास, ग्लास क्लीनर, नेत्र ज्योति, कर्ण सुधा, घनवटी, अन्य सुरक्षा, खुरपका मुहपका आदि पशुओं के अन्य रोगों की दवाएं, विभिन्न कीटनियंत्रक (पेस्टीसाइड्स), आफ्टर शेव लोशन, मरहम, बाम, पीये जाने वाले विभिन्न पेय पदार्थ इत्यादि। अनुसंधान की गति तेज हो जाने पर और कितनी वस्तुएं विकसित की जाती है।

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  1. कृपया निम्नलिखित बिन्दु पर और जानकारी दे |
    गाय के गोबर, गोमूत्र से अपार वस्तुओं का निर्माण संभव :

    इस समय गाय के गोबर से निम्नलिखित वस्तुएं बनाई जा रही हैं : जैसे मच्छर, क्वायल, डिस्टेंपर (सादा व आयल), स्नान टिकिया, फेस पाउडर, धूप स्टिक व धूप कांडी, हवन बिस्कुट, समिधा, पूजन लेप, गोमय कंडे, मुक्ता पाउडर, मुर्तियां व स्टेट्यू, पौधों के लिए गमले, दंत-मंजन, कागज (उत्तम कोटि का), विभिन्न प्रकार के टाइल्स (खपरैल) (पानी आग व ध्वनि रोधक तथा रेडिएशन मुक्त), फर्नीचर (सभी प्रकार के), पैकिंग का समान कम खर्चे में स्थानांतरित किये जा सकने वाले मकान, नाली दार चादरें, जमीन पर बिछाने की मैटिंग, छत पर लगाने के पदार्थ (रूफिंग मैटेरियल), कमरा ठंडा रखने के रखने के खपरैल, बंकर्स के लिए टाइल्स। गोमूत्र आधारित उत्पादों में जो वस्तुएं बन रहीं हैं और इनका अधिक विकास बन सकता हैं : अर्क, फिनाइल (सफेद व काली) नील, हैंडवास, ग्लास क्लीनर, नेत्र ज्योति, कर्ण सुधा, घनवटी, अन्य सुरक्षा, खुरपका मुहपका आदि पशुओं के अन्य रोगों की दवाएं, विभिन्न कीटनियंत्रक (पेस्टीसाइड्स), आफ्टर शेव लोशन, मरहम, बाम, पीये जाने वाले विभिन्न पेय पदार्थ इत्यादि। अनुसंधान की गति तेज हो जाने पर और कितनी वस्तुएं विकसित की जाती है।

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