राजनीति

आरएसएस @100: विजयादशमी पर मैं भारत बोल रहा हूँ

डॉ. पवन सिंह

विजयादशमी का दिन विजय के संकल्प का दिन है। यह विजय न किसी एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति पर और न ही किसी देश की दूसरे देश पर विजय है। अपितु यह धर्म की अधर्म पर, नीति की अनीति पर, सत्य की असत्य पर, प्रकाश की अंधकार पर और न्याय की अन्याय पर विजय है। अपनी परंपरा में आज का दिन स्फूर्ति का दिवस है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विजयादशमी केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और संगठनात्मक प्रेरणा का दिन है।  संघ से जुड़े प्रत्येक स्वयंसेवक के लिए आज का दिन गौरव व ऊर्जा भरा भी रहता है क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने विजयादशमी के दिन ही 27 सितंबर 1925 (हिंदू पंचांग अनुसार आश्विन शुक्ल दशमी) को की थी। इसलिए यह दिन संघ के लिए संघ स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है।

विजयदशमी उत्सव दैवीय शक्तियों का आसुरी शक्तियों पर, न्याय का अन्याय पर विजय स्वरूप मनाये जाने वाला उत्सव है। इसी के साथ नौ दिन तक देवी के विभिन्न रूपों की, शक्तियों और गुणों की पूजा व साधना शुरु होती है। इस साधना और तप द्वारा अपने अन्दर की शक्तियों और गुणों के विकास का सभी प्रयास करते हैं। त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने रावण जैसे महापराक्रमी को परास्त कर धर्म राज्य की स्थापना की थी। उससे पहले शक्ति स्वरूपा माँ दुर्गा ने असुरों पर विजय प्राप्त की थी। इसलिए यह पर्व नारी शक्ति की उपासना का भी प्रतीक है। संघ भी पिछले सौ  वर्षों से निरंतर इन्हीं गुणों का व्यक्ति और समाज में विकास करने के लिये भगवान राम के कार्य मे लगा हुआ है, ताकि कोई भी रावण जैसी आसुरी शक्ति समाज पर अत्याचार न कर पाये। संघ का उद्देश्य है भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में रामराज्य की स्थापना हो। भारत एक समृद्धिशाली, शक्तिशाली व सभी के लिए हितकारी राष्ट्र के रूप में उभरे।  

समाज केंद्रित अनवरत संघ यात्रा:

संघ की सौ वर्षों की यात्रा के तीन वैशिष्ट्य रहे है। अनवरत,अखंड एवं निरंतरता। संघ ने मूल को कभी नहीं छोड़ा, बल्कि कालसुसंगत नई बातों को जोड़ते गए। वर्ष 1925  से 1940 तक पहली पीढ़ी ने सारे देश में संघ कार्य का बीजारोपण किया। विचार, कार्य पद्धति, प्रशिक्षण, कार्यकर्ता निर्माण की प्रक्रिया पर अपना फोकस रखा। उसके बाद के कालखंड में हम देखते है कि 1940 से 1975 तक पूरे राष्ट्र में संघ कार्य का  विस्तार, पाकिस्तान और चीन का हमला,आपातकाल में समाज में संघ के प्रति विश्वास, समाज में संघ कार्य के प्रति जुड़ाव व स्वयंसेवकों के समर्पण तथा देशभक्ति से संघ के प्रति विरोध भी  धीरे-धीरे समाप्त होना प्रारंभ हुआ। वर्ष 1975 से 2000 में संघ के राष्ट्रव्यापी कार्य में समाज सहयोगी हो गया, संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार का शताब्दी वर्ष, श्री राम जन्मभूमि आदि के निमित्त संघ कार्य समाजव्यापी हुआ,समाजक्षेत्र के विभिन्न क्षेत्रों में संघ ने प्रवेश किया। वर्ष 2000 से अब तक श्रीगुरु जी जन्म शताब्दी, समाज की सज्जन शक्ति का जागरण, समाज को दिशा देने के निमित्त अनेक कार्यों में सक्रिय भूमिका के कारण समाज और संघ एक ही प्लेटफॉर्म पर आ गए, कोविड में समाज और संघ स्वयंसेवकों ने मिलकर कार्य किया, श्री रामजन्मभूमि हेतु निधि समर्पण अभियान में समाज का अद्भुत प्रतिसाद संघ कार्य के प्रति उनके अटूट विश्वास का परिचायक बना। संघ कुछ नहीं करेगा परंतु स्वयंसेवक कुछ नहीं छोड़ेगा। संघ के इसी विचार से प्रेरित होकर स्वयंसेवकों ने समाज के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी सक्रिय भूमिका निभाकर सकारात्मक परिवर्तन किये।     

