सदानंद काकड़े : कर्मठ कार्यकर्ता

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– विजय कुमार

संगठन द्वारा निर्धारित कार्य में पूरी शक्ति झोंक देने वाले श्री सदाशिव नीलकंठ (सदानंद) काकड़े का जन्म 14 जून, 1921 को बेलगांव (कर्नाटक) में हुआ था। उनके पिता वहीं साहूकारी करते थे। बलिष्ठ शरीर वाले पांच भाई और नौ बहनों के इस परिवार की नगर में धाक थी। बालपन में उन्होंने रंगोली, प्रकृति चित्रण, तैल चित्र आदि में कई पारितोषिक लिए। वे नाखून से चित्र बनाने में भी निपुण थे। मेधावी छात्र होने से उन्हें छात्रवृत्ति भी मिलती रही। उन्हें तेज साइकिल चलाने में मजा आता था। वास्तु शास्त्र, हस्तरेखा विज्ञान, सामुद्रिक शास्त्र, नक्षत्र विज्ञान, अंक ज्ञान आदि भी उनकी रुचि के विषय थे।

रसायन शास्त्र में स्नातक सदानंद जी 1938 में स्वयंसेवक और 1942 में प्रचारक बने। नागपुर में श्री यादवराव जोशी से हुई भेंट ने उनके जीवन में निर्णायक भूमिका निभाई। प्रारम्भ में वे बेलगांव नगर और तहसील कार्यवाह रहे। प्रचारक बनने पर वे बेलगांव नगर, जिला और फिर गुलबर्गा विभाग प्रचारक रहे। 1969 में उन्हें विश्व हिन्दू परिषद में भेजा गया।

उन दिनों विश्व हिन्दू परिषद का काम प्रारम्भिक अवस्था में था। सदानंद जी को कर्नाटक प्रान्त के संगठन मंत्री की जिम्मेदारी दी गयी। 1979 में प्रयाग में हुए द्वितीय विश्व हिन्दू सम्मेलन में वे 700 कार्यकर्ताओं को एक विशेष रेल से लेकर आये। 1983 तक वे प्रांत और 1993 तक दक्षिण भारत के क्षेत्रीय संगठन मंत्री रहे। 1993 में उनका केन्द्र दिल्ली हो गया और वे केन्द्रीय मंत्री, संयुक्त महामंत्री, उपाध्यक्ष और फिर परामर्शदाता मंडल के सदस्य रहे। 1983 में स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण की शताब्दी मनाने के लिए उन्होंने श्रीलंका, इंग्लैंड और अमरिका की यात्रा भी की। बेलगांव में सदानंद जी का सम्पर्क श्री जगन्नाथ राव जोशी से हुआ, जो आगे चलकर प्रचारक और फिर दक्षिण में जनसंघ और भाजपा के आधार स्तम्भ बने। इतिहास संकलन समिति के श्री हरिभाऊ वझे और विहिप के श्री बाबूराव देसाई भी अपने प्रचारक जीवन का श्रेय उन्हें ही देते हैं। गांधी हत्या के बाद एक क्रुध्द भीड़ ने बेलगांव जिला संघचालक अप्पा साहब जिगजिन्नी पर प्राणघातक हमला कर दिया। इस पर सदानंद जी भीड़ में कूद गये और अप्पा साहब के ऊपर लेटकर सारे प्रहार झेलते रहे। इससे वे सब ओर प्रसिध्द हो गये।

प्रारम्भ में संघ की सब गतिविधियों का केन्द्र बेलगांव ही था। कई वर्ष तक उनकी देखरेख में संघ शिक्षा वर्ग लगातार वहीं लगा; पर उसमें कभी घाटा नहीं हुआ। गोवा मुक्ति आंदोलन के समय देश भर से लोग बेलगांव होकर ही गोवा जाते थे। वर्ष 1995 में हुई द्वितीय एकात्मता यात्रा के वे संयोजक थे। इसमें सात बड़े और 700 छोटे रथ थे, जिन पर भारत माता, गंगा माता और गोमाता की मूर्तियां लगी थीं। सभी बड़े रथ नागपुर के पास रामटेक में निश्चित तिथि और समय पर एकत्र हुए। इसमें तत्कालीन सरसंघचालक श्री रज्जू भैया और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री गोपीनाथ मुंडे भी उपस्थित हुए।

