समाज को स्नेह सूत्र में बाँधने निकले संत

– लोकेन्द्र सिंह

यह कितनी सुखद बात है कि समाज के विभिन्न वर्गों में आत्मीयता एवं समरसता के भाव को बढ़ाने के लिए साधु-संत ‘स्नेह यात्रा’ पर निकल पड़े हैं। जब द्वार पर आकर संत कुछ आग्रह करते हैं, तब हिन्दू समाज का कोई भी वर्ग उस आग्रह को अस्वीकार नहीं कर सकता। मन में असंतोष होगा, लेकिन संतों का सम्मान सबके हृदय में सर्वोपरि है। इसलिए तो सब भेद भुलाकर, हिन्दू विरोधी ताकतों के उलाहने नकारकर, भगवत् कथा का श्रवण करने के लिए सभी वर्गों के लोग संतों के पंडाल में एकत्र हो जाते हैं। हम जानते हैं कि भारत को कमजोर करने के लिए बाह्य विचार से पोषित ताकतें हिन्दू समाज के जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं। ये ताकतें पूर्व में हुए जातिगत भेदभाव के घावों को कुरेद कर अनुसूचित जाति वर्ग के बंधुओं के कोमल हृदय में द्वेष के बीज बोने का काम कर रही हैं, जबकि कोशिश होनी चाहिए उनके घावों पर मरहम लगाने की। परंतु जिनका स्वार्थ परपीड़ा से सध रहा हो, वे जख्म पर नमक ही छिड़केंगे। उनसे कोई और उम्मीद करना बेमानी है। ऐसे वातावरण में संत समाज ने आगे आकर, सभी वर्गों में बंधुत्व के भाव को बढ़ाने के जो प्रयास किए हैं, वह अनुकरणीय हैं। समाज की सज्जनशक्ति को संतों के साथ जुड़ना चाहिए और स्नेह धारा को आगे बढ़ाना चाहिए। 

मध्यप्रदेश के सभी जिलों में गाँव-गाँव जब ये संत पहुँच रहे हैं, तब समाज का विश्वास बढ़ानेवाले दृश्य दिखायी दे रहे हैं। सामूहिक भजन और सामूहिक भोजन, एक ही संदेश हम सब एक ही माला के मोती हैं। एक ही ब्रह्म का अंश सबमें हैं। हम मिलकर रहेंगे, तब कोई भी परकीय आक्रमण हमें नुकसान नहीं पहुँचा सकते। उल्लेखनीय है कि जब भी भारत में धर्म की हानि हुई है या फिर समाज कमजोर पड़ा है, तब उसे संतों ने ही संभाला है। आचार्य शंकर का उदाहरण प्रासंगिक होगा कि जब देश में हिन्दुत्व की डोर कमजोर पड़ी, तब उन्होंने समूचे देश की परिक्रमा करके उसे एकात्मता के सूत्र में जोड़ने का काम किया। स्वामी समर्थ रामदास ने महाराष्ट्र के एक स्थान से निकलकर समूचे देश में हनुमान जी के संदेश को पहुँचाया और अखाड़ों के रूप में शक्ति के केंद्र स्थापित किए। जब देश-विदेश में हिन्दू धर्म की प्रतिष्ठा को धूमिल किया जा रहा था, तब स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म संसद के मंच से दुनिया को आईना दिखाने का महान कार्य किया और हिन्दू धर्म की विजय पताका विश्व पटल पर फहरा दी। जब हम अपनी सांस्कृतिक मूल्यों से दूर हुए तब स्वामी दयानंद सरस्वती आगे और उन्होंने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ से हमारा मार्ग प्रशस्त किया। कबीर, तुलसी, नानक आए और सूरदास, रैदास, तुकाराम, नामदेव, ज्ञानेश्वर ने समाज को दिशा दी। भारत में संतों की एक लंबी परंपरा है, जिन्होंने समाज को संभालने के कार्य को ही अपनी साधना बना लिया।

जब अस्पृश्यता का संकट समाज को खाये जा रहा था, तब संत स्वरूप माधव सदाशिवराव गोलवलकर ‘श्रीगुरुजी’ ने देश के प्रमुख संत-महात्माओं से आग्रह किया कि वे सभी एक मंच पर आकर हिन्दू समाज को सामाजिक समरसता का संदेश देवें। श्रीगुरुजी के प्रयासों से 13-14 दिसंबर, 1969 को उडुपी में आयोजित धर्म संसद में देश के प्रमुख संत-महात्माओं ने एकसुर में समरसता मंत्र का उद्घोष किया-  

हिन्दव: सोदरा: सर्वेन हिन्दू: पतितो भवेत्।

मम दीक्षा हिन्दू रक्षा, मम मंत्र: समानता।।”

अर्थात् सभी हिन्दू सहोदर (एक ही माँ के उदर से जन्मे) हैं, कोई हिन्दू नीच या पतित नहीं हो सकता। हिन्दुओं की रक्षा मेरी दीक्षा है, समानता यही मेरा मंत्र है। श्रीगुरुजी को विश्वास था कि देश के प्रमुख धर्माचार्य यदि समाज से आह्वान करेंगे कि अस्पृश्यता के लिए हिन्दू धर्म में कोई स्थान नहीं है, इसलिए हमें सबके साथ समानता का व्यवहार रखना चाहिए, तब जनसामान्य इस बात को सहजता के साथ स्वीकार कर लेगा और सामाजिक समरसता की दिशा में बड़ा कार्य सिद्ध हो जाएगा। संतों के इस आह्वान का प्रभाव हुआ और समाज से बहुत हद तक जातिगत भेदभाव की समस्या दूर हो गई।

हालांकि आज जातिगत भेदभाव की समस्या पूर्व की भाँति नहीं है। परंतु जिस प्रकार से भारत विरोधी ताकतें जातिगत एवं सांप्रदायिक भेद को उभारकर, समाज के विभिन्न वर्गों में द्वेष उत्पन्न करने का प्रयास कर रही हैं, वैसी स्थिति में यह आवश्यक हो जाता है कि समाज को संभालने का सामर्थ्य रखनेवाली संस्थाएं आगे आएं। इस भूमिका को संतों से बेहतर कोई नहीं निभा सकता था। यह अच्छा ही है कि ‘स्नेह यात्रा’ का नेतृत्व संत कर रहे हैं। संतों के नेतृत्व में ही यह यात्राएं 16 अगस्त से सभी जिलों में एक साथ प्रारंभ हुई हैं, जो 26 अगस्त को पूर्ण होंगी। संतों के स्वागत एवं सान्निध्य के लिए जिस प्रकार नागरिक समुदाय उमड़ रहा है, उससे संकेत मिलता है कि ‘स्नेह यात्रा’ का सुफल परिणाम प्राप्त होगा। समाज में सकारात्मक एवं समरस वातावरण बनेगा।–


लोकेन्द्र 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,006 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress