केंद्र की यू.पी.ए. नीत गठबंधन सरकार के दिन काफी दिनों से अच्छे नहीं चल रहे और निकट भविष्य में उनमें सुधार के संकेत भी कम ही नज़र आते हैं| सरकार को जितना पसीना विपक्षी चुनौतियों से निपटने में आ रहा है, उससे दुगनी चुनौतियां उसे भीतर से मिल रही हैं| पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और सरकार की अहम सहयोगी ममता; सरकार खासकर कांग्रेस से कुछ ज्यादा ही खफा नज़र आ रही हैं| तभी इस बार उन्होंने तल्ख़ लहजे में कांग्रेस से दो टूक कह दिया है कि यदि वह चाहे तो राज्य में तृणमूल सरकार से समर्थन वापस ले सकती है| हाल के दिनों में ममता की ऐसी तल्खी पहली बार देखने को मिली है| हालांकि ममता और कांग्रेस के बीच पहले भी कुछ अहम मुद्दों पर मतभेद उभरे थे, मसलन पेट्रोल मूल्यविद्धि, कोयले के बड़े दाम तथा लोकपाल पर दोनों ही “अपनी ढपली, अपना राग” अलाप रहे थे| उस वक़्त ऐसा प्रतीत हुआ था कि ममता शायद सरकार को ब्लैकमेल कर स्वयं के हित साध रही हैं मगर बदलते राजनीतिक परिदृश्य में ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार कि तरफ से भी पश्चिम बंगाल में ममता सरकार को अस्थिर करने के प्रयास किए जा रहे हैं| पश्चिम बंगाल के ताज़ा घटनाक्रमों को देखें तो यह बात सच जान पड़ती है| कांग्रेस पुनः माकपा से गलबहियां बढ़ा रही है| ऐसे में ज़ाहिर है ममता की त्योरियां तो चढ़ना ही थीं| आखिर सरकार चलाने के लिए कांग्रेस को ममता के समर्थन की अधिक आवश्यकता है न कि ममता को कांग्रेस के हाथ की|
बीते वर्ष सरकार की जिस तरह से सार्वजनिक फजीहत हुई उससे भी ममता को अपने नफे-नुकसान का भान हो गया है| पश्चिम बंगाल की जनता ने वामपंथियों की ३५ वर्ष पुरानी सत्ता को उखाड़कर जिस उम्मीद से ममता को सत्ता सौपीं; उसमें सहयोगी कांग्रेस पलीता लगाने में जुट गई है| राज्य सरकार के फैसलों में असहमति जताना, माकपा से नजदीकियां, ममता की कार्यशैली से सामंजस्य न बैठा पाना; जैसे कई मुद्दे हैं जिन पर दोनों दलों के बीच गहरे मतभेद हैं| ममता यह अच्छी तरह जानती हैं कि यदि इस बार उन्होंने सत्ता का फायदा नहीं उठाया तो वामदल वापस राज्य की राजनीति पर हावी हो जायेंगे और तब ममता के लिए राजनीति में करने को शायद कुछ नहीं बचेगा| इसलिए ममता राज्य में कांग्रेस से छुटकारा पाना चाहती हैं| सबसे हास्यास्पद बात तो यह है कि केंद्र सरकार भी ममता को आइना दिखाना चाहती है| रालोद प्रमुख अजित सिंह से गठबंधन का फैसला भले ही उत्तरप्रदेश चुनाव को ध्यान में रख लिया गया हो मगर इससे केंद्र सरकार को संख्या बल के लिहाज़ से ताकत मिली है| गौरतलब है कि रालोद के इस वक़्त पांच सांसद केंद्र सरकार में शामिल हो गए हैं|
ऐसी भी खबरें हैं कि कांग्रेस सरकार को बाहर से समर्थन दे रही सपा और बसपा से भी नजदीकियां बढ़ा रही है| हालांकि उत्तरप्रदेश चुनाव को देखते हुए फिलवक्त तो ऐसे किसी भी गठबंधन पर आशंका के बादल छाये हुए हैं मगर “राजनीति में सब चलता है” की तर्ज पर किसी भी संभावना को नकारा नहीं जा सकता| यदि केंद्र सरकार ममता से दामन छुड़ा भी लेती है और उसे सपा या बसपा में से कोई भी एक दल अपना पूर्ण समर्थन दे देता है तो सरकार की वर्तमान स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला| वैसे भी ममता को साथ लेकर चलने में सरकार की सबसे बड़ी समस्या यह है कि ममता सरकार के हर सियासी पैंतरे को भांप उसमें पलीता लगा देती हैं| इससे जनता के बीच सरकार की बेबसी और सियासी मजबूरियाँ उजागर होती हैं|
ममता और कांग्रेस; दोनों की अपनी सियासी मजबूरियाँ हैं और दोंनो ने एक दूसरे का जमकर लाभ उठाया है मगर अब जब दोनों के हित आपस में टकराने लगे हैं तो दोनों ही एक-दूसरे से छुटकारा पाने को छटपटा रहे हैं| वैसे इसमें दोष ममता और कांग्रेस का भी नहीं है| राजनीति का चरित्र ही ऐसा है; जब तक आपसे अच्छे की उम्मीद, तब तक आप सगे और जहां उम्मीदें पूरी हुई तो आप कौन? गठबंधन राजनीति के इस दौर में आगे देखिये कितने गुल खिलते हैं? फिलहाल तो ममता का पलड़ा भारी जान पड़ता है|
vaise इस विवाद में ग़लती कांग्रेस की ज्य्ज्दा है लेकिन उसकी बात सपा और कोम्मुनिस्तों से हो चुकी है चुनाव के बाद ममता को बहार का रास्ता दिखा दिया जायेगा क्योंकि कांग्रेस को ममानी करने की पहले से बुरी आदत रही है.
नुकसान किसी का हो ना हो देश का भला ही होगा. यह बड़ी बात है.