पंच परिवर्तन से समाज परिवर्तन:

यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा समाज निर्माण की दिशा में उठाया गया एक महत्त्वपूर्ण विचार है। इसका उद्देश्य भारतीय समाज को संस्कारयुक्त, संगठित, समरस और शक्तिशाली बनाना है, जिससे राष्ट्र की उन्नति हो सके। पांच ऐसे विषय जो स्वयं से प्रारम्भ होकर समाज को जोड़ते हैं यानि पंच परिवर्तन से समाज परिवर्तन। जिसमें सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण, स्व के भाव का जागरण और नागरिक शिष्टाचार शामिल है. सामाजिक समरसता का  उद्देश्य जाति, भाषा, क्षेत्र, धर्म आदि के भेद मिटाकर समाज में एकात्मता और बंधुत्व का विकास करना है । ताकि समाज में भेदभाव नहीं, समानता और सम्मान हो, यही समरसता है। कुटुंब प्रबोधन का उद्देश्य परिवार को केवल एक सामाजिक इकाई नहीं, बल्कि संस्कार, संवाद और संस्कृति का केंद्र मानना। क्योंकि संस्कारयुक्त परिवार ही सशक्त समाज की नींव है। पर्यावरण संरक्षण का केंद्रबिंदु प्रकृति के साथ संतुलन बनाना, विकास के नाम पर विनाश को रोकना है। वृक्षारोपण, जल संरक्षण, प्लास्टिक मुक्त भारत, सौर ऊर्जा के प्रयोग का प्रचार जैसे अनेकों अभियान इस कार्य में सहयोगी हो सकते हैं। क्योंकि पर्यावरण की रक्षा, जीवन की रक्षा है। स्व के भाव का जागरण का उद्देश्य स्वदेशी विचार, संस्कृति, परंपरा और गौरव को पुनः जागृत करना है। ताकि शिक्षा, भाषा, इतिहास, नायकों, परंपराओं में स्व की प्रतिष्ठा बढ़े तथा अपने राष्ट्रीय आदर्शों, आस्थाओं और प्रतीकों के प्रति सम्मान के भाव का जागरण हो। इसके लिए हमें अपने व्यवहार में भारतीय भाषाओं का प्रयोग, भारतीय वस्त्र, योग, त्योहारों का पारंपरिक रूप से पालन, स्वदेशी अपनाओ, भारतीय ज्ञान प्रणाली का पुनरुत्थान जैसे प्रयोगों को लाना ही होगा। क्योंकि यह कटु सत्य है कि जब तक स्व नहीं जागेगा, तब तक समाज सशक्त नहीं होगा। नागरिक शिष्टाचार का फोकस व्यक्तिगत अनुशासन, सार्वजनिक आचरण, और समाज के प्रति उत्तरदायित्व को मजबूत करना है। क्योंकि देशभक्ति केवल नारों से नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की जिम्मेदारियों के पालन से प्रकट होती है। 

समाज जागरण से राष्ट्र वैभव तक: 

