संघ शिक्षावर्ग – राष्ट्रसाधना के प्रशिक्षण का प्रसंग  

ग्रीष्म की छूट्टियों में जब कि सामान्यतः लोग किसी पहाड़, पठार, ठंडे स्थान जैसे सुरम्य स्थान पर या होटल के वातानुकूलित कमरों में जाकर आराम करना पसंद करते हैं, तब देश का एक बड़ा वर्ग अपनी स्वरुचि से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अभ्यास वर्गों में जाकर पंद्रह-बीस दिनों तक कड़ा श्रम करते हुए पसीना बहाता है। इन वर्गों में शिक्षार्थी चाहे जिस भी पृष्ठभूमि से आया हो, वह बिना कूलर एसी के ही नीचे भूमि पर दरी बिछाकर सोने व स्वयं ही अपना बिस्तर समेटने व अपने आसपास को स्वच्छ रखने हेतु बाध्य रहता है। इन शिविरों में यह प्रशिक्षार्थी बिना मोबाइल, बिना इंटरनेट, घर-गृहस्थी से संवाद किए बिना ही रहता है। स्वयं के भोजन पात्र, वस्त्र स्वयं ही मांजता-धोता है एवं इस अवधि में उसे शिविर प्रांगण से कहीं बाहर जाने की भी अनुमति नहीं होती है। किसी गुरुकूल के विद्यार्थी की भांति, यहां व्यक्ति, व्यक्तित्व परिष्करण व राष्ट्र चिंतन हेतु कष्टप्रद परिस्थितियों में रहता है। इन वर्गों में सामाजिक कार्यों में श्रमदान, अपने परिवेश की स्वच्छता, समाज के विभिन्न वर्गों के घर-परिवार में अचानक अतिथि रूप में जाकर भोजन प्राप्त करना व उनसे चर्चा करना जैसी गतिविधियां भी सम्मिलित रहती हैं। 

        आचार्य चाणक्य ने अपनें राजनीति शास्त्र में कहा था कि किसी भी देश में “शांति काल में जितना पसीना बहेगा, उस देश में, युद्ध काल में उससे दूना रक्त बहनें से बचेगा”। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के, इन संघ शिक्षा वर्गों में आये शिक्षार्थी, आचार्य चाणक्य की कल्पना पर ही देश के शांति काल में कल्पना, योजना, निर्माण, रचना पर अथक परिश्रम करते हुए सतत कर्मशील रहनें का व सतत श्रम करते रहने का संकल्पित प्रशिक्षण लेतें हैं। आश्चर्यचकित कर देनें वाला तथ्य है कि प्रतिवर्ष चरम गर्मी के दिनों में देश भर के लगभग साठ-सत्तर  स्थानों पर आयोजित होनें वाले, इन शिक्षा वर्गों में संघ के पंद्रह हज़ार  से अधिक स्वयंसेवक प्रशिक्षण लेतें हैं। ये प्रशिक्षण उनके रोजी-रोजगार, आजीविका, व्यावसायिक अथवा कार्यालयीन कार्यकुशलता में वृद्धि के लिए सुविधाजनक होटलों में या रिसार्ट्स में आयोजित नहीं होते हैं! ये शिक्षा वर्ग बिना किसी भौतिक या व्यक्तिगत लाभ की दृष्टि से कष्टसाध्य वातावरण में किसी सामान्य से विद्यालय के कक्षों व प्रांगणों में आयोजित होतें हैं! सात दिनों से पच्चीस दिनों तक के इन वर्गों के पाठ्यक्रम में प्रतिदिन लगभग चार घंटे के बौद्धिक विकास कार्यक्रम तथा चार घंटे के शारीरिक विकास के औपचारिक कार्यक्रम रखें जाते हैं। इसके अतिरिक्त शेष  समय में व्यक्ति को ऐसा परिवेश मिलता है कि व्यक्ति राष्ट्र व समाज आराधना में तल्लीन हो जाता है। यहां यह स्मरण अवश्य कर लेना चाहिए कि भले ही संघ के ये शिक्षा वर्ग रोजगार, व्यावसायिक या कार्यालयीन कार्यकुशलता में वृद्धि की दृष्टि से आयोजित नहीं किये जातें हो किन्तु इन वर्गों से, बालक तथा किशोर वय की आयु से लेकर वृद्धों तक को प्रत्येक क्षेत्र में अधिक निपुण, प्रवीण तथा पारंगत बना देता हैं। इन वर्गों का पाठ्यक्रम, समाज-संस्कृति व राष्ट्रवाद के परिप्रेक्ष्य में, व्यक्ति की शारीरिक व बौद्धिक क्षमता के तीव्र विकास के लक्ष्य से तय होता है। कार्यकर्ता विकास वर्ग से प्रशिक्षित व्यक्ति केवल संगठन हेतु नहीं अपितु अपने-अपने स्वयं के व्यावसायिक, पेशेगत व नौकरी आदि के क्षेत्र में भी अधिक कार्यकुशल हो जाता है। इन वर्गों के भीतर विभिन्न आयुवर्गों के अलग अलग गठ या समूह बना दिये जाते हैं। वस्तुतः ‘समाज में समरस रहते हुए अपने अपने कार्य को आनंदपूर्वक, श्रद्धापूर्वक करना व राष्ट्रनिर्माण की दृष्टि से परिणाम मूलक हो जाना’ यही इन वर्गों का सत्व होता है। वस्तुतः इन वर्गों में सम्मिलित व्यक्ति को खेल-खेल में ही समाज में विलीन हो जाने का अद्भुत प्रशिक्षण मिल जाता है। यही कारण है कि इस देश के ही नहीं अपितु विश्व के सर्वाधिक अनूठे, विशाल, अनुशासित, लक्ष्य समर्पित, तथा राष्ट्रप्रेमी संगठन के रूप में आरएसएस की पहचान होती है। संघ के विषय में यह तथ्य भी बड़ा ही सटीक, सत्य तथा सुस्थापित है कि संघ का कार्य संसाधनों से अधिक भावना तथा विचार आधारित होता है। यदि आपका संघ के कार्यकर्ताओं से मिलना जुलना होता है तो एक शब्द आपको बहुधा ही सुननें को मिल जाएगा, वह शब्द है संघदृष्टि। यह संघदृष्टि बड़ा ही व्यापक अर्थों वाला शब्द है। संघदृष्टि को विकसित करनें का ही कार्य शिक्षा वर्ग में होता है। जीवन की छोटी-छोटी बातों से लेकर विश्व भर के विषयों में व्यक्ति, किस प्रकार समग्र चिंतन के साथ आगे बढ़े इसका प्रशिक्षण इन वर्गों में दिया जाता है। वसुधैव कुटुम्बकम, सर्वे भवन्तु सुखिनः, धर्मो रक्षति रक्षितः, इदं न मम इदं राष्ट्रं जैसे अति व्यापक अर्थों वाले पाठ व्यक्ति के मानस में सहज स्थापित हो जायें यही लक्ष्य होता है। ये वर्ग व्यक्ति में भाव परिवर्तन या भाव विकास में सहयोगी होतें हैं; संभवतः यही व्यक्तित्व विकास का सर्वाधिक सफल मार्ग भी है! आज संघ का संगठन जिस आकार, ऊँचाई व गहराई को नाप रहा है वह उसके  परम्परागत, रूढ़िगत, प्राचीन भारत के संस्कारों, आदर्शों, स्थापनाओं के आधार पर ही संभव हो पाया है।

           राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्‍थापना 27 सितंबर 1925 की विजय दशमी को, नागपुर के मोहिते के बाड़े में डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार की थी। संघ के पांच स्‍वयंसेवको के साथ प्रारंभित, संघ की प्रथम शाखा आज एक लाख शाखाओं को छूने की ओर उद्धृत हो रही है। सौ वर्षीय हो रहे इस संगठन में स्वयंसेवकों की संख्या करोड़ों को छूकर इसे विश्व का सर्वाधिक विशाल स्वयंसेवी बना रहीं हैं। संघ की विचारधारा में राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, हिंदू राष्ट्र, अखंड भारत, भारत माता का परम वैभव, पाक अधिकृत कश्मीर, समान नागरिक संहिता जैसे विषय समाहित हैं। ‘अयोध्या जन्मभूमि’ व ‘कश्मीर से अनुच्छेद 370 के उन्मूलन’ जैसे विषयों को संघ ने अपनी कार्यशक्ति से संपन्न करा दिया है। संघ के संवैचारिक संगठन, आयाम संगठन व प्रकल्प गिने जाएं तो लगभग एक लाख की संख्या हो गई है। ये संगठन देश के विभिन्न, सुदूर, पहुंचविहीन गाँवों तक में अपनी उपलब्धियों से जन-जन को आलोकित कर रहें हैं। इन संगठनों को प्रशिक्षित कार्यकर्ता व नेतृत्व संघ के इन कार्यकर्ता विकास वर्गों से ही मिलता है। 

सम्‍पूर्ण राष्‍ट्र में संघ के विभिन्‍न अनुषांगिक संगठनो जैसे राष्ट्रीय सेविका समिति, विश्व हिंदू परिषद, भारतीय जनता पार्टी, बजरंग दल, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्रीय सिख संगत, भारतीय मजदूर संघ, हिंदू स्वयंसेवक संघ, हिन्दू विद्यार्थी परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, दुर्गा वाहिनी, सेवा भारती, भारतीय किसान संघ, बालगोकुलम, विद्या भारती, भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम आदि संगठन कार्यरत है जो करीब 1 लाख प्रकल्‍पो को चला रहे है। संघ के कार्यकर्ता विकास वर्गों में आने वाले कार्यकर्ता लगभग लगभग इन्हीं संगठनों के होते हैं। 

               संघ अपने स्वयंसेवकों के व्यक्तित्व परिष्करण हेतु कुछ दिनों के दीपावली वर्ग, शीत शिविर, शारीरिक वर्गों जैसे कार्यकर्ता विकास वर्ग का आयोजन भी करता है। इसके आगे जे वर्गों के क्रम व आकार को हम निम्नानुसार समझ सकते हैं। 

संघ शिक्षा वर्ग जो अब तक प्राथमिक वर्ग, प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष, तृतीय वर्ष के रूप में होते थे अब उनमें कुछ परिवर्तन कर दिया गया है। वर्ष 2024 से अब प्राथमिक वर्ग सात दिवसीय, इसके पश्चात पंद्रह दिवसीय कार्यकर्ता विकास वर्ग एक एवं फिर कार्यकर्ता विकास वर्ग दो होगा। वर्ग एक, देश में विभिन्न स्थानों पर आवश्यकतानुसार संख्या में व वर्ग दो केवल नागपुर में पच्चीस दिवसीय होगा। 

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