कविता

ऋतुराज बसंत

होली मांगे लकड़ी,दिवाली मांगे तेल।
बसंत मांगता आटा,छटाक सवा सेर।।

बसन्त के आते ही,उड़ने लगी रंग बिरंगी पतंग।
कृषक के खेत झूमने लगे पीली सरसों के संग।।

बागों में आने लगे हैं आमो पर अब बौर।
काली कोयल कूक रही भौरे मचावे शोर।।

आ गई ऋतु बसंत की,उठने लगी उमंग।
मौज मस्ती मना रहे,एक दूजे के सब संग।।

गगन में छा गई,चारों ओर रंगीन पतंग।
धरा दुल्हन बनी है,ओढके चुनर नवरंग।।

बसंत के आते ही,मोर मोरनी नाचे संग।
मोर पंख फैला कर,मचा रहा है हुडदंग।।

आर के रस्तोगी