पिछले सौ वर्षों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लाखों -लाख स्वयंसेवकों द्वारा एक निरंतर महायज्ञ चल रहा है, एक यज्ञ जिसका उद्देश्य केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि समाज को संगठित, जागरूक और सशक्त बनाना है। यह यज्ञ उन आगामी समस्याओं और चुनौतियों से जूझने की तैयारी है, जो समय-समय पर हमारे समक्ष आती हैं। आज आवश्यकता है कि सज्जन शक्ति, समाज की सकारात्मक और राष्ट्रनिष्ठ शक्तियाँ एक साथ आएँ। भारत जैसा विशाल देश, केवल किसी एक संगठन या समूह के प्रयासों से नहीं, बल्कि सभी के सामूहिक सहयोग और सक्रिय भागीदारी से ही आगे बढ़ सकता है। मतभेदों को भूलकर, हम सबको मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना होगा।आज विजयादशमी के इस पावन दिन पर हम सबका संकल्प बनना चाहिए कि हम इस पवित्र भारत भूमि को फिर से विश्वगुरु के स्थान पर प्रतिष्ठित करें। इसलिए सभी माताओं, बहनों, बंधुओं और युवाओं को यह तय करना होगा कि वे देश की आवश्यकता के अनुरूप इस राष्ट्रकार्य में अपनी सक्रिय भूमिका निभाएँ। आज का यह कालखण्ड केवल एक युगांत नहीं, बल्कि अमृतकाल है। अब समय है कि हम सब मिलकर भगीरथ प्रयास करें और भारत माता को उसके परम वैभव, उसके गौरवपूर्ण स्थान तक पहुँचाएँ।

अब हमें अपने दायित्वबोध को ओर व्यापक करके देखना होगा। क्योंकि आज विश्व को भारत की नितान्त आवश्यकता है। भारत को अपनी प्रकृति,संस्कृति के सुदृढ़ नींव पर खड़ा होना ही पड़ेगा। इसलिये राष्ट्र के बारे में यह स्पष्ट कल्पना व उसका गौरव मन में लेकर समाज में सर्वत्र सद्भाव, सदाचार तथा समरसता की भावना सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। परन्तु यह समय की आवश्यकता तभी समय रहते पूर्ण होगी जब इस कार्य का दायित्व किसी व्यक्ति या संगठन पर डालकर, स्वयं दूर से देखते रहने का स्वभाव हम छोड़ दें।राष्ट्र की उन्नति, समाज की समस्याओं का निदान तथा संकटों का मात करने का कार्य ठेके पर नहीं दिया जाता। समय-समय पर नेतृत्व करने का काम अवश्य कोई न कोई करेगा, परंतु जब तक जागृत जनता, स्पष्ट दृष्टि, निःस्वार्थ प्रामाणिक परिश्रम तथा अभेद्य एकता के साथ वज्रशक्ति बनकर ऐसे प्रयासों में स्वयं से नहीं लगती, तब तक संपूर्ण व शाश्वत सफलता मिलना संभव नहीं होगा। इसलिए अब प्रत्येक राष्ट्र उत्थान केंद्रित दृष्टि रखने वाले व्यक्ति को स्वयं से प्रारंभ कर, अपने आस-पास के लोगों को जागृत करते हुए आगे बढ़ना होगा। यही समय की मांग है और यही हमारी जिम्मेदारी भी है। आज का समय पूरे विश्व को भारत की विजय गाथा बताने का समय है।जिसे सुनने के लिए व जिसका अनुसरण करने के लिए पूरी दुनिया तैयार है।अब वो दिन नहीं रहे, जब कोई भी हमारे देश को आँखें दिखा देता था।अब हम आँखें दिखाने वाले को घर में घुस कर मारते है। तो आईये, राष्ट्र की भक्ति के रुप में उत्तम कार्य करने का संकल्प करते हैं। क्योंकि वर्तमान परिस्तिथियों में हिंदू समाज की संगठित शक्ति ही सभी समस्याओं का एक अचूक निदान है।