अनुभव के मोती
जुकाम और फ्लू के कारण लगभग सभी को कभी न कभी परेशानि भुगतनी पड़ती है. कहा जाता है की इन्हें ठीक होने में ५-७ दिन तो लग ही जाते हैं. पर देसी उपायों से केवल एक दिन में भी इनसे छुटकारा पाया जा सकता है.
- जुकाम कोने पर दही को फेंट कर उसे देसी घी में तड़क लें. जीरा, काली मिर्च, नमक, हल्दी, , प्याज, लहसुन, मोटी इलायची आदि दाल कर इसे गर्म करके या पका करके उतार लें. अब इसे पी कर सो जाएँ. आप २-४ घंटे में ठीक हो जायेंगे. १-२ दिन खान-पान में परहेज रखें. ठंडा पानी भी न पीयें.
- दूसरा यह प्रयोग है कि शुद्ध घी में आटे व बेसन की लपसी ( मीठा- पतला हलवा जैसा ) बना कर पीए और सो जाए. इसमें बादाम, छुहारे आदि डाल सकते हैं. इससे भी एक बार में ही ठीक हो जाते हैं. एक समय में पर ऊपर के दोनों में से केवल एक ही प्रयोग करें. जरुरत हो तो किसी एक ही प्रयोग को दोहरा सकते हैं.
- पर ध्यान रखने की बात यह है कि यदि फ्लू में इस प्रयोग को करेंगे तो रोग बहुत अधिक बढ जाएगा. पिछले कल मेरी पत्नी नें फ्लू को जुकाम समझ कर लपसी पी ली. रोग और अधिक बढ गया. तब उसे बीज निकाल कर ४-५ मुनक्का और २ कली लहसुन के गुनगुने पानी के साथ दिए. प्रातः तक वह स्वस्थ होकर रसोई संभालने लगी, जबकि हमें लग रहा था कि वह ३ दिन तो बिस्तर से न उठ सकेगी.
- बस एक दिन परहेज और करना पडा. बस चिकनाई और ठंडा पानी नहीं दिया.
- फ्लू के इलावा न्युमुनिया में भी इस लहसुन-मुनक्का के प्रयोग को तुरंत आजमाना चाहिए. लाभ होने के बाद दिन भर में २-३ बार कम मात्रा में दें.
- फ्लू में शरीर में खूब दर्दें होती हैं और शरीर बहुत ठंडा होने लगता है. बाद में काफी ज्वर हो जाता है. अतः जब शरीर ठंडा होने लगे, टूटन अधिक हो, ज्वर हो तो दही या लपसी का प्रयोग करने की भूल न करें. हाँ, दोनों रोगों में अमृतधारा की १-२ बूंदें दिन में ३-४ बार चीनी या पानी में देते रहें.
-डा. राजेश कपूर.
परम आदरणीय डा०कपूर जी नमस्ते आप की दी हुई जानकांरी बहुत गुणकारी लगी आशा करता हु आगे भी मार्ग दर्सन करते रहेगे # वन्दे मातरम्
kapoor ji! namskar!
desh ke jukham ka ilaaz bhi batain.jayda biger gaya too?
गौतम जी आपकी चिंता उचित है, वैसे देश के जुकाम के और बिगड़ने को और बचा क्या है, निकृष्टतम हालत तो बन चुके हैं, इससे अधिक और क्या होगा, लुटेरे और जघन्य अपराधी संविधान के रखवाले बने बैठे हैं. अब तो एक ही आशा की किरण बची नज़र आती है ”नमो-नमो” वक्त ही बतलायेगा की ये किरण सूरज बन कर कब उगती है, कसौटी पर कितनी खरी उतरती है.
डा. राजेश कपूर जी–बहुत बहुत धन्यवाद.
सविनय अनुरोध त्रिफला का प्रयोग भी जरूर बताये | धन्यवाद |
आपके अनुरोध के अनुसार इस प्रयोग का वर्णन २० अक्टूबर को यात्रा से लौट कर कर सकूंगा,,आशा है बुरा नहीं मानेंगे.
डॉ. राजेश कपूर जी आपने बहुत ही उपयोगी जानकारी प्रस्तुत की है! सबसे महत्व की बात ये है कि इन दिनों एलोपैथिक दवाओं के उपयोग ने जुकाम, फ्ल्यू, न्यूमोनिया जैसी तकलीफों को लोगों के लिए मुसीबत बना दिया है। ऐसे में इस प्रकार की जानकारी समाज के लिए बहु-उपयोगी है! मेरा उन सभी महानुभावों से निवेदन है, जो परम्परागत चिकित्सा के बारे में व्यावहारिक ज्ञान रखते हैं, कृपया वे सभी अंतरजाल के मार्फ़त अपने अनुभवों को बाँटने का कष्ट करें। ये सच्ची समाज सेवा होगी।
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
डा. मीणा जी इस इस प्रोत्साहन और सुझाव हेतु धन्यवाद. हमारे वनवासियों के पास ऐसी बहुत सी मूल्यवान जानकारी है. उसे भी प्रकाश में लाने के प्रयास होने चाहियें.
