क्वाड की रणनीति से चीन को सबक

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ललित गर्ग

आस्ट्रेलिया के मेलबर्न में पिछले शुक्रवार को हुई क्वाड समूह के देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में जहां भारत-चीन सीमा विवाद प्रमुखता से उठा वहीं अन्य देशों से जुड़ी चिंताएं भी उभरी हैं। क्वाड के सदस्य देश अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया और भारत सभी चीन की बढ़ती विस्तारवादी गतिविधियों से चिंतित हैं। चीन की ये विस्तारवादी नीति विश्व शांति एवं संतुलित विश्व-व्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा है, अशांति का कारण है। दुनिया के अधिकांश देश अब चीन की इस मंशा से वाकिफ हैं। एशिया महाक्षेत्र में बीते कुछ दशकों में चीन ने अपनी विस्तारवादी एजेंडे को जिस तरह बढ़ाया है और इसके लिए उसने जो दमनकारी नीति व आर्थिक प्रलोभन देने का जो जाल बुना है, वह अब पूरी दुनिया के सामने उजागर हो गया है। पिछले एक दशक में दक्षिण एशिया प्रशांत क्षेत्र और खासतौर से दक्षिण चीन सागर में चीन की सैन्य गतिविधियां आक्रामक ढंग से बढ़ी हैं। इससे सभी देशों चिन्ता तो बढ़ ही रही है, बड़ी चुनौती का कारण भी बनी है। साथ ही क्षेत्रीय शांति भी खतरे में पड़ती जा रही है।
ताइवान और हांगकांग पर कब्जा करने की चीन की कोशिश, पाकिस्तान के गवाहदार सी पोर्ट पर विकास के नाम पर कब्जा लेना, पाकिस्तानी हुक्मरानों का मुंह पैसा देकर बंद करवा देना, नेपाल की शासकीय कम्युनिस्ट पार्टी को पैसे और सुरक्षा के लालच देकर नेपाल को चीन के हाथों गिरवी रखवा देना, यह सब चीन की विस्तारवादी नीति और तानाशाही सोच के उदाहरण है। चीन की क्रूरता पर रोक लगाना भारत, एशिया और पूरे विश्व का कर्तव्य है। चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं, पड़ोसी देशों की सीमाओं पर निरंतर अतिक्रमण करने और विश्व में अशांति फैलाने के विस्तारवादी, आसुरी और तानाशाही चरित्र के कारण मेलबर्न में क्वाड विदेश मंत्रियों के संवाद का महत्त्व और बढ़ गया है। इस बैठक की बड़ी उपलब्धि यह रही है कि चारों देशों ने हिंद प्रशांत क्षेत्र के दूसरे देशों को भी साथ लेकर काम करने का संकल्प किया। ऐसा इसलिए भी जरूरी हो गया है क्योंकि एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन से निपटना किसी एक देश के बूते की बात है नहीं। इसलिए चीन से निपटने के लिए कई देश एकजुट हो रहे हैं। यदि इसके खिलाफ अभी से सचेत होकर समुचित कदम नहीं उठाए तो चीन का विस्तारवाद केवल हिमालयी क्षेत्रों व भारत के लिए ही नहीं, बल्कि समूचे विश्व के लिए विनाशकारी होगा। हो सकता है कि इससे भारत जैसे कुछ एशियाई देशों के समक्ष आने वाले सालों में काफी चुनौतियां होंगी, लेकिन समय रहते इससे निपटने के लिए उपाय एवं उपचार कर लेना ही क्वाड के गठन के पीछे असली मकसद है और इसी से चीन की घेरेबंदी करना संभव होगा।
चीन लगातार साम्राज्यवादी नीतियों को अपनाते हुए अपने पड़ोसी देशों पर दबाव बनाता है और उनकी जमीनों पर कब्जा करता है। चीन ने अपनी सेनाओं, राजनीतिक व कूटनीति संसाधनों को इस विस्तारवादी खेल में संलिप्त कर रखा है। जमीनों पर कब्जा करने के साथ-साथ महासागरों पर भी आधिपत्य स्थापित करने की कुचेष्ठाएं एवं षडयंत्र वह लम्बे समय से कर रहा है। उसने एवं वैश्विक महाशक्तियों ने एशिया प्रशांत क्षेत्र को जोर-आजमाइश का नया केंद्र बना रखा है। यह भी कि इसके पीछे सबसे बड़ी वजह हिंद महासागर और प्रशांत महासागर जैसे समुद्रों पर आधिपत्य कायम करने की बड़े और ताकतवर देशों की महत्त्वाकांक्षा है। सामरिक दृष्टि से भारत के लिए हिंद महासागर की खास अहमियत है। इसी तरह आस्ट्रेलिया और जापान के लिए प्रशांत महासागर का अपना महत्त्व है। दक्षिण चीन सागर भी इसी हिस्से में पड़ता है। इन दोनों महासागरों से गुजरने वाले जलमार्ग से वैश्विक व्यापार का तीस फीसद से ज्यादा व्यापार होता है। ऐसे में चीन क्यों नहीं चाहेगा कि यहां उसकी ही सत्ता चले। इसीलिए वह वर्षों से दक्षिण चीन सागर में अपने सैन्य ताकत बढ़ाने में लगा है। यहां के जलमार्गों से गुजरने वाले जहाजों के लिए उसने ऐसे समुद्री यात्रा कानून थोप दिए हैं जो दूसरे देशों को बड़ी समस्या का कारण बने हैं। जबकि कायदे से दुनिया के सभी जलमार्गों के लिए संधियां संयुक्त राष्ट्र के नियमों के तहत बनी हैं, पर चीन यहां किसी की नहीं सुन रहा। उसने भारत एवं अन्य देशों के साथ हुए लिखित समझौतों का सम्मान नहीं किया। जब कोई बड़ा देश लिखित समझौतों का अनादर करने लगे तो यह पूरी अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के लिए जायज चिंता की बात हो जाती है। इन कारणों से टकराव और बढ़ रहा है। इसलिए क्वाड देशों की बैठक में यह सहमति बनी है कि इन महासागरों को चीन से बचाना है।
