कविता साहित्‍य

ऋतुराज बसन्त

शकुन्तला बहादुर

आ गया ऋतुराज बसन्त।
छा गया ऋतुराज बसन्त ।।
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हरित घेंघरी पीत चुनरिया ,
पहिन प्रकृति ने ली अँगड़ाई
नव- समृद्धि पा विनत हुए तरु,
झूम उठी देखो अमराई ।
आज सुखद सुरभित सा क्यों ये
मादक पवन बहा अति मन्द ।।
आ गया ….
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फूल उठी खेतों में सरसों
महक उठी क्यारी क्यारी ।
लाल ,गुलाबी, नीले,पीले
फूलों की छवि है न्यारी ।
आज सजे फिर नये साज
वसुधा पर बिखर गये सतरंग ।।
आ गया …
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हुआ पराजित आज शिशिर है
विजयी हुआ आज ऋतुराज ।
विजय दुंदुभी बजा रहे हैं
गुन-गुन सा करते अलिराज ।
कष्ट शीत का दूर हो गया
मधु-ऋतु लाई सुख अनन्त।।
आ गया ….
*
थिरक उठी है प्रकृति सुन्दरी ,
आज मिलन की वेला आई
कूक कूक कोकिल-कुल ने भी
सुखकर सुमधुर तान सुनाई।
सखि, बसन्त आए वर बनकर
साथ लिये अपने अनंग ।।
आ गया .
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आ गया ऋतुराज बसन्त ।
छा गया ऋतुराज बसन्त ।।