गुजरात को बदनाम करने वाली मीडिया बरेली पर मौन

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उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में विगत 16 दिनों से एक खास संप्रदाय को निशाना बनाया जा रहा है। ऐसे प्रशासन के द्वारा वहां कर्फ्यू लगा दी गयी है, लेकिन सारेआम हिंसा जारी है। हिंसाग्रस्त इलाकों से जो खबरें आ रही है उसमें अभी तक 24 लडकियों के गायब होने की सूचना है। असंपुष्ट जानकारी के अनुसार 50 से अधिक लोग लापता है। कर्फ्यू के बाद भी लोगों के मकान और दुकान जलाये जा रहे हैं, लेकिन गुजरात दंगे पर दुनिया भर में गलाफार प्रचार कनने वाली संवेदनशील मीडिया आज न जाने कहां संवेदनाओं के शीतल छाव में सुस्ता रही। मीडिया आईपीएल के जश्न में चीयर गर्ल्स को निहारने और उसके अर्धनंग्न तराशी काया को दिखाने में व्यस्त है लेकिन बरेली पर न तो किसी बडे चैनल की खोजी रपट आ रही है और न ही कोई अखबर इस मामले को राष्ट्रीय सुर्खियां बना रहा है। भाई मुकुल सिंहा, तिस्ता जी, परजन्या बनाने वाले राहुल धौलकिया आज रहस्यमय तरीके से गायब हो गये हैं। इस देश में मानवाधिकारवादी नेता केवल कुछ संप्रदाय विषेश या माओवादी आतंकवादियों के लिए ही हैं क्या? महाराष्ट्र में जाकर पूछो किसी को पता नहीं है कि बरेली में क्या हुआ। गुजरात की जनता से पूछो तो उसे भी पता नहीं है कि बरेली में क्या हुआ। यहां तक कि हिन्दी भषी प्रांतों में भी इस बात की जानकारी नहीं है कि बरेली को आखिर क्यों जलाया जा रहा है। याद रहे बरेली को एक खास संप्रदाय के लोगों ने प्रयोग भूमि बनाया है आने वाले समय में बरेली की घटनएं अन्य जगह भी दुहरायी जाएगी। बरेली का दंगा अभी तक के हुए तमाम दंगों से भिन्न है। दंगे में जिस तंत्र का उपयोग किया गया है वह अभिनव है। बावजूद इसके बरेली के दंगे पर देश मौन है।

सन् 2002 में गोधरा रेलवे स्टेशन के पास कुछ सरारती तत्वों ने साबरमती एक्सप्रेश के दो डब्बे में आग लगा दी। दोनों ही डब्बों के लोग मारे गये। उसके बाद गुजरात में ही नहीं पुरे देश में इसकी प्रतिक्रिया हुई। गुजरात में प्रतिक्रिया थोडी ज्यादा हुई। दंगा भडक गया। हिन्दु और मुस्लमान दोनों संप्रदाय के लोगा मारे गये। उस दंगे को झूठ और फरेब की बुनियाद पर आज भी जिन्दा रखा गया है। जिस महिला को आधार बनाकर जिसे बदनाम किया जाता रहा है विगत दिनों न्यायालय में सुनवाई के दौरान उस महिला के अन्त्यपरीक्षण आख्या पर डॉ0 जे0 एस0 कनोरिया की गवाही गुजारी गयी। डॉ0 कनोरिया ने माननीय न्यायालय के समक्ष कहा कि उक्त महिला की मृत्यु डर के कारण सांस रूक जाने से हुई थी। उसकी मृत्यु के बाद उसका ऑपरेशन किया गया तथा उसके गर्भस्थ शिशु को निकाला गया। अब गुजरात दंगे में 300 महिलाओं के खिलाफ बलात्कार की बात करने वाले लोग इस विषय पर प्रतिक्रिया देने के लिए खोजने से भी नहीं मिल रहे हैं। सन 2002 के दंगे के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी को बदनाम किया जा रहा है। जबकि दंगे के बाद तत्कालीन गृहमंत्री हरेन पाण्या को दंगा समर्थक आतंकियों ने मार डाला। उस दंगे का दंश आज भी गुजरात का हिन्दु समाज झेल रहा है। कभी सूरत में लडकियों के साथ टारगेटेड बलात्कार किया जाता है तो कभी राजकोट में हिन्दु मंदिरों पर हमला किया जाता है। केवल अहमदाबाद में ही अभी तक 10 हिन्दु नेताओं पर हमला हो चुका है। विश्व हिन्दु परिषद के अंतरराष्ट्रीय महासचिव डॉ0 प्रवीण भाई तोगडिया ने गुजरात सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा है कि जब से प्रदेश का पुलिस महानिदेशक मुस्लमान को बनाया गया है तब से प्रदेश में इस्लामी ध्वंशात्मक गतिविधियां बढ गयी है। हालांकि कानून के दायरे में सब समान है अगर गुजरात के मुख्यमंत्री सन 2002 के दंगे के दोषी हैं तो उनके खिलाफ कार्रवायी होनी चाहिए लेकिन जो तत्व गुजरात में मुस्लिम चरमपंथ को हवा दे रहा है और जिसके इशारों पर गुजरात का मुस्लिम समाज हिन्दुओं के खिलाफ टारगेटेड हिंसा में जुटा है उसके खिलाफ आखिर इस देश की मीडिया, इस देश के राजनेता और कथित समाजसेवी, मानावाधिकारवादी क्यों चुप हैं?

