आसान है गोपनीय दस्तावेजों का चुराना ??

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filesप्रमोद भार्गव

चोरी पकड़ने के तमाम तकनीकी व प्रौद्योगिकी प्रंबंधों के बावजूद सरकारी गोपनीय दस्तावेज कितनी आसानी से चुराकर बेचे जा सकते हैं,इसका ताजा उदाहरण पेट्रोलियम व ऊर्जा मंत्रालय से हुआ चोरी का पर्दाफाश है। इस कथित जासूसी का दायरा यदि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी अपने घेरे में ले लेता है तो यह और भी गंभीर मसला हो जाएगा। यह मामला इसलिए गंभीर है,क्योंकि चुराए गए दस्तावेजों को शासकीय गोपनीय अधिनियम के तहत सुरक्षा प्राप्त थी। बावजूद उन अभिलेखों को भी आसानी से चुरा लिया गया जो वित्त्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा आगामी बजट भाषण में पढ़े जाने थे। साफ है, ये खेल औद्योगिक घराने नौकरशाहों के साथ मिलकर भावी नीतियों को अपने हित में प्रभावित करने की दृष्टि से तो खेल ही रहे थे,श्रेष्ठ ऊर्जा भण्डार स्थलों को नीलामी के जरिए हथियाने के लिए भी खेल रहे थे।

कमोवेश यही घिनौना खेल २जी स्पैक्ट्रम घोटाले के समय भी उजागर हुआ था, जब उद्योगपतियों और नौकरशाहों के गठजोड़ के साथ इसमें पत्रकार और पैरोकार भी शामिल थे। इस कांड में भी पत्रकार के रुप में शांतनु सैकिया और पैरोकार के रुप में प्रयास जैन कठघरे में हैं। २जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़े नीरा राडिया टेपकांड की घ्वानियों की गूंज अभी भी कानों से टकराती रहती है। इस ताजा जासूसी कांड का अभी तक एक सुखद पहलू यह रहा है कि इसमें किसी नेता या मंत्री का नाम नहीं आया है जबकि स्पेक्ट्रम घोटाले में संचार मंत्री ए.राजा और सांसद कनिमोझी के नाम शामिल थे।

पूरी दुनिया में इस समय ऊर्जा के स्रोतों को कब्जाने की होड़ चल रही है। इस मामले में भी चोरों ने जो सूचनाएं हासिल की हैं,वे सब तेल,गैस और कोयला भंडारों से जुड़ी हैं। दिल्ली पुलिस ने जिन औद्योगिक कंपनियों के आला अधिकारियों को गिरफ्तार किया है,वे सभी कंपनियां पेट्रोल,गैस और कोयला जैसे प्राकृतिक संपादओं के ठेके के कारोबार से जुड़ी हैं। ऊर्जा के अक्षय स्रोतों के भंडारों की जासूसी के प्रति ये कंपनियां इतनी चौकन्नी थीं कि कंपनियों ने बजट भाषण के उन दस्तावेजों को भी हासिल कर लिया था,जिन्हे आम बजट पेश किए जाते वक्त वित्त्त मंत्री पढ़कर देश के सामने लाते। ये कागज नेशनल गैस ग्रिड से संबंधित हैं। यह संस्था भू-गर्भ शास्त्रियों के जरिए देश में उपलब्ध गैस भंडारों की खोज करती है और फिर उन्हें निकालने की योजना बनाती है। दिल्ली पुलिस को जिन अभिलेखों की छायाप्रतियां प्राप्त हुई हैं,वे सब है पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल के गोपनीय दस्तावेज हैं। इन पर सेल के डीजी अत्रैयी दास के दस्तखत हैं। कुछ दस्तावेज एक्सप्लोरेषन विभाग से जुड़े हैं,जिन पर सचिव नलिन कुमार के हस्ताक्षर हैं। यही नहीं पुलिस ने पकड़े गए आरोपियों के पास से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा का खत भी बरामद किया है। जाहिर है,सेंघमारी का दायरा व्यापक है और गोपनीयता को सुरक्षित रखने के सभी उपाय मंत्रालय की दहलीज पर बौने साबित हुए हैं। जबकि पेट्रोलियम मंत्री के कार्यालय में तो पुख्ता सुरक्षा प्रंबंधों के चलते पुर्व सैनिकों को सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था। चप्पे-चप्पे पर सीसीटीवी कैमरे और मैटल डिटेक्टर लगे थे। बावजूद आधी रात मेंं डुप्लीकेट चाबियों से दरवाजों और अलमारियों के ताले खोलकर दस्तावेजों की फोटोप्रतियां कर लेने का सिलसिला निरंतर रहा। इससे शक की सुई सुरक्षा की ठेका व्यवस्था तक भी पहुंच सकती है ? क्योंकि सुरक्षा ठेकेदार चंद सुरक्षाकर्मियों को एक स्थल पर लंबे समय तक रखने को स्वतंत्र होते हैं, जबकि सरकारी सुरक्षा में कर्मचारियों की ड्यूटी बदलना लाजिमी होता है।

