विविधा

स्वानुभव : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

जीवन का मतलब केवल संग्रह, प्रतिष्ठा या भौतिक प्रगति ही नहीं है।

हमें सब कुछ मिल जाये, लेकिन जब तक हमारे पास शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक शान्ति रूपी अमूल्य दौलत नहीं है, तक तक मानव जीवन का कोई औचित्य नहीं है।

सच्चे स्वास्थ्य तथा शान्ति के लिये मानसिक तथा शारीरिक तनावों से मुक्ति जरूरी, बल्कि अपरिहार्य है।

तनावों से मुक्ति तब ही सम्भव है, जबकि हम सृजनशील, सकारात्मक और ध्यान के प्रकृतिदत्त मार्ग पर चलना अपना स्वभाव बना लें।

ध्यान के सागर में गौता लगाने वाला सकारात्मक व्यक्ति आत्मदृष्टा, आत्मपरीक्षक, स्वानुभवी एवं स्वाध्यायी बन जाता है और तनाव तथा हिंसा को जन्म देने वाले घृणा, द्वेष, प्रतिस्पर्धा, कुण्ठा आदि नकारात्मक तत्वों को निष्क्रिय करके स्वयं तो शान्ति के सागर में गौता लगाता ही है, साथ ही साथ, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपने सम्पर्क में आने वालों के जीवन को भी सकारात्मक दिशा दिखाने का माध्यम बन जाता है।