एक बड़ी समस्या यह है की सरकारी स्तर पर इस पारंपरिक ज्ञान और इसके ज्ञाताओं को निर्मूल करने के क्रमिक और योजनाबद्ध प्रयास अंग्रेजों के समय से ही चल रहे हैं. उनके जाने के बाद भी भारत की सरकार उन्ही घातक नीतियों को बढ़ावा दे रही है. तभी तो एलोपैथी के लिए 93% बजट और शेष सभी (यूनानी, सिद्धा, आयुर्वेद, होम्योपैथी) के लिए केवल ७% बजट. झोलाछाप कह कर हमारे गुनियों की उपेक्षा व अपमान करना; उनके पंजीकरण पर स्थाई रोक लागा दी है. ऐसी करनियाँ सरकार की दुर्रनीति का भेद खोलती है. ऐसी अनेक बातों को देख कर लगता है की यह सरकार केवल कहने को हमारी है, वास्तव में तो यह विदेशियों के हित में कार्य करती है, हमारे नहीं. अतः जो भी करना है जनता को अपने दम पर ही करना होगा.
फ्लू और जुकाम के लिए एक और उत्तम प्रयोग है. अमृतधारा की २-२ बूंदें दिन में ३-४ बार आधा चम्मच चीनी / शक्कर में या २-४ चम्मच पानी में लें. तुरंत लाभ होगा. अमृतधारा को रुमाल पर लगा कर सूंघते भी रहें. परिणाम देख कर आप हैरान और प्रसन्न हो जायेंगे. परहेज़ / सावधानियां उपरोक्त लेख में दिए अनुसार रखें.
डा० राजेश जी,
ऐलोपथी ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्यक्ति को निराश ही किया है। सम्पूर्ण विश्व भारत की चिकित्सा प्रणाली की ओर लौट रहा है। आपका आलेख माँ भारती की सेवा में समर्पित सुंदर उफार है। निश्चय ही पाठको को लाभान्वित करेगा।
लेख के लिए धन्यवाद
Arya ji dhanyawad. kyaa meri mail par apanaa parchay preshit karenge ?
आदरणीय डॉ साहब , महोदय मेरा परिचय तो प्रवक्ता पर डला हुआ फिर भी मेरा संछिप्त परिचय मात्र इतना सा है कि मैं आपका छोटा भाई हूँ। मेरा मोबाइल नंबर हैं- 9911169917 आशा करता हूँ कि मेरा परिचय अपने छोटे भाई के रूप मे ही प्राप्त करेंगे ।विनम्रतापूर्वक।सादर ।
यह वैदिक चिकित्सा पद्धति है. इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए. इसके पाठ्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए. इस पद्धति को जानने वाले डाक्टर बनने चाहिए.
uttam Sujhaw, dhanyawad.
बहुत बहुत शुक्रिया जी , रोगो पर जानकारी देने के लिये . हमारे शास्त्रो मे ऐसे हजारों नुस्खे मिलते हैं. बस जरूरत है उन्हें समझने और अपने जीवन में अपनाने की. परंतु आजकल हम सरल इलाज के चक्कर में अन्ग्रेजी दवाओं पर कुछ अधिक ही निर्भर हो गये हैं जिनसे एक रोग के हटते ही अनेक नये रोग लग जाते हैं. हमें जरूरत है कि लेख में दिये स्वदेशी नुस्खों जैसे उपायों को जानें और अपने जीवन में अपनायें. धन्यवाद सहित.
१. प्रथम प्रयोग में २-२ चम्मच सभी सामग्री (आटा, बेसन, शक्कर,घी) ले सकते हैं. पानी १०० मी.ली. ले लें. बेसन भूनने में कठिनाई होती है. अतः घी ४ चम्मच भी ले सकते हैं. मीठा अधिक लेते हों तो वह भी ४ चम्मच लें. अर्थात न्यूनाधिक लेने में कोई समस्या नहीं है.
२. फ्लू के लिए एक और प्रयोग है. तुलसी के १०-१२ पत्ते, काली मिर्च पीसी हुई ५-७ दाने, अदरक का टुकड़ा १ इंच कुचला हुआ २०० मी.ली. पानी में पकाएं. आधा रहने पर मीठा डाल कर पीयें. रोज २-३ बार ले सकते हैं पर गर्मियों के मौसम में नहीं लेना है. उसके लिए अलग प्रयोग है.
बहुत बहुत शुक्रिया डाक्टर साहब विवरण के लिए और नए नुस्खे के लिए भी. प्रथम विवरण से मेरा आशय निम्नांकित पंक्तियों से था :
“जुकाम कोने पर दही को फेंट कर उसे देसी घी में तड़क लें. जीरा, काली मिर्च, नमक, हल्दी, , प्याज, लहसुन, मोटी इलायची आदि दाल कर इसे गर्म करके या पका करके उतार लें. अब इसे पी कर सो जाएँ. आप २-४ घंटे में ठीक हो जायेंगे. १-२ दिन खान-पान में परहेज रखें. ठंडा पानी भी न पीयें.”