इस काथित चोरी बनाम जासूसी कांड से पर्दा उठने और औद्योगिक अधिकारियों की गिरफ्तारी होने के बावजूद उद्योगपतियों को कोई हैरानी नहीं है। इसके उलट, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की तर्ज पर वे कह रहें हैं कि बड़े औद्योगिक घराने ऐसे विशेष समूह रखते हैं,जो विभिन्न माध्यमों से गोपनीय सूचनाओं को हासिल करते हैं। ये सूचनाएं प्राकृतिक संपदा की नीलामी और परियोजनाओं के ठेकों से संबंधित होती हैं। या फिर इनका संबंध सरकार की उन भावी नीतियों और निर्णयों से होता है,जिनसे उद्योग जगत के हित जुड़े होते हैं। नीतियों की पहले जानकारी प्राप्त करने के बाद आवारा पूंजी के खिलाड़ी कारोबारी इस पूंजी को शेयर बाजार में लगाकार रातों-रात करोडो-अरबों के बारे-न्यारे कर लेते हैं। अपने हित साधने के लिए इस तरह का छल-छद्म करते तो चंद उद्योगपति हैं,लेकिन बदनामी पूरा उद्योग जगत झेलता है। इसलिए इस धूर्तकर्म को न तो जासूसी कहा जा सकता है और न ही इस चोरकर्म को स्वच्छ व निष्पक्ष व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के नैतिक मानदंडों का हिस्सा माना जा सकता है। यह सीधे-सीधे गोपनीय कानून से खिलवाड़ है। इसलिए पुलिस ने आरोपियों पर धारा ४११ के तहत बेईमानी से चुराई संपत्त्ति हासिल करने का प्रकरण कायम करके विधि-सम्मत तार्किक पहल की है।

देशी-विदेशी घरानों के ऐसे षड्यंत्र देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्म-निर्भर नहीं होने दे रहे है। गोया,तेल और गैस आयात करने को हम मजबूर बने हुए हैं। वैसे भारत को २०३० तक ऊर्जा के मामले में आत्म-निर्भर होने की उम्मीद है। हालांकि इस लक्ष्य को इसलिए पूरा करना मुश्किल है,क्योंकि २०३५ तक भारत में ऊर्जा पद्वार्थों की जरुरत आज की तुलना में दोगुनी हो जाएगी। ऐसे में पेट्रोलियम मंत्रालय के भीतर ही गोपनीय दस्तावेजों को चुराकर बेचने का जो भंडाभोड़ हुआ है, उससे साफ होता है कि सरकारी व्यव्स्था में ऐसे कई छेद हैं, जो लक्ष्यों को छलने का काम कर रहे हैं। नौकरशाही और उद्योगपतियों का गठजोड़ राष्ट्र व जनहित से कहीं ज्यादा निजीहित साधने में लगा है। यही वजह है कि सरकारी कर्मचारियों को कंपनियां गोपनीयता भंग करने के लिए वर्षों से नियमित रिश्वत के रूप में २५ से ५० हजार रूपए प्रतिमाह देने में लगी हैं और अधिकारी शक होने के बावजूद अपने मातहतों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाही नहीं करते ? यह नरमी इस बात का संकेत है कि इस कांड में छोटी मछलियों के साथ बड़ी मछलियां भी भागीदार हैं। जबकि पेट्रोलियम मंत्रालय फिलहाल छोटे कर्मचारी ही पकड़े गए हैं। गोया, पुलिस को अभी असली सूत्रधारों तक पहुंचने की जरूरत है। और यदि दिल्ली पुलिस आला अधिकारियों तक पहुंचने में नाकाम रहती है तो केंद्र सरकार का दायित्व बनता है कि वह इस मामले को सीबीआई या विशेष जांच दल को सौंपे,अन्यथा जासूसी के असली सूत्रधार बेनकाब नहीं होंगे ?

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