नर्मदापुरम में  वर्ष 1980 में नर्मदा जयंती महोत्सव के जनक संत राधे बाबा

– आज नर्मदा जन्मोत्सव पर विशेष  

 आत्‍माराम यादव पीव

आज 16 फरवरी को नर्मदा जयंती महोत्सव को नर्मदापुरम में गौरव दिवस के रूप में मनाने की तैयारी बडी धूमधाम से की जा रही है जिसमें प्रात: साढ़े दस बजे नॉ नर्मदा के प्राीच मंदिर में नित्य आरती के साथ जन्‍मोत्‍सव की शुरुआत होगी , दोपहर में शोभायात्रा के पश्चात सॉय साढे पाच बजे सेठानी घाट पर मॉ नर्मदा का अभिषेक प्रदेश के मुख्‍यमंत्री डॉ मोहन यादव ,स्थानीय विधायक डॉ सीतासरन शर्मा, सिवनी मालवा विधायक प्रेमशंकर वर्मा सहित अन्य विशिष्ट  अतिथियों की उपस्थिति में होगा। जिसमें मॉ नर्मदा में लाखों दीप प्रज्वलित कर प्रवाहित किए जाएगे और जलमंच से आयोजन का आनन्‍द लेने के लिए सेठानी घाट पर लाखों की संख्या में जनसमूह उपस्थित होगा। इस महोत्सव की शुरुआत वर्ष 1980 में संत राधे बाबा और उनके भक्‍त एडवोकेट ज्ञानचंद मस्‍ते एवं उनके साथियों ने की थी जो आज भव्यतम रूप ले चुका है, जिसमें संत राधे बाबा को विस्‍मरण करना इस उत्सव की मूल जड से प़थक होना है। 

          वैष्णव सम्प्रदाय की भक्ति साधना की शुरूआत श्रीकृष्ण की आद्याशक्ति, आल्हादिनी स्वरूपा श्रीराधारानी रही है और श्री श्री 1008 श्री राधेबाबा बचपन से ही श्रीराधारानी के नित्यबिहार और निकुंज लीलाओ का रास्वास्वादन करते हुये स्वयं को सखी भाव में जीने का आनन्द प्राप्त कर चुके थे और आखिरी समय तक वे आध्यात्मिक सागर में गोते लगाते हुये  इसी अतुलनीय परमानन्द में निमग्न रहे। कहते है पूत के पॉव पालने में दिख जाते है ऐसे ही हाथरस में सन 1901 में जन्में राधेबाबा ने अपने परिवार को 5 साल की उम्र में त्याग कर वृन्दावन की राह पकड़ी। वहॉ पहुॅचकर उन्होंने बृजभूमि की रज को अपने मस्तक पर धारण कर किशोरावस्था को पार करके युवा हो गये, पता ही नहीं चला। वे चौबीसों घन्टों राधारानी का जाप किया करते थे तब उनका घर का नाम दूसरा था लेकिन राधा नाम जाप करने से सभी इन्हें राधे नाम से बुलाने लगे। राधे ने राधानाम के प्रेमरस की अपूर्व शक्ति का परिचय देते हुये कुछ दिनों में ब्रजभूमि को छोड़कर आगराकी ओर प्रस्थान किया और वहॉ 11वर्षो तक किले के पास एक पेड़ के पास कुटिया बनाकर यमुना के तट पर अपनी साधनारत रहे। इस दरम्यान आगरा के अनेक प्रतिष्ठित लोगों का उनके पास आना जाना शुरू हो गया और तब उनकी युगलकिशोरी श्रीराधारानी के श्रीचरणों की भक्ति से मिलने वाला अमृतस्वरूप परमप्रेम का एकाकार बाधक बनने लगा तब  वहॉ से चल दिये और अनेक स्थानों पर विचरण करते हुये नर्मदातट होशंगाबाद में कदम रखे।

वे होशंगाबाद में 1960 में आये और किले के पास 7 साल तक रहकर साधनारत रह एकाकी जीवन जीते रहे। वहॉ भी उनके मिलने वाले पहुॅचने लगे और उनसे आग्रह किया कि इस बियावान जंगलनुमा किले के स्थान का छोड़कर आप मंगलवारा घाट पर निवास करे। वे मंगलवारा घाटपर तीन वर्ष रहे फिर वहॉ से सेठानीघाट स्थित हनुमानमंदिर के पीछे पंचमुखी शिवजी के मंदिर में अपना डेरा डाल लिया। उन्होंने अपने जीवन में खाली समय लेखन पढ़न कार्य जारी रखा और चार-पॉच बड़े झोलों में उनके लिखे कागजात हुआ करते थे कि सन 1973 में अचानक नर्मदा में बाढ़ आ गयी जिससे उनके लिखे कागजात और संग्रह किये साहित्य के वे झोले नर्मदा में बह गये। लेकिन राधे बाबा ने नर्मदा से प्रार्थना कर पानी कम करने का आग्रह किया और मॉ ही की कृपा थी कि चारों ओर पानी का प्रलय था लेकिन राधे बाबा मंदिर के शिखर पर आराम से बैठे रहे और पानी उतरने लगा। शहर के अधिकांश लोगों को इस बात की खबर लग चुकी थी कि राधे बाबा बाढ़ के समय तीन-दिन रात तक मंदिर के शिखर पर आराम से बेठे रहे तब बाद में शहर के गणमान्य नागरिकों ने उनसे आग्रह किया तब वे चित्रगुप्त मंदिर में आकर ठहरे।