गुजरात की कथित अस्पृस्यता पर आख्या छापने वाली विदेशी संस्थानों से पैसा लने वाले पंचविताराई समाजसेवी उत्तर प्रदेश को अपनी प्रयोग भूमि क्यों नहीं बना रहे हैं? जरा वहां की भी सुधि ली जानी चाहिए। किस प्रकार उत्तर प्रदेश के लोग अभिजात्य अस्पृस्य, इस्लामी गठजोड का सिकार हो रहे हैं। विगत दिनों विदेशी पैसों से संपोषित कुछ संस्थाओं के समूह ने गुजरात पर एक आख्या प्रस्तुत की। उस आख्या को गुजरात विद्यापीठ के सभागार में बाकायदा प्रस्तुत किया गया जिसमें यह कहा गया कि गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में भयानक अस्पृश्‍यता है। उसके कुछ ही दिनों बाद दुनिया को हथियार मुक्त कराने का संक्लप लेकर काम करने वाली संस्था ने गुजरात विद्यापीठ में सात दिनों का एक सेमिनार आयोजित किया। यह सेमिनार दुनिया में हो रहे हथियारों की होड को समाप्त करने के लिए आयोजित किया गया था, लेकिन उस सेमिनार में गुजरात के गोधरा दंगों पर भी एक आख्या प्रस्तुत की गयी। इसके हेतु पर मामांशा होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश के बरेली में आज 16 दिनों से पुलिस के संरक्षण में एक संप्रदाय विषश के लोग हुडदंग मचा रहे हैं उसपर किसी की नजर नहीं गयी है। बरेली का दंगा प्रायोजित है। इसको साबित करने के लिए सिर्फ इतना कहना काफी होगा कि जब पूज्य मुहम्मद साहब का जन्म दिवस 27 फरवरी को था तो 02 मार्च को जुलूस निकाने की क्या जरूरत थी। जानकारी में रहे कि संपूर्ण उत्तर भारत में दो फरवरी को होली मनाई जा रही थी? दुसरा अगर जुलूस निकाल भी लिया गया तो प्रशासन के द्वारा निश्चित किये गये रास्ते से जुलूस क्यों नहीं ले जाया गया? याद रहे दंगा भडका नहीं, भडकाया गया है। जब जुलूस लेजाया जा रहा था तो कुछ असामाजिक तत्व के लोगों ने सडक के किनारे वाले घरों पर पत्थडबाजी करी। आपति दर्ज कराई गयी तो सुनिश्चित कर दुकानों और घरों में आग लगा दिया गया। खबर है कि 24 लडकियां गायब है। यही नहीं 50 से अधिक लोग लापता है। जो लडकियां घर लौट कर आ रही है वह अपना सब कुछ गवा चुकी है। अब गुजरात पर चिल्लाने वाले लोग चुप क्यों है? गोधरा पर लगातार अस्तंभ लिखने वाले लोग बरेली पर मौन क्यों हैं? गुजरात के दंगे पर लिखा जाना चाहिए। मोदी गुनाहगार हैं तो उन्हें सजा जरूर मिलनी चाहिए लेकिन जो इमाम डंके के चोट पर कहता है कि जो लोग पैगम्बर मुहम्मल के जुलूस को रोकने का प्रयास किया उसके घरों में आग लगा दो, जिसने यहा कहा कि जो लोग हमारे पैगम्बर का अपमान किया उनकी जवान बेटियों को उठा लो, क्या उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए? उस इमाम को दिखाने के लिए पकडा तो गया लेकिन फिर से फसाद करने के लिए छोड भी दिया गया। बताओ साहब यह कहां का न्याय है। बेचारे बरूण ने तो केवल यही कहा था कि जो लोग हमारी बहनों पर हाथ उठाएंगे उनका हाथ काट लिया जाएगा, लेकिन इमाम साहब ने तो हद कर दी उन्होंने तो बेटी तक को उठाने की बात की। इसके बावजूद अगर उस इमाम पर कार्रवाई नहीं हो रही है तो उस प्रसाशन को कठघरे में खडा नहीं किया जाना चाहिए क्या? कश्मीर से हिन्दुओं को खदेर दिया गया। आज तक कोई आयोग नहीं बनाया गया। सन् 1984 के सिख विरोधी दंगे के बाद आयोग पर आयोग बनाए गये लेकिन किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई पर गुजरात दंगे पर दुनिया भर में शोर मचाया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका तक में इस पर चर्चा हुई और अपने देश के कथित धर्मनिर्पेक्ष लोग लगातार सेमिनार सेंपोजियम करते रहे और कहते रहे कि गुजराम का मुख्यमंत्री अल्पिसंख्यकखोर है।

