सतपाल मलिक: कश्मीर के अच्छे दिन

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
ऐसा लगता है कि जम्मू-कश्मीर के अच्छे दिन आनेवाले हैं। उधर इमरान खान का प्रधानमंत्री बनना और इधर बिहार के राज्यपाल सतपाल मलिक का जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनना काफी आशा जगाता है। मुझे विश्वास है कि जनरल मुशर्रफ के साथ अटलजी और मनमोहनसिंहजी ने जम्मू कश्मीर को लेकर जो समझ बनाई थी, वह फिर आगे बढ़ सकती है। पिछले 50 वर्षों में कश्मीर के राज्यपाल या तो कुछ नौकरशाह रहे हैं या फौज के सेवा-निवृत्त अफसर। यह पहला मौका है कि सदरे-रियासत डाॅ. कर्णसिंह के बाद मलिक-जैसे सक्रिय राजनेता के हाथ में कश्मीर की बागडोर सौंपी गई है। मलिक की घोषणा ने मेरे दिल में चिंता और उल्लास, दोनों को एक साथ पैदा किया। चिंता इसलिए कि एक तो इस समय कश्मीर में कोई चुनी हुई सरकार नहीं है। दूसरा, वहां जबर्दस्त हिंसा और प्रदर्शनों का दौर अभी चलता रहा है। तीसरा, इसे रोकने का संकेत अभी तक पाकिस्तानी फौज ने नहीं दिया है। सतपाल जैसे खुले दिल के नेता रहे हैं, उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा की भी चिंता हो रही है। पिछले 50-55 साल से उन्हें मैं करीब से जानता रहा हूं। वे मेरे विवि के लोकप्रिय छात्र नेता रहे हैं। वे मूलतः समाजवादी हैं, बल्कि यह कहूं तो सही होगा कि वे आर्यसमाजवादी हैं। वे विधायक, सांसद और केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। उन्हें कोई संकीर्ण और सांप्रदायिक नहीं कह सकता। मुझे उल्लास इस बात का है कि सतपालजी हुर्रियत के नेताओं, कश्मीर की जनता और यहां तक कि आतंकवादी तत्वों से भी सीधे बात करने की क्षमता रखते हैं। वे कश्मीर में ऐसा माहौल तैयार कर सकते हैं कि मोदी और इमरान की राह आसान हो जाए। इमरान भी कश्मीर को बातचीत के जरिए सुलझाने के लिए बेताब दिखाई पड़ रहे हैं। यह सतपाल मलिक के लिए उनके राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा चुनौतीभरा अवसर है। कोई आश्चर्य नहीं कि वे कश्मीरी नेताओं से बात करके वहां फिर से सरकार बनवा दें। यदि 2019 के आम चुनाव के पहले सतपाल मलिक की कोई पहल सफल होती दिखी तो मोदी को बड़ी मदद मिल सकती है।

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