बहुभाषी सदानंद जी ने हिन्दी और मराठी में कई पुस्तकें लिखीं। ‘हिन्दू, हिन्दुत्व, हिन्दू राष्ट्र’ नामक पुस्तक का देश की नौ भाषाओं में अनुवाद हुआ। जगन्नाथ राव जोशी से उनके संबंध बहुत मित्रतापूर्ण थे। जोशी जी के देहांत के बाद उन्होंने आग्रहपूर्वक पुणे के अरविन्द लेले से उनका जीवन परिचय लिखवाया और श्री ओंकार भावे से उसका हिन्दी अनुवाद कराया।

वर्ष 2005 से वे अनेक रोगों से पीड़ित हो गये। कई तरह के उपचार के बावजूद प्रवास असंभव होने पर वे आग्रहपूर्वक अपनी जन्मभूमि बेलगांव ही चले गये। वहां एक अनाथालय का निर्माण उन्होंने किसी समय कराया था। उसमें रहते हुए 12 जुलाई, 2010 को उनका शरीरांत हुआ।

5 COMMENTS

  1. सदानंद जी को नमन. लेखक को साधुवाद..की ऐसी महान विभूति से परिचय कराया. यह क्रम जारी रहे. देश के ऐसे असली नायक और सपूत हमारी प्रेरणा है. इनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी लोगो तक पहुंचनी चाहिए.

  2. स्वर्गीय सदानंद काकडे जैसे अदभुत लोगों के बारे में पढने से मन में उर्जा का संचार होता है.व्यक्ति एक परन्तु गुण अनेक.
    श्री विजय कुमार जी को स्वर्गीय सदानंद काकडे जैसे महान विभूतियों से मेरा परिचय करने के लिए सादर धन्यवाद.

  3. ……….”गांधी हत्या के बाद एक क्रुध्द भीड़ ने बेलगांव जिला संघचालक अप्पा साहब जिगजिन्नी पर प्राणघातक हमला कर दिया। इस पर सदानंद जी भीड़ में कूद गये और अप्पा साहब के ऊपर लेटकर सारे प्रहार झेलते रहे। ”

    – आज कोई ऐसा लाल है, जो अपनी जान पर खेल जाए.
    – जय हो. मेरा अभिनंदन.

  4. स्मरण ठीक नहीं हो रहा, पर किसी विश्व संघ शिविरमें, शायद बंगळुरू में भेंट हुयी थी। और आपने मुझे यही– ‘हिन्दू, हिन्दुत्व, हिन्दू राष्ट्र’–पुस्तक भेंट की थी।
    आज कल ठोस रचनात्मक और सकारात्मक कार्य करने वाली संस्था जिसे हम संघ कहते हैं; जिसका ठोस कार्य नगण्य हो जाता है, और जो संस्थाएं केवल शाब्दिक प्रचार करती हैं, उनके साथ, उसकी तुलना शब्दों द्वारा ही की जाती है। तो .कुछ ….. ? कुछ ? कुछ ? लगता है, कि,
    कागज़ी घोडे, सच्चे घोडोंसे बहुत तेज भागते हैं।
    —कागज़ी जो ठहरे।
    किंतु फिर आप जैसे कर्तृत्वसे परिपूर्ण, कार्यकर्ता का जीवन स्मरण करता हूं, तो फिर से उमंग और उत्साह भर आता है। धन्यता का अनुभव करता हूं।
    पंक्तिया झरने लगती है।
    ===श्रद्धांजलि==
    एक तेज पहन तन आया था।
    पथ आलोकित कर, चला गया।
    ना नाम चाहना,
    ना दाम याचना।
    अहं दंभ आडंबर हीना।
    तिल तिल कर सदानंद
    जीवन देकर चला गया।
    भारत माँ के भाग्य भालपर–
    तिलक लगाकर चला गया।
    आनंद कार्गपर चला गया।
    एक तेज, पहन तन आया था।
    पथ आलोकित कर, चला गया।
    सर्व शक्तिमान परमात्मा, आप की आत्मा को परम शांति प्रदान करें।

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