आंकडे बताते हैकि गुजरात का मुस्लिम समाज अन्य प्रांतों की तुलना में समृध्द और सुरक्षित है। गुजरात में हिन्दुओं से ज्यादा मुस्लिम साक्षरता है। राष्ट्रीय साक्षरता का औसत 64. 8 है और मुस्लमानों की साक्षरता 59.1 है जबकि गुजरात में हिन्दुओं की साक्षरता 68.3 है लेकिन मुस्लमानों की साक्षरता 74.5 है। गुजरात के मुस्लमान केवल साक्षरता में ही आगे नहीं है अपितु आर्थिक दृष्टि से भी उनकी स्थिति अन्य प्रांतों की तुलना में अच्छी है। गुजरात के कर्मचारियों की कुल संख्या 754533 है जिसमें से 5.4 प्रतिशत मुस्लमान हैं। गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में बसे मुस्लमानों की प्रति महीने आमदनी 668 रूपये है जबकि हिन्दुओं की 644 रूपये मात्र है। गुजरात के बैंक खाते में मुस्लमानों की हिस्सेदारी 8.9 प्रतिशत की है तथा एवरेज जमा करम 32932 है। इन बिन्दुओं को आज तक किसी बडे मीडिया ने उठाने का प्रयास नहीं किया है। राष्ट्रीय मीडिया लगातार यही छाप रहीे है कि मोदी तो अल्पसंख्यकखोर है उसके राज्य में मुस्लमानो की दुर्दशा हो रही है। गुजरात के मुस्लमान दोयम दर्जे की नागरिकता जी रहे हैं लेकिन गुजरात के मुस्लमानों का यह भी एक चित्र है। ऐसी स्थिति में देश के बडे मीडिया को कैसे सार्थक कह जा सकता है। बरेली जल रहा है लेकिन समाचार वाहिनियों पर आपीएल खेल दिखाए जा रहे हैं। बरेली जल रहा है लेकिन अखबार वाले यह छाप रहे हैं कि वहां सब कुछ सामान्य है। बरेली में एक खास संप्रदाय के लोगों की बहु बेटियों को उठाकर ले जाया जा रहा है और प्रभावी मीडिया एवं कथित धर्मनिर्पेक्ष राजनेता कह रहे हैं कि वहां सब कुछ ठीक है। एक संप्रदाय के लोगों को खुली छूट दी गयी है लेकिन दूसरे संप्रदाय के लोग जब वहां की स्थिति का जायजा लेने जाते हैं तो प्रशासन उन्हें रोक देती है। आखिर ऐसा क्यों? यह सवाल आज भी कायम है कि केवल इस देश में भूमिपूत्रों को ही चिंहित कर मारा जाएगा या और जब वह भूमि पुत्र उसके लिए आवाज उठाएगा तो उसको बदनाम करने के लिए दुनिया भर की मीडिया समाचार प्रकाशित करेगी। यह तो सरासर अन्याय है।

हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम

वे कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती।

लेकिन चित्र बदलनी चाहिए

और हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

-गौतम चौधरी

4 COMMENTS

  1. मोहनदास करम चन्द्र गांधी:-मेरा अपना अनुभव है कि मुसलमान कूर और हिन्दू कायर होते हैं/
    बिलकुल ही सही कहा है उन्होंने – जबतक हिन्दू एकमत होकर इसका विरोध नहीं करेगा तबतक यस सब कुछ चलता रहेगा / वास्तविकता तो यह है की इस्लाम कोई धर्म नहीं – बल्कि एक मानसिक रूप से बीमार ( अरबी राष्ट्रवादी) का एक समूह था /
    कोई पैगम्बर कैसे ये कह सकता है की गैर इस्लाम काफिर है और उसे जलाकर मर देना चाहिए – कुरान: 9 अध्याय, छंद 5: “तब जब पवित्र महीने बीत चुके हैं, गैर इस्लाम (अन्य धर्मावलम्बी, यानि काफिर) तुम्हे जहाँ भी मिले उन्हें मिलके मार, और उन्हें पकड़ और उन्हें घेर, और उन्हें हर घात की तैयारी के लिए, लेकिन अगर वे पश्चाताप और इस्लामी जीवन शैली का पालन करे, तो उनके मुक्त रास्ता छोड़ दें. / सच तो यह है की मुहम्मद साहेब एक धर्मान्ध व्यक्ति थे, उन्होंने हजारो-लाखो लोगो को इस्लाम कबूल करवाने के लिए मौत के घाट उतरवा दिया / महम्मद साहेब एक मानसिक रूप से बिमाड व्यक्ति था / वो एक लूटेरा, असभ्य और बर्बर था / **जिस धर्म में ऐसा सन्देश हो वो कहाँ सुधर सकता है – ये सब हिन्दू समुदाय को सोचना होगा – जहर को जहर से ही ख़त्म किया जा सकता है/ **

  2. ऐसे लिखने से क्या होगा…सभी संगठनो को तुरंत एकजुट होके, बरेली के दंगों का विरोध करना चाहिए…आर एस एस और बी जे पी को इस मुद्दे को लोगों के सामने लाना चाहिए…

  3. गौतम जी हमारे देश के सेचुलर्स को सिर्फ मुस्लमान और उनका ही दर्द दिखता है ! क्योंकि वो जानते है की हिन्दू को कोई कुछ भी कहे वो सब बर्दाश्त कर लेगा लेकिन मुस्लमान तुरंत अल्लाहो अकबर करते हुए तलवार निकल लेते है ! और अब तो बड़े -२ धमाके करते है !
    अपने लेख में आपने बरेली दंगो को की भिन्नता को जगह दी है इसका अर्थ की आज जो ख़राब हालत है उसे आप हम सब की तरह आप भी भांप गए है ! आने वाले कुछ वर्षों में जो पुरे भारत में होने वाला है बरेली उसका एकमात्र नजारा भर है ! मीडिया से अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए जब तक हिन्दू खुद उठकर कुछ नहीं करेगा !

  4. बहुत सटीक चित्रण. पहली बार किसी पत्रकार ने सही रिपोर्ट प्रस्तुत की वरना शेष नारायण सिंह ने तो बिल्कुल उलटा चित्रण कर दिया था. हिन्दू तो पिटी हुई कौम है, हर कोई चार लात मार कर चल देता है. और यह इसलिये हो रहा है क्योंकि हमारे बीच में न जाने कितने जयचंद और मीर जाफर पैदा हो गये हैं.

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