कविता

संकल्प

दीपों के इस महा उत्सव में

एक दीप कर्म-ज्योति का हम भी जलाएं।

धरा के गहन तिमिर को हर लें

हम स्वमेव दीपक बन जाएं।।

भारत के नवोत्थान के प्रयत्नों में

एक अमर प्रयत्न हम भी कर जाएं।

उत्कृष्ट भारत के निर्माण में काम आए

हम नींव के पत्थर बन जाएं।।

नवयुग के इन निर्माणों में

एक निर्माण हम भी कर जाएं।

संस्कृति का तेजस झलकाएं

हम वो आत्मदीप बन जाएं।।

पशुता/अनाचार के जग में

एक बने सब और नेक भी हम बन जाएं।

छू न सके भावी पीढ़ी को पाप छद्म ये

हम वो अकाट्य पर्वत बन जाएं।।

– लोकेन्द्र सिंह