इस प्रयोग में प्याज, लहसुन, के स्थान पर क्या प्रयोग कर सकते हैं और मात्रा क्या रखें. वर्तमान समय बारिशों में जुखाम बहुत जल्दी जल्दी हो रहा है सभी को सर्द गर्म वातावरण के कारण.
कृपया मार्गदर्शन करें.
सादर
शिवेंरा महोदय आपका धन्यवाद. आपके प्रश्नों के कारण विषय अधिक स्पष्ट,उपयोगी व सुग्राही बन रहा है.
* आप बिना प्याज, लहसुन के भी इसे बना सकते हैं. मोटी इलायची, दालचीनी, अदरक, जीरा आदि तड़के में डाल लें. दही को फेंट कर उसमें आधा पानी डालें और पुनः फेंट लें. कुल मात्र २००-३०० मी.ली. रह सकती है. हम तो इसमें थोड़ा सा मीठा / शक्कर भी डाल लेते हैं जिससे इसका स्वाद बढ जाता है. कई बार इसी के साथ भोजन भी किया जाता है. हमारी तथा हमारे मिलने वालों की यह पसंद की रेसेपी है जो जल्दी से बन जाती है और चावल या चपाती के साथ खाने में स्वादिष्ट लागती है. इसमें बादाम, छुहारा, किशमिश / दाख / द्राक्षा आदि नही डाल सकते हैं. जुकाम होने पर तड़का घी का दें अन्यथा तेल का छौंका भी दे सकते हैं.
बहुत बहुत शुक्रिया डाक्टर साहब, स्वास्थ्य सम्बंधित अचूक इलाज के लिए, प्याज और लहसुन के स्थान पर क्या प्रयोग किया जा सकता है? मैं प्याज और लहुसन नहीं खाता हूँ. इसके साथ ही साथ प्रथम विवरण में सामग्री कितनी कितनी लेनी है. …………. सादर
उपरोक्त लेख में एक महत्वपूर्ण जानकारी जोडने की जरूरत है.
– यदि वर्ष भर आंवले का प्रयोग किया जाये तो फ्लू, जुकाम आदि अनेक रोग होते ही नहीं. बुढापा भी देरी से आयेगा. शरीर के सभी अंग और क्रियायें स्वस्थ-सुचारू बनी रहेंगी.
– मौसम के अनुसार १-२ चम्मच आंवला ठन्डे या गर्म पानी के साथ प्रातः-सायं लेना उचित रहता है. आंवले के प्रयोग के बाद १-२ घण्टे तक दूध न लेना उचित रहता है. आंवले के स्थान पर त्रिफले का प्रयोग करना और भी अधिक उपयोगी सिद्ध होगा.
* त्रिफला के लिये एक अति उत्तम प्रयोग है कि ६ मौसमों में इसे ६ प्रकार के अनुपान के साथ २-२ मास तक लिया जाये. आयुर्वेद के आचार्यों के अनुसार एक वर्ष तक नियमानुसार त्रिफला के इस प्रयोग से लगभग सभी साध्य-असाध्य रोगों की चिकित्सा की जा सकती है. ६ अनुपानों का वर्णन किसी आगामी लेख में ( पाठकों की रुचि होने पर ) करणीय रहेगा.
डा. राजेश कपूर जी–बहुत बहुत धन्यवाद.
सविनय अनुरोधः
(१)
ऐसे परखे गए प्रयोगों को टिप्पणी में डालने की अपेक्षा एक आलेख में डाले जाएं।
प्रयोग परखे और विश्वसनीय स्रोतों से और आपकी चिकित्साके विशाल अनुभव पर आधारित हो।
एक आलेख में एक ही उपचार बाताया जाने से उलझन न होगी। कभी कभी -अपवाद हो सकता है।
ऐसी एक धारावाही श्रेणी, या श्रृंखला (सिरीज) ही बन जाएगी।
(२)
जिनके बारे में सन्देह हो, या सीमित अनुभव पर आधारित हो, उनका अलग ही आलेख बने, ताकि पाठक को मतिभ्रम ना रहे।
(३) आपके अनुभव से प्रवक्ता का पाठक निश्चित लाभ प्राप्त करेगा। मैं भी आंवले का प्रयोग करूंगा।
सविनय, सादर
मधुसूदन
प्रो.मधुसुदन जी इस उपयोगी सुझाव हेतु धन्यवाद. ऐसा ही प्रयास रहेगा.
श्री मधु सूदन जी के निम्न सुझावों का मैं समर्थन करता हूँ
(१)
ऐसे परखे गए प्रयोगों को टिप्पणी में डालने की अपेक्षा एक आलेख में डाले जाएं।
प्रयोग परखे और विश्वसनीय स्रोतों से और आपकी चिकित्साके विशाल अनुभव पर आधारित हो।
एक आलेख में एक ही उपचार बाताया जाने से उलझन न होगी। कभी कभी -अपवाद हो सकता है।
ऐसी एक धारावाही श्रेणी, या श्रृंखला (सिरीज) ही बन जाएगी।
(२)
जिनके बारे में सन्देह हो, या सीमित अनुभव पर आधारित हो, उनका अलग ही आलेख बने, ताकि पाठक को मतिभ्रम ना रहे।