क्वाड ने एक संगठित ताकत के रूप में अच्छी तरह से काम किया है, चीन की दादागिरी को खत्म करने का एक माध्यम बना है, जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘वैश्विक भलाई के लिए शक्ति’ का नाम दिया हैं, क्योंकि भारत केे क्वाड देशों से द्विपक्षीय संबंध बहुत मजबूत रहे हैं और निश्चित रूप से क्वाड के बीच द्विपक्षीय संबंधों में भी प्रगति से शांति, विकास एवं सह-जीवन की संभावनाओं को बल मिला है। क्वाड देशों में भारत की भूमिका बढ़ती जा रही है, जो एक शुभ संकेत है। क्वाट के सदस्य देश भलीभांति समझ रहे हैं कि बिना भारत को साथ लिए चीन से मुकाबला कर पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव है। वैसे भी भारत हर तरह से आस्टेªलिया, अमेरिका और जापान का साथ देता आया है।
क्वाड समूह बैठक में आतंकवाद का भी मुद्दा उठा। इस बैठक की भारत के लिए बड़ी उपलब्धि यह रही कि बैठक के बाद जारी साझा बयान में चारों देशों ने मुंबई हमले के गुनाहगारों को न्याय के कठघरे में लाने, सीमापार आंतकवाद और पकिस्तान में चल रहे आतंकी नेटवर्कों को खत्म करने का संकल्प दोहराया। गौरतलब है कि भारत को चीन और पाकिस्तान दोनों से ही चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। क्वाड के सदस्य भारत के इस संकट को महसूस भी कर रहे हैं। हालांकि इस बैठक को लेकर चीन की बौखलाहट भी सामने आ गई। यह बैठक चीन के लिए इस बात का भी संदेश है कि भारत, जापान या आस्ट्रेलिया अब अकेले नहीं रह गए हैं। सब मिल कर उसकी चुनौतियों से निपटेंगे।
आज का भारत, पाकिस्तान को सबक सिखाने के साथ-साथ चीन को भी कड़ा संदेश दे रहा है। लद्दाख के अलावा अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम में भी भारत का चीन के साथ सीमा विवाद चल रहा है। भारत की एकता व अखंडता के लिए तिब्बत की आजादी जरूरी है। ऐसा होगा तो ही देश की सीमाएं पूरी तरह से सुरक्षित होंगी। भारत जब अपनी सीमाओं की सीमाबंदी को मजूबत एवं सुरक्षित कर रहा है तो चीन की कुटिलता को इससे कड़ी चुनौती मिलने लगी है। चीन को ड्रैगन का नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि चीन के हाथ सदा खून से सने रहे हैं और निर्दाेष लोगों का खून बहाना इसकी पुरानी आदत है। सह-अस्तित्व एवं मानवीय जीवन प्रणाली में चीन का कभी विश्वास रहा ही नहीं है। वह भारत पर भी इसी प्रकार का दबाव पिछले कई सालों से बनाता आ रहा है। मगर अब केंद्र में एक मजबूत सरकार होने के चलते रणनीतिक तौर पर स्थितियों में काफी सकारात्मक बदलाव हुआ है। मोदी सरकार ने पूर्ववर्ती सरकारों की नीतियों को अब बदल दिया है, इसलिए भी चीन बौखला गया है।
भारत ने अब लद्दाख, लाहौल स्पीति में मजबूत रणनीति बनाई है, हालांकि चीन ने इसका विरोध किया। गलवान घाटी में दोनों देशों के बीच झड़प के दौरान एवं उससे पहले भी भारत सरकार की कूटनीति ने चीन को झकझोर कर रख दिया है। चीन को एलएसी पर हद में रहना चाहिए। इन हालातों में भारत की जनता को जागरूक होकर चीन का कड़ा विरोध करना चाहिए। आज भारत ने चीनी सेना को कड़ा सबक सिखाया है, इसलिए दुनिया भी भारत के साथ है। चीन की ओर से पेश की जा रही चुनौतियों के खिलाफ वैश्विक एकता एवं गंभीर प्रयास जरूरी है। यह युद्ध की विभीषिका में न बदले, इसलिए चीन की हर हरकत पर लगाम लगाना जरूरी है और उसके लिये क्वाड की विदेश मंत्रियों की बैठक उपयोगी बनी है। आज पूरा विश्व भारत की ओर आशा की नजर से देख रहा है। भारत हमेशा से विश्व शांति का पक्षधर रहा है। मानवता गुलामी में न बंध जाए, भूगोलों की अपनी स्वतंत्रता कायम रहे, इसलिए क्वाड देशों की सक्रियता एवं संगठन नये भविष्य-सुखद भविष्य का निर्धारण कर सकेगा।

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