श्री गुरु गोविंद सिंह जी के चार साहबज़ादों को
‘शब्दांजलि’
दसवें गुरु के नूर -ए -नज़र, चार नौनिहाल।
तारीख़-ए-हिन्द में नहीं उनकी कोई मिसाल।।
सानी नहीं था कोई अजीत और जुझार का।
ज़ोरावर -ो – फ़तेह की थी क्या शान,क्या जलाल।।
टूटी जो तेग़, जंग लड़ी तब मियान से।
फिर भी क़रीब आये जो दुश्मन,है क्या मजाल।।
क़ुर्बानी-ए-अज़ीम से फैला था जिसका नूर।
है आज भी जहान में रौशन वही मशाल।।
दीवार-ए ज़ुल्म में चुना जिन ज़ालिमों ने कल।
कोई भी जानता नहीं उनकी नसल का हाल।।
लेकिन शहीद की है शहादत का मोजिज़ा ।
दुनिया में है बुलंद सदा ‘सत श्री अकाल’।।
आते हैं दर्द -ो- फ़िक्र-ो- मुसीबत ज़दा यहां।
जाते हैं बा मुराद और हो कर सभी निहाल।।
‘तनवीर’ तेग़,देग़ फ़तेह की हैं बरकतें।
इस दर पे जो झुके नहीं,किस सर की है मजाल।।