लघु कथा-स्टाफ

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जग मोहन ठाकन

अम्बेडकर चौक । राजस्व विभाग का नाका। हर समय दो प्रहरी तैनात ।  पद के अनुरूप भारी तोंद वाला हवलदार कुर्सी पर विराजमान । छरहरे बदन वाले सिपाही द्वारा हर आने जाने वाले वाहन को चैकिंग के बहाने रोक कर रिजर्व बैंक द्वारा छापी गर्इ मुद्रा की वसूली कर आगे बढ़ने का संकेत । सभी भारतीय वाहन चालक इस नाका संस्कृति से भली भांति परिचित ।कोर्इ किन्तु परन्तु नहीं । अनेकता में एकता का परिचायक । ठीक इसके सामने पीपल की शीतल छांव में लेटे रहते हैं दो देसी कुत्ते। एक हवलदार की श्रेणी का झबरू कुत्ता तथा दूसरा शिकारी कुत्ते सा चपल व तेज तर्रार । जैसे ही कोर्इ वाहन नाके की प्रविषिट ” से आगे निकलता है , शुरू होती है कुत्ता दौड़ । झबरू कुत्ते के कान उठते ही वाहन के पीछे दौड़ पड़ता है रेसर कुत्ता । बस हर बार यही प्रकि्रया । आज तक कोर्इ नहीं समझ पाया है, इस रहस्यमयी रेस को । नाके से गुजरी एक लाल बत्ती गाड़ी । सिपाही ने लगाया सलूट ,हवलदार भी हड़बड़ाहट में लड़खड़ाया । झबरू कुत्ते ने नहीं उठाये कान । पर यहीं चूक हो गर्इ रेसर से ।

वह बिना झबरू के इशारे के ही दौड़ पड़ा लाल बत्ती गाड़ी के पीछे । झबरू घुर्राया । दौड़ पड़ा रेसर के पीछे , उससे भी तेज । और झपट पड़ा रेसर पर । पैने नुकीले दांतों से नोंच डाला रेसर को । रेसर को लगा, हुर्इ है कोर्इ भारी भूल । जरूर कोर्इ प्रोटोकोल की चूक है। रेसर ने पंूछ सीधी कर पैर आसमान की तरफ कर दिये । झबरू के पैरों में लेट चूं चूं कर पूछी अपनी गलती । झबरू ने फिर झंझोड़ा रेसर को । साले स्टाफ को नहीं पहचानता ।

2 COMMENTS

  1. बहुत सुन्दर, आखिर इंसानों के साथ रहकर बिरादरी का ख्याल न रखना सबसे बड़ी गैरजिम्मेदाराना हरकत है.बहुत ही अच्छा कटाक्ष किया आपने,बधाई

  2. बहुत चुटीली व्यंग्य रचना के लिए बधाई स्वीकार करें | गागर में सागर भर दिया अपने| मज़ा आ गया |

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