कविता

हर वक्त एक ही सवाल


साक्षी देवरारी
गरुड़, बागेश्वर
उत्तराखंड

हर वक्त एक ही सवाल मन में दौड़ता है,
कैसे कोई पल में अच्छा और बुरा बन जाता है?


बैठे-बैठे यही सोचती हूं, जवाब नही मिल पता है,
जब वह अच्छा बनता है, तो तारीफें करता है,
और जब बुरा बनता है तो बुराइयां करता है,
हर बार अपना अलग रंग दिखलाता है,
उसका रंग देखते-देखते जीवन निकल जाता है,
मगर रंग बदलते-बदलते वह क्यों नहीं थकता है?
उससे कैसे बचा जाए, यह बस हमें ही आता है,
पर तब भी उससे कोई बच नहीं पाता है,
क्या लोग ऐसे ही होते हैं? मन में यही सवाल आता है,
मगर जवाब नहीं मिल पाता है, बस बैठे बैठे दिन निकल जाता है।