चित्रगुप्त मंदिर में राधे बाबा का कुछ समय गुजरा तब उन्होंने अपनी आराध्य श्रीकिशोरी जू राधारानी का मंदिर बनाने का निर्णय लिया और वहीं चित्रगुप्त मंदिर के सामने उन्होंने यह मंदिर बनाकर अपनी आराध्या की सेवा में लग गये। राधे बाबा सच्चे संत थे और उन पर राधा रानी की अहेतुक कृपा थी और उनके मुख से निकलने वाले वाक्य ब्रम्हवाक्य जैसे सत्य हुआ करते थे। वे साधन और साध्य का एकाकार होकर तदाकार हो जाना की भक्ति को जीते थे और जब कोई उन्हें रूपया पैसा, अनाज दान देने आता तो वह उसे अस्वीकार कर घाट पर बांटने का कहकर लौटा देते थे। अनेक बार ऐसा हुआ कि वे उन लोगों से जो देना नहीं चाहते, उन्हें आदेश देकर लेना भी जानते थे और उस लिये हुये द्रव्य-सामग्री को दूसरों को बटवा दिया करते थे। पूज्यपाद संत राधे बाबा के नाम से होशंगाबाद जिले में सभी परिचित हो चुके थे और उनका आर्शीवाद चाहने को लालायित रहते थ किन्तु वे बहुत ही कम लोगों से मिला करते और जो जरूरतमंद है, जिस पर कोई विपत्ति आयी है उसे देखकर समझ लेते और उसकी समस्या का निदान करते थे।
नर्मदा जयंती पर राधे बाबा साधारण स्वरूप में कोरी घाट पर दीपदान कर इसे मनाते थे तब उनके भक्तों में ज्ञानचन्द मस्ते एडव्होकेट, पण्डित हरिशंकर तिवारी एडवोकेट, ओमप्रकाश अग्रवाल, प्रकाश चौरे, दीनू चावला एवं मधुकरराव हर्णे आदि को राधे बाबा ने नर्मदा जयंती महोत्सव को धूमधाम से मनाने को कहा। 

    वह साल 1980 का साल था जब पहली बार नर्मदा जयंती उत्सव की झांकी

नर्मदाजयंती महोत्वस का अवसर था जब सभी ने मिलकर सेठानीघाट पर दोपहर से ही घाट की सीढ़ियों पर तेल में सरोबोर दीपकों को करीने से सजाकर मॉ नर्मदा का जन्मोत्सव का श्रीगणेश किया और शाम को मॉ नर्मदा की भव्य आरति की गयी। सेठानीघाट की प्रत्येक सीढ़ी को दीपों से झिलमिलाते देखने का यह आनन्द देररात तक देखने के मिला और इसवर्ष के पश्चात आने वाले कुछ वर्षो तक राधेबाबा के मार्गदर्शन में यह नर्मदाजयंती महोत्सव मनाया गया। बाद में इस आयोजन के लिये एक कमेटी  बनायी गयी जिसने दो-तीन साल अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया इसके बाद यह पर्व राजनैतिक रूप से मनाया जाने लगा और मनाने की होड़ में नर्मदाजल में तैरते मंच से नर्मदा की आरति एवं अभिषेक की होड़ में नर्मदा अपमानित हो रही है। अब इस पर्व पर नर्मदा जयंती महोत्सव पर नेताओं द्वारा अपने वोट बैंक के पत्ते फेंक कर घोषणाएं की जाकर इस नर्मदा जयंती पर्व को बदरंग कर दिया गया। राधे बाबा यह सब देखकर शांत रह अपनी साधना में लीन रहे और 24 मार्च 2000 को 110 वर्ष की अवस्था में वे इस जगत को अलविदा कर ब्रह्मलीन हो गये। 

नर्मदाजयंती की शुरूआत का यह पर्व आज प्रदेश ही नही अपितु देश के क्षितिज पर गुंजित है तथा हर बार इस आयोजन को भव्यता प्रदान करने का सिलसिला जारी है जिसमें लाखों की सॅख्या में लोग षामिल होते है और अब यह आयोजन तीन दिनों पूर्व प्रारम्भ हो जाता है जिसमें रंगोई प्रतियोगिता, नर्मदापुराण, नर्मदाषोभायात्रा सहित पूरे समय हलचल मची रहती हैं। यह संत राधेबाबा का ही प्रयास था कि नर्मदाजयंती में भक्त मॉ की प्रार्थना कर उनसे जुड़े, परिणामस्वरूप यह आयोजन अब नर्मदापुरम  ही नहीं अपितु नर्मदा के सभी घाटों पर जबलपुर, बड़वानी, बड़वाह, महेष्वर, ऑवरीघाट सहित नर्मदातट पर बसे सभी शहरों’गॉवों व कस्‍बों में पूरे धूमधाम और उत्साह से मनाया जा रहा है। 

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